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अफीम की हथियारों के साथ पहरेदारी: काले सोने पर सफेद फूलों की चादर, जानिए MP में कैसे तैयार होती है Opium की फसल ?

Story on Opium cultivation in Malwa-Nimar: मालवा-निमाड़ के काले सोने के नाम से मशहूर नीमच की अफीम की फसल इन दिनों पूरे शबाब पर है। अफीम के पौधों पर सफेद फूलों की चादर बिछ गई है। अब धीरे-धीरे उन पर फलियां आने लगी हैं। फूल झड़ते ही फलियां (Opium cultivation in Malwa) पूरी तरह से दिखने लगेंगी। यह देख अफीम किसानों के चेहरे खिल गए हैं, वहीं उनकी चिंता भी बढ़ गई है।

हथियारों से रखवाली

Story on Opium cultivation in Malwa-Nimar: अफीम किसान अपनी फसल को जंगली जानवरों और पशु-पक्षियों समेत तस्करों से बचाने के लिए भी (Opium cultivation in Malwa) कई उपाय कर रहे हैं। किसानों ने पशु-पक्षियों से अफीम को बचाने के लिए खेत के चारों ओर जाल लगा दिया है।

Story on Opium cultivation in Malwa-Nimar: तस्कर रात में खेत से चोरी न कर सकें, इसके लिए किसानों ने यहां झोपड़ियां भी बना ली हैं। फलियां चोरी (Opium cultivation in Malwa) न हो सकें, इसके लिए किसानों ने अब हथियारों से अपने खेतों की रखवाली शुरू कर दी है।

अफीम की खेती आसान नहीं

Story on opium cultivation in Malwa-Nimar: नीमच, मंदसौर, रतलाम काले सोने के लिए देश ही नहीं विदेशों में भी मशहूर हैं। एशिया की सबसे बड़ी अफीम फैक्ट्री भी यहीं मौजूद है। इसके साथ ही सेंट्रल नारकोटिक्स का कार्यालय भी नीमच जिले में ही स्थित है।

Story on Opium cultivation in Malwa-Nimar: किसानों के लिए अधिक लाभ कमाने के लिए अफीम की खेती एक बेहतर विकल्प है, लेकिन अफीम की खेती इतनी आसान नहीं है। इसके लिए (Opium cultivation in Malwa) कई नियम और शर्तों का पालन करना पड़ता है।

Story on opium cultivation in Malwa-Nimar: अफीम की खेती सिर्फ सरकारी लाइसेंस से ही की जा सकती है। बिना लाइसेंस के इसकी खेती करना कानूनी अपराध है। जिसके लिए सख्त (Opium cultivation in Malwa)  सजा का प्रावधान किया गया है।

नारकोटिक्स विभाग तय करता है अफीम नीति

अफीम की खेती के लिए लाइसेंस देने से पहले नारकोटिक्स विभाग की ओर से नीति बनाई जाती है। किसान कितनी जमीन पर अफीम की खेती कर सकता है, यह भी सरकार तय करती है। देश में अफीम का सबसे ज्यादा उत्पादन राजस्थान के मालवा और मेवाड़ में होता है।

मध्य प्रदेश के नीमच, मंदसौर, जावरा और राजस्थान के चित्तौड़गढ़, उदयपुर, भीलवाड़ा जिलों के किसानों को अफीम की खेती के लिए पट्टे मिलते हैं। किसानों को जिस क्षेत्र के पट्टे मिले हैं, उसी क्षेत्र में अफीम की बुवाई की जा सकती है। इसके लिए नारकोटिक्स विभाग की टीम खेतों में जाकर निरीक्षण भी करती है।

अफीम के हर ग्राम का देना होता है हिसाब

केंद्र सरकार की ओर से किसानों को अफीम का लाइसेंस दिया जाता है। किसानों को अफीम के हर ग्राम का हिसाब नारकोटिक्स विभाग को देना होता है। इसलिए किसानों को चोरों, लुटेरों और जंगली जानवरों से अफीम की सुरक्षा के लिए कड़ी निगरानी रखनी होती है। समय-समय पर नारकोटिक्स विभाग के अधिकारी फसल का निरीक्षण करते हैं।

कैसे तैयार होती है अफीम

Story on opium cultivation in Malwa-Nimar: अफीम की बुआई के 100-120 दिन बाद पौधों में फूल खिलने लगते हैं। इन फूलों के गिरने के बाद इसमें फलियां बनती हैं। प्रतिदिन थोड़ी-थोड़ी मात्रा में अफीम की कटाई की जाती है।

Story on opium cultivation in Malwa-Nimar: इसके लिए इन फलियों को काटकर रात भर छोड़ दिया जाता है और अगली सुबह इनसे निकलने वाले तरल को इकट्ठा कर लिया जाता है। जब तरल निकलना बंद हो जाता है तो इन्हें सूखने के लिए छोड़ दिया जाता है।

Story on opium cultivation in Malwa-Nimar: फसल के सूखने के बाद इसकी फलियों को तोड़कर उसमें से बीज निकाल लिए जाते हैं। इसके बीजों को पोस्त कहते हैं। हर साल अप्रैल के महीने में नारकोटिक्स विभाग किसानों से अफीम की फसल खरीदता है।

‘ताकि तस्कर अफीम चुरा न लें’

अफीम किसान मनीष धाकड़ कहते हैं कि “हमें रखवाली करने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। अफीम की फसल की रखवाली के लिए हमें रात-रात भर जागना पड़ता है। जब फसल से अफीम निकालने का समय आता है, तो हमारी जान को भी खतरा बढ़ जाता है।

जब तक अफीम नारकोटिक्स में जमा नहीं हो जाती, तब तक हमारी जान को खतरा बना रहता है। डर बना रहता है कि कहीं तस्कर आकर अफीम चुरा न लें। अफीम जमा करने की तारीख मिलने के बाद हमारी अफीम नारकोटिक्स कार्यालय में ले जाकर जमा कर दी जाती है और तय कीमत के हिसाब से खरीद ली जाती है।”

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