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Holi में सेमल पेड़ की अनसुनी कहानी: जिससे जलती है सिर्फ Holika, जानिए फूल तक क्यों है अशुभ ?

Story of Semal Tree in Holi 2025: होलाष्टक की शुरुआत के साथ ही पूरे देश में रंगों की बौछार से सराबोर फाग का त्योहार शुरू हो गया है। खरमास की शुरुआत के बाद इस त्योहार का सबसे खास धार्मिक आयोजन होलिका दहन होता है।

Story of Semal Tree in Holi 2025: होलिका दहन के लिए सभी तरह के पेड़ों की लकड़ियों का इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र में होलिका दहन के लिए एक खास पेड़ की लकड़ी का इस्तेमाल किया जाता है।

ऐसा माना जाता है कि सदियों से इस पेड़ की लकड़ी का इस्तेमाल किसी काम में नहीं किया गया है। लेकिन मालवा में इस पेड़ की लकड़ी का इस्तेमाल होलिका दहन के लिए किया जाता है।

होलिका दहन में इस पेड़ की लकड़ी का इस्तेमाल किया जाता है

Story of Semal Tree in Holi 2025: प्रदेश के मालवा क्षेत्र में होलिका दहन के लिए एक खास पेड़ का भी इस्तेमाल किया जाता है। इस पेड़ का नाम सेमल का पेड़ है। इसका वानस्पतिक नाम बॉम्बैक्स है।

इसे कॉटन ट्री के नाम से भी जाना जाता है। खास बात यह है कि होली का त्यौहार आते ही इस पेड़ में आकर्षक लाल और मैरून रंग के फूल खिलने लगते हैं। पतझड़ से पहले इस पेड़ की पत्तियां गिर जाती हैं।

Story of Semal Tree in Holi 2025: होली के कुछ दिन बाद यह पेड़ फिर से हरा-भरा होने लगता है। यह वही पेड़ है जिसे मालवा क्षेत्र में ‘होरी का पेड़’ के नाम से जाना जाता है।

‘पाप के पेड़ के रूप में पहचान’

ज्योतिषाचार्य पंडित शांतनु शास्त्री बताते हैं कि “मालवा में एक प्राचीन परंपरा है और इस परंपरा में होलिका दहन के लिए पाप के पेड़ की लकड़ी का इस्तेमाल किया जाता है। इस पेड़ को सेमल के पेड़ के नाम से जाना जाता है।

इस पेड़ की लकड़ी को होलिका के प्रतीक के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। इस पेड़ में कांटे होते हैं। इस पेड़ की लकड़ी का इस्तेमाल किसी भी काम में नहीं किया जाता है।”

‘अंतिम संस्कार में भी सेमल की लकड़ी का इस्तेमाल नहीं होता’

ज्योतिषाचार्य पंडित शांतनु शास्त्री कहते हैं कि “धार्मिक मान्यता के अनुसार इस पेड़ का इस्तेमाल होली के दिन होलिका दहन के लिए ही किया जाता है। इस पेड़ की शाखाओं और लकड़ी का इस्तेमाल न तो इमारती लकड़ी के तौर पर किया जाता है।

Story of Semal Tree in Holi 2025: इसका इस्तेमाल न तो जलाने के लिए किया जाता है और न ही इसका इस्तेमाल फर्नीचर या कोई कृषि उपकरण बनाने में किया जाता है।

इस पेड़ का इस्तेमाल किसी भी शुभ काम में नहीं किया जाता। इस पेड़ को इतना अशुभ माना जाता है कि किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद अंतिम संस्कार में भी इस पेड़ की लकड़ी का इस्तेमाल नहीं किया जाता। मालवा क्षेत्र में इस पेड़ की लकड़ी से होलिका दहन की परंपरा सदियों से चली आ रही है।”

होलिका दहन में सेमल की लकड़ी का होता है इस्तेमाल

ज्योतिषाचार्य पंडित शांतनु शास्त्री कहते हैं कि “होलाष्टक पर्व शुरू होने के बाद मालवा क्षेत्र के हर गांव और शहर में होलिका की लकड़ियों की व्यवस्था का काम शुरू हो जाएगा और चौपाल पर रखी गई यह होलिका होली पर्व की शाम से आधी रात के बीच जलाई जाएगी।

होलिका दहन के लिए सेमल के पेड़ की लकड़ी को काटकर चौपाल के बीच में गाड़ दिया जाता है। इसके बाद इसे दूसरी लकड़ियों की मदद से जलाया जाता है। इस पेड़ की लकड़ी इतनी गीली होती है कि होलिका दहन में इसकी मदद से इस्तेमाल की गई लकड़ी जलकर राख हो जाती है, फिर भी इस पेड़ की गीली लकड़ी नहीं जलती।”

ज्योतिषाचार्य पंडित शांतनु शास्त्री कहते हैं कि “परंपरा के अनुसार, जब इस पेड़ की गीली लकड़ी नहीं जलती है, तो लोग इसकी आधी जली हुई लकड़ी को काटकर नदी या कुएं पर ले जाकर ठंडा कर देते हैं।

इसे होली को ठंडा करने की प्रथा माना जाता है। इस प्रथा में होलिका दहन के दूसरे दिन से लेकर शीतला सप्तमी तक हर दिन घर की महिलाएं होली की आग को ठंडा करने के लिए दहन स्थल पर एक घड़ा पानी चढ़ाती हैं। मालवा क्षेत्र में यह धार्मिक परंपरा सदियों से चली आ रही है।”

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