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MP High Court: MPPSC की विशेष परीक्षा कराने के एकल पीठ के फैसले पर रोक, हाईकोर्ट ने जारी किए नोटिस

हाईकोर्ट का आदेश आने के पहले ही एमपीपीएससी ने मुख्य परीक्षा आयोजित करते हुए रिजल्ट जारी कर दिए थे। इसके बाद पीएससी ने असंशोधित नियम के तहत संशोधित नतीजे जारी करते हुए, उसके अनुसार पुनः मुख्य परीक्षा करवाने का निर्णय लिया था।

मध्यप्रदेश हाईकोर्ट

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– फोटो : अमर उजाला

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मध्यप्रदेश लोक सेवा आयोग (MPPSC) की मुख्य परीक्षा 2019 का मामला पुनः हाईकोर्ट पहुंच गया है। एकल पीठ के आदेश पर युगलपीठ ने रोक लगा दी है। एकल पीठ ने संशोधित नतीजों में चयनित अभ्यर्थियों की विशेष परीक्षा कराने का आदेश दिया था। एकल पीठ ने पुन: मुख्य परीक्षा कराने के आयोग के फैसले को अनुचित माना था। 

एकल पीठ के आदेश को चुनौती देते हुए मप्र हाईकोर्ट में अपील दायर की गई है। इस पर मुख्य न्यायाधीश रवि विजय कुमार मलिमथ तथा जस्टिस विशाल मिश्रा की युगलपीठ ने संबंधित पक्षकारों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। याचिकाकर्ता दीपेन्द्र यादव, शैलबाला भार्गव व अन्य की तरफ से दायर अपील में कहा गया था कि पीएससी 2019 (MPPSC-2019) की परीक्षा में संशोधित नियम लागू किए गए थे। इसके खिलाफ दायर याचिका की सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट की युगलपीठ ने असंशोधित नियम 2015 का पालन सुनिश्चित करने के आदेश जारी किए थे। 

हाईकोर्ट का आदेश आने के पहले ही एमपीपीएससी ने मुख्य परीक्षा आयोजित करते हुए रिजल्ट जारी कर दिए थे। इसके बाद पीएससी ने असंशोधित नियम के तहत संशोधित नतीजे जारी करते हुए, उसके अनुसार पुनः मुख्य परीक्षा करवाने का निर्णय लिया था। इसके खिलाफ मुख्य परीक्षा में चयनित 100 से अधिक उम्मीदवारों ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। याचिका की सुनवाई करते हुए एकलपीठ ने अपने आदेश में कहा था जिन अभ्यार्थियों का मुख्य परीक्षा में चयन हो गया है और साक्षात्कार के लिए चयन किया गया है, उनके लिए पुन: परीक्षा अन्याय होगी। पुनः मुख्य परीक्षा करवाने में अधिक व्यय होगा, जो जनहित में नहीं है। पूर्व की भांति नवीन सूची के अनुसार चयनित अभ्यार्थियों के लिए विशेष परीक्षा 6 माह में आयोजित की जाए। पूर्व की मुख्य परीक्षा तथा विषेष परीक्षा के परिणाम के अनुसार अंतिम सूची तैयार की जाए।

एकल पीठ के खिलाफ दायर अपील में कहा गया है कि प्रारंभिक व मुख्य परीक्षा का रिजल्ट जारी करने में असंशोधित नियम 2015 का पालन नहीं किया गया है। एकलपीठ का आदेश युगलपीठ द्वारा पारित आदेश से असंगत है। युगलपीठ ने अपील की सुनवाई करते हुए एकल पीठ के आदेश पर रोक लगा दी। याचिकाकर्ताओं की तरफ से अधिवक्ता रामेश्वर पी सिंह तथा विनायक शाह ने पैरवी की।

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मध्यप्रदेश लोक सेवा आयोग (MPPSC) की मुख्य परीक्षा 2019 का मामला पुनः हाईकोर्ट पहुंच गया है। एकल पीठ के आदेश पर युगलपीठ ने रोक लगा दी है। एकल पीठ ने संशोधित नतीजों में चयनित अभ्यर्थियों की विशेष परीक्षा कराने का आदेश दिया था। एकल पीठ ने पुन: मुख्य परीक्षा कराने के आयोग के फैसले को अनुचित माना था। 

एकल पीठ के आदेश को चुनौती देते हुए मप्र हाईकोर्ट में अपील दायर की गई है। इस पर मुख्य न्यायाधीश रवि विजय कुमार मलिमथ तथा जस्टिस विशाल मिश्रा की युगलपीठ ने संबंधित पक्षकारों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। याचिकाकर्ता दीपेन्द्र यादव, शैलबाला भार्गव व अन्य की तरफ से दायर अपील में कहा गया था कि पीएससी 2019 (MPPSC-2019) की परीक्षा में संशोधित नियम लागू किए गए थे। इसके खिलाफ दायर याचिका की सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट की युगलपीठ ने असंशोधित नियम 2015 का पालन सुनिश्चित करने के आदेश जारी किए थे। 

हाईकोर्ट का आदेश आने के पहले ही एमपीपीएससी ने मुख्य परीक्षा आयोजित करते हुए रिजल्ट जारी कर दिए थे। इसके बाद पीएससी ने असंशोधित नियम के तहत संशोधित नतीजे जारी करते हुए, उसके अनुसार पुनः मुख्य परीक्षा करवाने का निर्णय लिया था। इसके खिलाफ मुख्य परीक्षा में चयनित 100 से अधिक उम्मीदवारों ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। याचिका की सुनवाई करते हुए एकलपीठ ने अपने आदेश में कहा था जिन अभ्यार्थियों का मुख्य परीक्षा में चयन हो गया है और साक्षात्कार के लिए चयन किया गया है, उनके लिए पुन: परीक्षा अन्याय होगी। पुनः मुख्य परीक्षा करवाने में अधिक व्यय होगा, जो जनहित में नहीं है। पूर्व की भांति नवीन सूची के अनुसार चयनित अभ्यार्थियों के लिए विशेष परीक्षा 6 माह में आयोजित की जाए। पूर्व की मुख्य परीक्षा तथा विषेष परीक्षा के परिणाम के अनुसार अंतिम सूची तैयार की जाए।

एकल पीठ के खिलाफ दायर अपील में कहा गया है कि प्रारंभिक व मुख्य परीक्षा का रिजल्ट जारी करने में असंशोधित नियम 2015 का पालन नहीं किया गया है। एकलपीठ का आदेश युगलपीठ द्वारा पारित आदेश से असंगत है। युगलपीठ ने अपील की सुनवाई करते हुए एकल पीठ के आदेश पर रोक लगा दी। याचिकाकर्ताओं की तरफ से अधिवक्ता रामेश्वर पी सिंह तथा विनायक शाह ने पैरवी की।

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