एक तरफ शिक्षा को लोग व्यवसाय के रूप में देखने लगे हैं, लेकिन रतलाम में एक शिक्षक इसके विपरीत काम करते हुए लोगों में शिक्षा का उजियारा फैला रहे हैं। बच्चों के बेहतर भविष्य की नींव गढ़ने वाले इस शिक्षक के जीवन में भले ही अंधियारा छाया हुआ है, लेकिन इनके द्वारा दी गई शिक्षा से हजारों बच्चों के भविष्य में उजास फैल गया है। इनके द्वारा पढ़ाए कुछ बच्चे आज शिक्षक हैं तो कुछ अन्य सरकारी नौकरी में उच्च पदों पर आसीन हैं।
हम जिस शिक्षक की बात कर रहे हैं, उन्हें बच्चे राजेश परमार के नाम से जानते हैं। रतलाम जिले के धामनोद में रहने वाले दृष्टिहीन शिक्षक राजेश परमार शिवगढ़ के शासकीय कन्या उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में पदस्थ होकर बच्चों को सामाजिक विज्ञान पढ़ाते हैं। शिक्षक राजेश की मानें तो बच्चों को पढ़ाना उनका जुनून है। बचपन से उनके जीवन में अंधकार छा गया था, लेकिन उन्होंने कभी इसे कमजोरी नहीं बनने दिया। वे बच्चों को कमजोरी से लड़ने की सीख देते हैं।
शिक्षक राजेश वर्ष 2003 में शिक्षक के रूप में शिवगढ़ में सामाजिक विज्ञान के टीचर के रूप में पदस्थ हुए थे। यहां स्कूल में वे कक्षा 9वीं से 12वीं तक के बच्चों को पढ़ाते हैं। राजेश की मानें तो वे जन्म से दृष्टिहीन नहीं थे। वे जब कक्षा आठवीं में पढ़ते थे, तब उनकी आंखों की रोशनी अचानक चली गई थी और पूरा परिवार सदमे में आ गया था, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और पढ़ाई पूरी की।
उन्होंने इंदौर के ब्लाइंड स्कूल में प्रवेश लिया और अपनी शिक्षा को जारी रखा। यहां राजेश ने ब्रेललिपि में पढ़ाई की। इसके बाद कक्षा 11वीं और 12वीं भोपाल में सामान्य बच्चों के साथ पढ़कर उतीर्ण की। इस दौरान उन्होंने टेलीफोन ऑपरेटिंग का कोर्स भी किया। पढ़ाई पूरी होने के बाद वर्ष 2003 में शिक्षकों की भर्ती में विकलांग कोटे में आवेदन किया और इसमें उनका चयन शिक्षक के पद पर हुआ। तब से वे अब तक शिवगढ़ में सामान्य बच्चों को सामाजिक विज्ञान का पाठ पढ़ा रहे हैं।
राजेश भले ही देख नहीं सकते, लेकिन बच्चों को वे जब बोर्ड पर पढ़ाते हैं तब वे पूरी तरह से सामान्य नजर आते हैं। बोर्ड पर पढ़ाने के दौरान उन्हें देखकर कोई यह नहीं कह सकता है कि वे दृष्टिहीन हैं। उनके पढ़ाने का तरीका भी अलग है। वे बच्चों को जो याद होता है पहले उसे पढ़वाते हैं और फिर उसमें से खुद प्रश्न बनाकर बच्चों को उत्तर भी लिखवाते हैं।
शिक्षक राजेश के परिवार में कुल 5 सदस्य हैं, जिसमें उनकी पत्नी और तीन बेटियां हैं। उनकी पत्नी भी करीब 60 प्रतिशत दृष्टिबाधित हैं, लेकिन उनकी तीनों बेटियां पूरी तरह से स्वस्थ हैं। राजेश घर से स्कूल किसी न किसी की मदद से आते-जाते हैं लेकिन उन्हें एक कक्षा से दूसरी कक्षा में जाने के लिए किसी के सहारे की जरूरत नहीं पड़ती है। कोरोना काल में जब स्कूल बंद थे, उस दौर में भी राजेश ने जरूरतमंद बच्चों को पढ़ाने का काम जारी रखा।
विस्तार
एक तरफ शिक्षा को लोग व्यवसाय के रूप में देखने लगे हैं, लेकिन रतलाम में एक शिक्षक इसके विपरीत काम करते हुए लोगों में शिक्षा का उजियारा फैला रहे हैं। बच्चों के बेहतर भविष्य की नींव गढ़ने वाले इस शिक्षक के जीवन में भले ही अंधियारा छाया हुआ है, लेकिन इनके द्वारा दी गई शिक्षा से हजारों बच्चों के भविष्य में उजास फैल गया है। इनके द्वारा पढ़ाए कुछ बच्चे आज शिक्षक हैं तो कुछ अन्य सरकारी नौकरी में उच्च पदों पर आसीन हैं।
हम जिस शिक्षक की बात कर रहे हैं, उन्हें बच्चे राजेश परमार के नाम से जानते हैं। रतलाम जिले के धामनोद में रहने वाले दृष्टिहीन शिक्षक राजेश परमार शिवगढ़ के शासकीय कन्या उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में पदस्थ होकर बच्चों को सामाजिक विज्ञान पढ़ाते हैं। शिक्षक राजेश की मानें तो बच्चों को पढ़ाना उनका जुनून है। बचपन से उनके जीवन में अंधकार छा गया था, लेकिन उन्होंने कभी इसे कमजोरी नहीं बनने दिया। वे बच्चों को कमजोरी से लड़ने की सीख देते हैं।
Source link
Like this:
Like Loading...
Related