
गरियाबंद / देवभोग —गिरीश जगत की रिपोर्ट।
जिस सांसद खेल महोत्सव को प्रतिभाओं की तलाश का मंच कहा गया, वो देवभोग में बजट और जिम्मेदारी की कबड्डी का शिकार बन गया। दूसरे दिन के आयोजन में मैदान की दुर्दशा ऐसी रही कि चार खिलाड़ी लहूलुहान होकर अस्पताल पहुंच गए।
15 साल का खिलाड़ी बादल बघेल, कबड्डी खेलते वक्त कलाई की टूटी हड्डी और हिला हुआ जोड़ लेकर ज़मीन पर गिर पड़ा। 18 वर्षीय हमीत सोनी के सिर पर चोट लगी — दो टांके पड़े। 16 साल की मनीषा और 14 साल की रानी — दौड़ और जंप खेलते हुए घायल — एक की कलाई में सूजन, दूसरी के पैर में चोट।

सवाल ये है — ये महोत्सव था या मौत का न्योता?
आयोजकों की तरफ से जो जवाब है, वो खुद शर्मनाक है:“बजट नहीं था।” तो क्या बिना बजट के जान जोखिम में डाल देना नीति बन गई है? कबड्डी जैसे कॉन्टैक्ट गेम के लिए जहां ज़मीन पर गिरना खेल का हिस्सा है, वहां न मेट बिछाई गई, न रेत डाली गई।
नियम के मुताबिक अगर मेट नहीं बिछाई जा सकती थी, तो 8-10 इंच खुदाई कर रेत भरनी थी। लेकिन यहां एक ट्रिप बालू (₹1000) भी भारी पड़ गया। खेल की जमीन नहीं, बच्चों की हड्डियां टूटीं — पर जिम्मेदार अब भी चुप हैं।

जैसे-तैसे जंप मैदान में दो ट्रिप रेत डाली गई, बाकी जगह सिर्फ मिट्टी और बेपरवाही थी। नतीजा:
- एक खिलाड़ी देवभोग से रेफर
- तीन अन्य प्राथमिक इलाज में ही छोड़ दिए गए
मोनीटरिंग अफसर गायब, जवाब देने से इनकार!
ब्लॉक स्तर के इस आयोजन की निगरानी कर रहे SDM आर.एस. सोरी से जब कई बार संपर्क किया गया। न कॉल उठाया, न जवाब दिया। मतलब साफ है — सिर्फ नाम लिखवाने आए थे, ज़िम्मेदारी निभाने नहीं।

स्थानीय शिक्षा अधिकारी का रटा-रटाया जवाब
विनय पटेल (खंड शिक्षा अधिकारी, देवभोग) ने बताया कि घायल खिलाड़ियों को प्राथमिक उपचार दिया गया। बादल का इलाज ओडिशा के निजी अस्पताल में चल रहा है, जनपद CEO वहां मदद के लिए पहुंचे हैं।

तो क्या हर बार हादसे के बाद ही इलाज और मुआवजा मिलेगा?
खिलाड़ियों के सपने जुगाड़ में कुचले जा रहे हैं, और जिम्मेदार सिर्फ बयान देने में व्यस्त हैं। बिना बजट के आयोजन करना सिर्फ साहस नहीं, एक घोर गैरजिम्मेदारी है।

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