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सीहोर का गौरव दिवस: महाकवि कालिदास ने अपने कई ग्रन्थ सीहोर में रचे, शरबती गेहूं ने दिलाई पूरी दुनिया में पहचान

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सीहोर शहर का गौरव दिवस 29 नवंबर को मनाया जाएगा। गौरव दिवस समारोह में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी शिरकत करेंगे। सीहोर भले ही छोटा जिला कहा जाता हो पर उसकी पहचान बहुत बड़ी है। दुनियाभर में शरबती गेहूं उसे प्रसिद्ध करता है। मान्यता ये भी है कि महाकवि कालिदास ने अपने कई ग्रंथ सीहोर में रचे थे। 

लोगों का कहना है कि सीहोर का प्राचीन नाम सिद्धपुर है, जो यहां बहने वाली सीवन नदी के नाम पर रखा गया है। सीहोर धार्मिक, ऐतिहासिक, पौराणिक नगरी मानी जाती है, इसके साथ ही स्वतंत्रता संग्राम के लिए ये प्रसिद्ध रहा है। सीहोर चंद्रगुप्त, हर्षवर्धन, अशोक तथा राजा भोज से लेकर पेशवाओं के राज्य का अंग रहा है। महाकवि कालिदास ने अपने कुछ ग्रंथों की रचना भी सीहोर में ही की थी। महाकवि कालिदास से सीहोर के इस रिश्ते के कारण पहला कालिदास समारोह सीहोर में ही आयोजित किया गया था।

सीहोर की प्रसिद्धि उस पेशवा कालीन प्राचीन चिंतामन गणेश मंदिर से है, जो कस्बे के एक छोर पर बना हुआ है। कहते हैं कि इस प्रकार के मंदिर पूरे देश में केवल चार स्थानों पर ही हैं। मान्यता है कि भगवान गणेश की यह प्रतिमा स्वयं उज्जयिनी के महाराजा विक्रमादित्य यहां लेकर आए थे। सीहोर को गेटवे ऑफ मालवा भी कहा जाता है। यहां के कस्बे में पेशवा कालीन इमारतों की झलक देखने को मिलती है। राम मंदिर, शिव मंदिर, हनुमानगढ़ी जैसे मंदिर पेशवा कालीन स्थापत्य का बेजोड़ नमूना है। सीहोर शरबती गेहूं की पैदावार के लिए पूरी दुनिया में जाना जाता है। बड़ी-बड़ी कम्पनियां अपने गेहूं व आटे के पैकेट पर सीहोर का शरबती गेहूं नाम का उल्लेख करते हैं। 

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सीहोर शहर का गौरव दिवस 29 नवंबर को मनाया जाएगा। गौरव दिवस समारोह में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी शिरकत करेंगे। सीहोर भले ही छोटा जिला कहा जाता हो पर उसकी पहचान बहुत बड़ी है। दुनियाभर में शरबती गेहूं उसे प्रसिद्ध करता है। मान्यता ये भी है कि महाकवि कालिदास ने अपने कई ग्रंथ सीहोर में रचे थे। 

लोगों का कहना है कि सीहोर का प्राचीन नाम सिद्धपुर है, जो यहां बहने वाली सीवन नदी के नाम पर रखा गया है। सीहोर धार्मिक, ऐतिहासिक, पौराणिक नगरी मानी जाती है, इसके साथ ही स्वतंत्रता संग्राम के लिए ये प्रसिद्ध रहा है। सीहोर चंद्रगुप्त, हर्षवर्धन, अशोक तथा राजा भोज से लेकर पेशवाओं के राज्य का अंग रहा है। महाकवि कालिदास ने अपने कुछ ग्रंथों की रचना भी सीहोर में ही की थी। महाकवि कालिदास से सीहोर के इस रिश्ते के कारण पहला कालिदास समारोह सीहोर में ही आयोजित किया गया था।

सीहोर की प्रसिद्धि उस पेशवा कालीन प्राचीन चिंतामन गणेश मंदिर से है, जो कस्बे के एक छोर पर बना हुआ है। कहते हैं कि इस प्रकार के मंदिर पूरे देश में केवल चार स्थानों पर ही हैं। मान्यता है कि भगवान गणेश की यह प्रतिमा स्वयं उज्जयिनी के महाराजा विक्रमादित्य यहां लेकर आए थे। सीहोर को गेटवे ऑफ मालवा भी कहा जाता है। यहां के कस्बे में पेशवा कालीन इमारतों की झलक देखने को मिलती है। राम मंदिर, शिव मंदिर, हनुमानगढ़ी जैसे मंदिर पेशवा कालीन स्थापत्य का बेजोड़ नमूना है। सीहोर शरबती गेहूं की पैदावार के लिए पूरी दुनिया में जाना जाता है। बड़ी-बड़ी कम्पनियां अपने गेहूं व आटे के पैकेट पर सीहोर का शरबती गेहूं नाम का उल्लेख करते हैं। 

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