
गरियाबंद से गिरीश जगत की रिपोर्ट।
जब बाकी दुनिया सोती है, तब छत्तीसगढ़ की नदियों से चुपचाप रेत चुराई जाती है। उन्हें हाइवा में भरकर रात के अंधेरे में सिस्टम के सिर के ऊपर से गुजार दिया जाता है। गरियाबंद के राजिम में ‘पैरी’ नदी अब सिर्फ एक जलधारा नहीं, बल्कि माफिया के लिए मुनाफे का खदान बन चुकी है। यहां रेत माफिया सिर्फ मशीन नहीं चलाते, वो प्रशासन को भी ऑपरेट करते हैं। दिन में दिखावे की निगरानी, रात में गोल्डन टाइम — और फिर सुबह तक 50 से ज्यादा हाइवा बिना किसी रोक-टोक के निकल जाते हैं। ये कोई चोरी नहीं, ये संगठित लूट है — वो भी सत्ता के संरक्षण में।
जिस राजिम को कभी धार्मिक नगरी के रूप में जाना जाता था, अब वह रेत माफिया का मठ बन चुका है। सड़कें गीली हैं, कैमरे खामोश हैं, बेरियर खाली हैं और अफसर बयानों की आड़ में सोए हुए हैं। पत्रकारों पर हमले, घाटों में चेन माउंटेन की घुसपैठ और झाड़ियों में छिपाए जाते जेसीबी — यह सब साबित करते हैं कि यह लड़ाई सिर्फ अवैध खनन की नहीं, बल्कि लोकतंत्र की रीढ़ पर हो रहे एक सुनियोजित हमले की है। सवाल ये नहीं कि रेत कहां से आती है, सवाल ये है कि इतनी हिम्मत रेत माफिया में आई कहां से?

विस्तार से पढ़िए गरियाबंद में कैसे फैला है सफेद रेत का काला साम्राज्य ?
वैसे बाहरी तौर पर दावा किया जाता है कि अवैध खनन पर पूरी तरह से रोक लगा दी गई है। अधिकारी कैमरे के सामने बोलते हैं कि “अब एक भी ट्रक रेत का बिना रॉयल्टी के नहीं निकल सकता।” मगर सच्चाई उससे कहीं गंदी, सड़ी और शर्मनाक है। जब रात के अंधेरे में चेन माउंटेन गाड़ियां घाटों में उतरती हैं और दर्जनों हाइवा बिना किसी रोक-टोक के बेरियर पार करती हैं, तब यह सवाल उठता है — क्या यह प्रशासन की लाचारी है या रेत माफिया से सांठगांठ का सीधा सबूत?

- रेत की तस्करी का रूटमैप, कैसे चलता है पूरा खेल
- स्थान: गरियाबंद जिला, छत्तीसगढ़
- मुख्य केंद्र: राजिम-कुरूस केरा घाट-पितई बंद घाट-नर्सरी की झाड़ियां–मुख्य चौराहा
- तस्करी का समय: रात 10 बजे से सुबह 5 बजे तक
- मुख्य खिलाड़ी: रेत माफिया, ट्रक मालिक, स्थानीय गुर्गे, राजनीतिक संरक्षणधारी, प्रशासनिक खामोशी
- रात 8 बजे के बाद कुरूस केरा घाट में 3 से अधिक चेन माउंटेन उतरते हैं।
- ये मशीनें पूरी रात पैरी नदी की कोख से रेत उगलती हैं।
- सुबह होने से पहले उन्हें पास की नर्सरियों की झाड़ियों में छिपा दिया जाता है।
- रात 11 बजे से सुबह 4 बजे तक, 50 से अधिक हाइवा राजिम के बेरियर से बिना जांच के गुजरती हैं।
- बेरियर पर कोई भी माइनिंग अधिकारी मौजूद नहीं होता।
इस पूरे नेटवर्क का संचालन एक संगठित गिरोह की तरह होता है। हर एक ट्रक के पीछे “सेटिंग” होती है। हर एक हाइवा रेत से भरी हुई, बिना बिल, बिना वैधता के, सरकारी नाक के नीचे गुजर जाती है।

राजिम: राजनीति और रेत का अघोषित गठबंधन
राजिम, जिसे धार्मिक नगरी के रूप में पहचाना जाता है, अब रेत माफिया की राजधानी बन चुका है। यह सिर्फ खनन नहीं, बल्कि सत्ता, संगठित अपराध और सरकारी चुप्पी का जीता-जागता उदाहरण है।
हाल ही में पितई बंद घाट में पत्रकारों पर जानलेवा हमला इसका सबूत है कि रेत माफिया किसी भी हद तक जा सकता है। उन्होंने न सिर्फ लोकतंत्र के चौथे स्तंभ पर वार किया, बल्कि यह भी जता दिया कि “हमारा कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता।”

- हमारी टीम ने जब मौके की ग्राउंड इन्वेस्टिगेशन की, तो सच्चाई दहलाने वाली थी।
- राजिम के मुख्य चौराहे से लेकर माइनिंग बेरियर तक, रातभर में दर्जनों ट्रक निकलते रहे।
- रात 10:38 बजे से सुबह 4 बजे तक 50 से ज्यादा हाइवा पार हुए।
- बेरियर पर कोई रोक-टोक नहीं।
- सड़क पर गिरी रेत और गीली मिट्टी इस बात का गवाह बनी कि भारी वाहन बड़ी संख्या में गुजरे हैं।
अब बारूका घाट खोदने की है तैयारी
कुरुस केरा में सेटिंग की सफलता के बाद बारूका घाट खोदने की है तैयारी है।यहां के लिए मशीनें लाकर गिराई जा चुकी हैं। वहीं पीतई बंद में पत्रकारों को पिटवाना वाला शख्स ही अपने कुछ अपराधिक किस्म के साथ मिलकर भरे बरसात में प्रशाशन को चुनौती दे रहा है। पहले घटी घटना में आसानी से पाक साफ होकर बच निकला। इसी से उसके राजनीतिक रसूख का अंदाजा लगाया जा सकता है।

कौन हैं रेतिस्तान के डकैत?
- स्थानीय रसूखदार कारोबारी, जिनकी सीधी पहुंच अधिकारियों तक है।
- चेन माउंटेन ऑपरेटर, जो अवैध रूप से नदी में मशीनें उतारते हैं।
- पुलिस और माइनिंग विभाग के अंदरूनी ‘सूत्र’, जो रात के समय का मैनेजमेंट करते हैं।
- राजनीतिक संरक्षण, जिसके बिना इतने बड़े पैमाने पर तस्करी असंभव है।
क्या यह सिर्फ अवैध खनन है या संगठित अपराध?
जब पत्रकारों पर हमला होता है, जब जांच की मांग पर चुप्पी छा जाती है, जब मशीनों को झाड़ियों में छिपाया जाता है — तो यह मामला सिर्फ अवैध खनन का नहीं, संगठित आपराधिक साजिश का बन जाता है। और इसमें जो चुप है — वह या तो शामिल है या डरपोक।

क्या प्रशासन माफिया के आगे नतमस्तक है ?
- “हमने देखा कि रातभर रेत के ट्रक बेरोकटोक निकलते रहे, कोई नहीं पूछता… अगर पत्रकार कुछ बोल दे तो उस पर हमला होता है।”
- – स्थानीय निवासी, नाम न छापने की शर्त पर
- “किसी के डर से हम चुप हैं, वरना सबको पता है कि कौन करता है यह सब।”
- – घाट क्षेत्र के एक मजदूर
प्रशासन: आंखें बंद, कान बंद, कार्रवाई शून्य
जब हमने इस बारे में जिला माइनिंग अधिकारी रोहित साहू से बात की, तो उनका जवाब कागजी जिम्मेदारी से आगे नहीं गया। उन्होंने कहा कि हमारी टीम 24 घंटे तैनात रहती है।
अवैध खनन बंद है। कहीं हो रहा होगा तो कार्रवाई करेंगे, लेकिन ग्राउंड पर बेरियर खाली था। कोई माइनिंग कर्मी तैनात नहीं था। तो यह ’24 घंटे निगरानी’ किस फाइल में हो रही है? क्या प्रशासन अंधा है, या जानबूझकर अंधा बना हुआ है?
क्या अब भी प्रशासन बहरा बना रहेगा?
यह रिपोर्ट सिर्फ रेत की चोरी नहीं, जनतंत्र की हत्या की कहानी है। यह सवाल उन अफसरों से है जो आंख मूंदे बैठे हैं, और उन नेताओं से जो बयानबाजी करते हैं, लेकिन जमीन पर चुप रहते हैं। अगर अब भी कार्रवाई नहीं हुई तो याद रखिए, रेत माफिया आज नदियों को निगलेंगे और फिर लोकतंत्र को भी। यह रिपोर्ट स्वतंत्र इनवेस्टिगेशन पर आधारित है।

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