
गरियाबंद – एक तरफ सरकार सुपेबेड़ा के किडनी पीड़ितों के लिए बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं के दावे करती रही, दूसरी तरफ उन्हीं के नाम पर एक साल में 15 लाख की भारी-भरकम ‘सेवा’ का खेल खेला गया। बिना टेंडर, बिना रेट कोड और बिना किसी वैध अनुबंध के एक निजी ट्रैवल्स कंपनी की बॉलरों एंबुलेंस को लगाया गया और राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM) के फंड से 10 लाख से अधिक की राशि भी जारी कर दी गई।

अब जब मामले की परतें खुलने लगी हैं, तो अफसरों के पास कोई जवाब नहीं है। नतीजा — महंगी सेवा बंद कर दी गई और सुपेबेड़ा के मरीजों को थमाया गया एक 2 लाख किलोमीटर चल चुका खटारा वाहन, जो स्टेचर तक से लैस नहीं।

“सेवा” के नाम पर खुलेआम खेला गया नियमों से खिलवाड़
26 जून 2024 को तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल ने जिस एंबुलेंस सेवा को सुपेबेड़ा के लिए हरी झंडी दिखाई थी, उसके पीछे का सारा खेल अब खुलकर सामने आ रहा है। रायपुर की टिकरापारा स्थित एक ट्रैवल्स कंपनी को सीधे-सीधे बिना किसी प्रतिस्पर्धा या टेंडर के 52.5 रुपये प्रति किमी की दर पर सेवा देने का मौका दे दिया गया।

बिल के अनुसार, हर महीने अधिकतम 2,000 किमी की सीमा तय कर 1.05 लाख रुपए मासिक भुगतान तय किया गया, और अतिरिक्त दूरी पर अलग से भुगतान का प्रावधान रखा गया — जो पूरी तरह से सरकारी दरों के विपरीत है।
जबकि जिले में बॉलरों एंबुलेंस की अधिकतम तय राशि 45 से 50 हजार प्रति माह है, वहीं अन्य प्रतिष्ठित रायपुर की फर्में 65 हजार में ड्राइवर समेत गाड़ी उपलब्ध कराने को तैयार थीं। ऐसे में इस ‘खास’ फर्म को ढाई गुना अधिक भुगतान क्यों दिया गया, यह किसी को समझ नहीं आ रहा — या कहें, सब कुछ ‘समझ’ में है, पर कोई बोल नहीं रहा।
बिना अनुबंध के सेवा, फिर भी 10 लाख का भुगतान — NHM फंड का घोर दुरुपयोग
एंबुलेंस सेवा का कोई विधिवत अनुबंध नहीं हुआ, सिर्फ स्टैम्प पेपर पर एकतरफा लिखापढ़ी कर दी गई। इसके बावजूद राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की मद से 10 लाख से अधिक का भुगतान कर दिया गया, जो कि खुद NHM की गाइडलाइन के खिलाफ है।
सूत्र बताते हैं कि बजट के ‘प्रत्याशा’ में भुगतान किया गया, यानि किसी वैधानिक स्वीकृति या नियम की परवाह किए बिना पैसा फर्म के खाते में भेजा गया। नए सीएमएचओ के कार्यभार संभालते ही उन्हें इस ‘गड़बड़ी’ की भनक लगी, और उन्होंने तत्काल एंबुलेंस सेवा पर रोक लगा दी।
जवाबदेही से बच रहे अफसर, मंत्री की मौजूदगी से बनी थी “लीगल शील्ड”?
जब गरियाबंद के सीएमएचओ डॉ. यू.के. नवरत्न से पूछा गया कि बिना टेंडर और अनुबंध कैसे सेवा शुरू हुई और कैसे भुगतान किया गया, तो उन्होंने पल्ला झाड़ते हुए कहा, “डीपीएम बाहर हैं, उन्हीं के पास जानकारी है।”
माना जा रहा है कि मंत्री की मौजूदगी और हरि झंडी की तस्वीरों ने इस पूरे मामले को एक ‘प्रोटेक्शन कवच’ प्रदान कर दिया, जिसके दम पर फर्म को सालभर में करोड़ों की सेवा का मौका और लाखों की वसूली हो गई — बिना किसी सवाल-जवाब के।
अब थमाई गई खटारा एंबुलेंस, मरीजों की जान भगवान भरोसे
जब मामला उजागर हुआ, और फर्म की महंगी सेवा बंद की गई, तो सुपेबेड़ा में भेजा गया एक सरकारी मिनी एंबुलेंस — जो 2 लाख किलोमीटर से अधिक चल चुका है, और जिसमें स्टेचर तक नहीं है।
ड्राइवरों का कहना है कि इस गाड़ी में लंबी दूरी की इमरजेंसी सेवा देना जोखिम भरा है, पर अब कोई विकल्प नहीं है। सवाल उठता है — जिन मरीजों के नाम पर 15 लाख की ‘सेवा’ ली गई, अब उन्हीं को खटारा वाहन देकर मरने को क्यों छोड़ा जा रहा है?
: जनता के नाम पर घोटाले, जवाबदेही का कोई नामोनिशान नहीं
सुपेबेड़ा की यह पूरी कहानी स्वास्थ्य सेवा की नहीं, बल्कि गैर-जवाबदेही, मिलीभगत और शासकीय धन के दुरुपयोग की गवाही देती है।
किसने अनुमति दी? बिना टेंडर फर्म कैसे चुनी गई? भुगतान किसने किया? NHM फंड का उल्लंघन क्यों हुआ? — इन सवालों का जवाब कोई देने को तैयार नहीं।
सवाल अब सिर्फ सुपेबेड़ा की सेवा का नहीं, प्रशासनिक ईमानदारी और जनकल्याण के नाम पर हो रहे भ्रष्टाचार का है।
- “स्वास्थ्य मंत्री ने दिखाई थी हरि झंडी, अब सुपेबेड़ा में चल रही खटारा एंबुलेंस”
- “मंत्री की मौजूदगी में शुरू हुई सेवा, बिना टेंडर 15 लाख का खेल!”
- “हरि झंडी से शुरू, घोटाले में तब्दील — मंत्री के नाम पर चली बगैर अनुबंध एंबुलेंस”
- “स्वास्थ्य मंत्री की झंडी के पीछे छिपा एंबुलेंस घोटाला?”
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- “मंत्री की हरी झंडी बनी लूट का लाइसेंस, NHM मद से 10 लाख उड़ाए”
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- “मंत्री की तस्वीर चमकी, मरीजों को मिली 2 लाख किमी पुरानी एंबुलेंस”
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