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PFI: सिमी पर प्रतिबंध के बाद आतंकी संगठन चोला बदल-बदल कर रहे देश में फैला रहे अपनी शाखाएं, राजनीति में भी दखल

पीएफआई के मंसूबों का खुलासा होते ही भारत सरकार ने इस पर प्रतिबंध लगा दिया है, लेकिन आतंकी पौध तैयार करने वाली इस नई नर्सरी का खुलासा होने के बाद अब खुफिया एजेंसियों को ऐसे और संगठनों की भी तलाश है, जो 2001 में सिमी पर प्रतिबंध लगने के बाद अस्तित्व में आए हैं और चोला बदलकर काम कर रहे हैं।

अकेले पीएफआई की इस तरह की शाखाएं अभी मालवांचल सहित देशभर में सक्रिय हैं जो समाज के अलग-अलग वर्गों में अलग-अलग नामों से काम कर रही हैं। इनमें से कुछ ही जानकारी खुफिया एजेंसियों को है। खास और चौंकाने वाली बात यह है कि इन संगठनों में अधिकांश वे लोग हैं जो 2001 में सिमी पर प्रतिबंध के पहले इस आतंकी संगठन के सम्पर्क में थे या इससे जुड़े हुए थे। कुल मिलाकर पीएफआई की नींव में सिमी ही है।

देशभर में इस वक्त ऐसे दर्जनों संगठन काम कर रहे हैं जो सिमी की विचारधारा दूसरी खाल पहनकर पोषित व पल्लवित करने का काम कर रहे हैं। हालांकि समय-समय पर खुफिया एजेंसियों को मिलने वाले इनपुट के बाद स्थानीय स्तर पर सक्रिय रहने वाले इस तरह के कई संगठनों को कुचलने का काम भी 2014 के बाद आई सरकार ने किया है।
 
नाम और रंग बदलने का ये सिलसिला सिमी चीफ सफदर नागौरी ने शुरू किया था। दरअसल भारत में आतंक की इस फैक्ट्री की शुरुआत 1977 में उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में हुई थी। हालांकि जब इसकी स्थापना हुई उस समय इसका उद्देश्य मुस्लिम समाज के विद्यार्थियों की मदद करना था, लेकिन इसके बाद जब सफदर नागौरी और आमिल परवेज के हाथों में कमान आई तो इसका पहली बार स्वरूप बदला। 1992 के बाद सिमी पूरी तरह कट्टरपंथी हो गया था। अब सिमी आतंकियों के लिए मददगार बनने  लग गया था।

आज सिमी आतंकियों को अपने मंसूबे पूरे करने के लिए किराये के मकान रखना, वाहन व अन्य सामान उपलब्ध करवाने वाली यूनिट के रूप में काम करने लगा था। इससे आतंकवादियों को स्थानीय स्तर पर मदद मिलना शुरू हो गई थी।  लश्कर व तैयबा जैसे खूंखार आतंकी संगठन के लोगों तक को सिमी के लोग मदद करते थे, बाकि समय में समाज के बीच जाकर वैमनस्यता के बीज बोने व लोगों को भड़काने का काम भी सिमी ने शुरू कर दिया था। ये सिमी का पहला बदलाव था। इस बदले स्वरूप में कट्टरता की सीमा पर पहुंच चुके सिमी पर 2001 में भारत सरकार ने प्रतिबंध लगा दिया था। इस प्रतिबंध के बाद से ही सिमी के और अधिक खूंखार व दूसरे बदलाव का सिलसिला शुरू हुआ।

प्रतिबंध के बाद सिमी की पहली पंक्ति के अधिकांश नेता जेल चले गए बाकि बचे  कुछ कट्टरपंथियों ने इसे खूनी रूप दे दिया और फिर इंदौर में एटीएस जवान की हत्या सहित कई हत्याएं कीं। संगठन पर प्रतिबंध लगाने के बाद इस संगठन की फंडिंग पर भी लगाम लगा दी गई थी। सिमी के लोगों ने बैंकों को लूटना शुरू किया। विजयागंज मंडी सहित अन्य बैंकों को लूटा। इसके साथ ही सिमी ने स्लीपर सेल बनाना शुरू किया। इन स्लीपर सेलों में अधिकांश कमजोर परिवारों के उन युवकों को टारगेट किया गया जिनकी माली हालत कमजोर होकर वे किसी नशे की लत के शिकार हों।
 
इसी बीच सफदर नागौरी सहित सिमी के अन्य नेताओं ने सिमी SIMI में से आगे का S और पीछे का I हटाकर IM बनाया। आईएम का मतलब इंडियन मुजाहिदीन। ये सिमी का अब तक का सबसे बड़ा बदलाव था। ये ऐसा बदलाव था जो इस संगठन के ऐसे रूप से आतंकी संगठन होने की पुष्टि करता था। हालांकि इस संगठन खुफिया एजेंसियों की सक्रियता व सरकार की दृढ़ इच्छा शक्ति के चलते इस संगठन को जल्दी ही जमींदोज कर दिया गया। 1977 से लेकर 2008 तक सिमी से लेकर इंडियन मुजाहिदीन के रूप में सिमी ने अपने चार रूप संगठन के उद्देश्य व काम के तरीकों को बदल लिया था। एक संगठन जो कि मदद के लिए बना था आते-आते आतंकवाद व अलगाववाद की फैक्ट्री में तब्दील हो गया था।

2008 में सफदर नागौरी सहित अन्य आतंकवादी गिरफ्तार होने के साथ ही वहां पर तो सिमी खत्म होता नजर आ रहा था लेकिन इस प्रतिबंध के बाद सिमी के थिंक टैंकों ने अपने मंसूबों को जिंदा रखा उसे अंजाम तक पहुंचाने के लिए सिमी के कहने पर पीएफआई नाम के नए संगठन को तैयार करने का काम शुरू कर दिया था। 15 सालों में पीएफआई ने न सिर्फ देश में अपनी जड़ों को मजबूत किया बल्कि अपनी एक राजनीतिक शाखा को भी तैयार किया। इसके माध्यम से वो देशभर में अपनी राजनीतिक धाक जमाना चाहता है।

राजनीतिक विंग इसलिए क्योंकि सिमी पर लगे प्रतिबंध के बाद आतंक का साम्राज्य चलाने वाले खुरापातियों को ये समझ में आ गया था कि उसे अपने काम को पूरा करने के लिए राजनीतिक हस्तक्षेप रखना जरूरी होगा। इसके साथ ही पीएफआई ने समाज की अपनी विचारधारा को लगातार पोषित करने के लिए वर्ग में अलग-अलग नाम से काम करना शुरू किया। वर्तमान में मालवांचल में पीएफआई की तरह काम करने वाले लगभग आधा दर्जन संगठन सक्रिय हैं, जबकि देशभर में करीब 100 से अधिक छोटे-बड़े संगठन खुफिया पड़ोसियों के रडार पर हैं जो कट्टरता और फिर आतंकवाद को पैदा करने के काम में लगे हैं। हालांकि 2014 के पहले इस तरह के संगठनों का आंकड़ा काफी बड़ा था। अकेले मध्यप्रदेश में उस समय लगभग 65 से ज्यादा संगठन सक्रिय थे, लेकिन 2014 के बाद सरकार में इस तरह के तमाम संगठन के नेताओं की एक-एक गतिविधि को बारीकी से ऑब्जर्व किया और इन संगठनों को होने वाली फंडिंग पर लगाम लगाई।

इन संगठन से जुड़े नेताओं की गतिविधियों को ट्रेक किया। इसी के चलते पीएफआई के एक बड़े ट्रांजैक्शन पर खुफिया एजेंसियों की नजर पड़ी। पीएफआई के इस सेन्ट्रलाइज एकाउंट में आई फंडिंग के बाद से ही खुफिया एजेंसियां बीते दो साल में पीएफआई से जुड़े तमाम लोगों व संस्थापकों की जानकारियां जुटाने में लगी थीं। इसके बाद ही देशभर में कार्रवाइयों को अंजाम दिया गया। कुल मिलाकर ये सिमी का ही रूप था। इस तरह से 45 सालों के इस सफर में सिमी के अब तक पांच मुखौटे सामने आ चुके हैं, लेकिन अभी सिर भी कई चेहरों से नकाब हटना बाकी है। हालांकि खुफिया एजेंसियों ने अब तक सामने आए इस तरह के तमाम संगठनों की फंडिंग पर लगाम लगाकर कई संगठनों को नेस्तनाबूत कर दिया है।

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पीएफआई के मंसूबों का खुलासा होते ही भारत सरकार ने इस पर प्रतिबंध लगा दिया है, लेकिन आतंकी पौध तैयार करने वाली इस नई नर्सरी का खुलासा होने के बाद अब खुफिया एजेंसियों को ऐसे और संगठनों की भी तलाश है, जो 2001 में सिमी पर प्रतिबंध लगने के बाद अस्तित्व में आए हैं और चोला बदलकर काम कर रहे हैं।

अकेले पीएफआई की इस तरह की शाखाएं अभी मालवांचल सहित देशभर में सक्रिय हैं जो समाज के अलग-अलग वर्गों में अलग-अलग नामों से काम कर रही हैं। इनमें से कुछ ही जानकारी खुफिया एजेंसियों को है। खास और चौंकाने वाली बात यह है कि इन संगठनों में अधिकांश वे लोग हैं जो 2001 में सिमी पर प्रतिबंध के पहले इस आतंकी संगठन के सम्पर्क में थे या इससे जुड़े हुए थे। कुल मिलाकर पीएफआई की नींव में सिमी ही है।

देशभर में इस वक्त ऐसे दर्जनों संगठन काम कर रहे हैं जो सिमी की विचारधारा दूसरी खाल पहनकर पोषित व पल्लवित करने का काम कर रहे हैं। हालांकि समय-समय पर खुफिया एजेंसियों को मिलने वाले इनपुट के बाद स्थानीय स्तर पर सक्रिय रहने वाले इस तरह के कई संगठनों को कुचलने का काम भी 2014 के बाद आई सरकार ने किया है।

 

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