मध्यप्रदेश

पुष्पराजगढ़ में पर्वत बचाओ अभियान: राजाघाट पहाड़ में हरियाली महोत्सव का आयोजन, अत्याधिक दोहन से भयावह संकट, पौधा रोपण कर बचाएंगे प्राकृति, आदिवासी धरोहर को संवारने नया सवेरा

अनूपपुर। पुष्पराजगढ़ में मेकल पर्वतों को बचाने पवर्त बचाओ अभियान शुरू किया गया है. जंगलों की अंधाधुंध कटाई और धरती की बेहिसाब दोहन से भंयाकर स्थिति प्रकट हो रही है. ऐसे में आदिवासी समाज के लोग अब एकजुट होकर पौधरोपण की वीणा उठाएं हैं. पर्वत बचाओ अभियान के तहत राजाघाट पहाड़ में हरियाली महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है. अत्याधिक दोहन से भयावह संकट को परास्त करने पौधरोपण कर प्राकृति बचाने आदिवासी समाज के लोग निकल रहे हैं. आदिवासी धरोहर को बचाने नये सवेरे का आगाज कर रहे हैं, जिसके बैठक अमगवां में हुई. इस दौरान हीरा सिंह श्याम समेत अदिवासी समाज के कई दिग्गज मौजूद रहे.

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पुरातन सबसे श्रेष्ठ महान पर्वत श्रृंखला श्रेणी अनादिकाल से प्रसिद्ध भारतीय साहित्य,दर्शन,पुराण आदि में गौरवपूर्ण स्थान को प्राप्त झरने वाले इस दिव्य पर्वत में अनादिकाल से आदिवासी वनवासी गिरिजन जबसे सृष्टि आरंभ हुई है तब से हरियाली अमावस्या चले आ रहे हैं ,इनकी परम्परिक गीत त्यौहार तथा परम्परिक खेल आदि जीवन मे क्रियाकलाप में रचा बसा है.

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आज की सबसे वैश्विक समस्याओं में जलवायु परिवर्तन. तापमान की बढ़ती हुई समस्या आने वाले दिनों में पर्यावरण संतुलन तवाह होने वाला है.प्राणी जगत में भयावह संकट निर्मित होना तय है,आधुनिक विश्व पूर्ण तरह से खोखला और अशांति पूर्ण है. सभ्यता के उत्कर्ष काल मे प्राणी जगत में हाहाकार एवं अशांति दुर्भाग्यपूर्ण है,इसका मूल वजह प्रकृति से विमुख होना है.

भारत सरकार भी वैश्विक मंच में व्यक्त करता है कि आतंकवाद और जलवायु परिवर्तन ही दुनिया की प्रमुख समस्या है.प्रकृति के विरुद्ध चलना ही दोनों समस्याओं का जड़ है| सम्पूर्ण सृष्टि को भोग का इरादा रखना ही आतंकवाद एवं जलवायु परिवर्तन का मूल कारण है.

जब हम मैकल पर्वत पुरातन सभ्यता एवं संस्कृति की ओर दृष्टि रखते हैं तो पता चलता है भारत की सम्पूर्ण पर्वत श्रखला यहाँ तक कि हिमालय से पुराना पर्वत है यहाँ पर अनादि काल से ऋषि,मुनि,दार्शनिक,विद्वान, तपस्यारत साधु महात्माओं को संरक्षण देने वाली जनजातीय समाज निवासरत है| जनजातीय समाज प्रारम्भ से प्रकृति पूजक रही है इनके शक्ति उवासन के स्त्रोत में व्रक्ष एवं पर्वत नदिया मौजूद रही हैं | इसके परम्परिक त्योहार लोकगीत,नृत्य एवं खेल सम्पूर्ण संस्कृति धारा में आज भी मैजूद है.

इसी तारतम्य में इस वर्ष मध्यप्रदेश सरकार एवं भारत सरकार के सहयोग से ग्राम पंचायत अमगवां में पुरातन हरियाली अमावस्या पर्व मनाने का सार्वजनिक निर्णय लिया गया है| जिसमें मुख्यरूप से ‘वैश्विक समस्याओं पर निदान एवं जनजातियों के प्रमुख त्यौहार पर विचार चिंतन के अलावा ”एक घर पांच व्रक्ष लगावो कार्यक्रम” में पर्वतों के परम्परिक पौधों के समूह का रोपण किये जाने के साथ नृत्य ,गीत,के साथ ”व्रक्ष पूजन” जनजातीय विचारकों के दृष्टि में पर्यवारण की महत्व विषय पर विचार संगोष्ठी किया जाना सुनिश्चित हुआ है|

आज भारत वर्ष में जलवायु परिवर्तन एवं बढ़ती हुई तापमान को नियंत्रित करने के लिए 40 अरब पौधों की आवश्यकता है| हमारे जनजातीय समाज की संस्कृति में हरियाली अमावस्या पर्व मनाने की धारणा यह है कि प्रकृति को संरक्षित करो और जितना प्रकृति का उपभोग करना है तो पुनः पौधरोपण करो ताकि आने वाली पीढ़ी को जैसा का वैसा सौपा जा सके।

इसलिए जनजातीय समाज मे साजा,आम,पीपल,बरगद,पाकर,जामुन,नीम ,महलोई आदि की पूजन पारंपरिक रीति रिवाज से किया जाता है। इसलिए भारतीय वांगयमय साहित्य दर्शन में जनजातीय समाज को पर्वतों का राजा यक्ष कहा जाता था। ऐसे ही पर्वत में भारत के महान कवि श्री कालीदास जी ” मेघदूत” की।

जनजातीय समाज को प्रोत्साहन देने के लिए हरियाली महोत्सव को सफल बनाने में सहभागिता प्रदान करे.. हरियाली महोत्सव पर्व को ऐतिहासिक मानने के लिए आयोजन समिति कृत संकल्पित है ताकि जनजातीय समाज अपने गौरव पूर्वजों द्वारा स्थापित त्योहारों परम्पराओं के प्रति गर्व महसूस कर सकें…

पुरातन सबसे श्रेष्ठ महान पर्वत श्रृंखला श्रेणी अनादिकाल से प्रसिद्ध भारतीय साहित्य,दर्शन,पुराण आदि में गौरवपूर्ण स्थान को प्राप्त झरने वाले इस दिव्य पर्वत में अनादिकाल से आदिवासी वनवासी गिरिजन जबसे सृष्टि आरंभ हुई है, तब से हरियाली अमावस्या चले आ रहे हैं. इनकी पारम्परिक गीत त्यौहार और पारम्परिक खेल आदि जीवन मे क्रियाकलाप में रचा बसा है.

आज की सबसे वैश्विक समस्याओं में जलवायु परिवर्तन. तापमान की बढ़ती हुई समस्या आने वाले दिनों में पर्यावरण संतुलन तवाह होने वाला है. प्राणी जगत में भयावह संकट निर्मित होना तय है. आधुनिक विश्व पूर्ण तरह से खोखला और अशांति पूर्ण है. सभ्यता के उत्कर्ष काल मे प्राणी जगत में हाहाकार एवं अशांति दुर्भाग्यपूर्ण है,इसका मूल वजह प्रकृति से विमुख होना है.

भारत सरकार भी वैश्विक मंच में व्यक्त करता है कि आतंकवाद और जलवायु परिवर्तन ही दुनिया की प्रमुख समस्या है. प्रकृति के विरुद्ध चलना ही दोनों समस्याओं का जड़ है| सम्पूर्ण सृष्टि को भोग का इरादा रखना ही आतंकवाद एवं जलवायु परिवर्तन का मूल कारण है.

जब हम मैकल पर्वत पुरातन सभ्यता एवं संस्कृति की ओर दृष्टि रखते हैं, तो पता चलता है. भारत की सम्पूर्ण पर्वत श्रखला यहां तक कि हिमालय से पुराना पर्वत है. यहां पर अनादि काल से ऋषि, मुनि, दार्शनिक, विद्वान, तपस्यारत साधु महात्माओं को संरक्षण देने वाली जनजातीय समाज निवासरत हैं. जनजातीय समाज प्रारम्भ से प्रकृति पूजक रही है. इनके शक्ति उवासन के स्त्रोत में व्रक्ष एवं पर्वत नदिया मौजूद रही हैं. इसके परम्परिक त्योहार लोकगीत,नृत्य एवं खेल सम्पूर्ण संस्कृति धारा में आज भी मैजूद है.

इसी तारतम्य में इस वर्ष मध्यप्रदेश सरकार एवं भारत सरकार के सहयोग से ग्राम पंचायत अमगवां में पुरातन हरियाली अमावस्या पर्व मनाने का सार्वजनिक निर्णय लिया गया है, जिसमें मुख्यरूप से ‘वैश्विक समस्याओं पर निदान एवं जनजातियों के प्रमुख त्यौहार पर विचार चिंतन के अलावा ”एक घर पांच व्रक्ष लगावो कार्यक्रम” में पर्वतों के परम्परिक पौधों के समूह का रोपण किये जाने के साथ नृत्य ,गीत,के साथ ”व्रक्ष पूजन” जनजातीय विचारकों के दृष्टि में पर्यवारण की महत्व विषय पर विचार संगोष्ठी किया जाना सुनिश्चित हुआ है.

आज भारत वर्ष में जलवायु परिवर्तन एवं बढ़ती हुई तापमान को नियंत्रित करने के लिए 40 अरब पौधों की आवश्यकता है. हमारे जनजातीय समाज की संस्कृति में हरियाली अमावस्या पर्व मनाने की धारणा यह है कि प्रकृति को संरक्षित करो और जितना प्रकृति का उपभोग करना है तो पुनः पौधरोपण करो ताकि आने वाली पीढ़ी को जैसा का वैसा सौपा जा सके.

इसलिए जनजातीय समाज मे साजा,आम,पीपल,बरगद,पाकर,जामुन,नीम ,महलोई आदि की पूजन पारंपरिक रीति रिवाज से किया जाता है। इसलिए भारतीय वांगयमय साहित्य दर्शन में जनजातीय समाज को पर्वतों का राजा यक्ष कहा जाता था। ऐसे ही पर्वत में भारत के महान कवि श्री कालीदास जी ” मेघदूत” की।

जनजातीय समाज को प्रोत्साहन देने के लिए हरियाली महोत्सव को सफल बनाने में सहभागिता प्रदान करे.. हरियाली महोत्सव पर्व को ऐतिहासिक मानने के लिए आयोजन समिति कृत संकल्पित है ताकि जनजातीय समाज अपने गौरव पूर्वजों द्वारा स्थापित त्योहारों परम्पराओं के प्रति गर्व महसूस कर सकें…

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