
गिरीश जगत की रिपोर्ट। गरियाबंद। छत्तीसगढ़
गरियाबंद जिले के देवभोग थाना क्षेत्र का माडागांव — शांत, साधारण और क्रिकेट प्रेम से भरा यह गांव अचानक अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट जगत की सुर्खियों में आ गया। वजह कोई रिकॉर्ड-ब्रेकिंग पारी नहीं, बल्कि एक अद्भुत लापरवाही और उससे जुड़ा सिम कार्ड का मामला। भारत के उभरते क्रिकेट स्टार रजत पाटीदार का निजी मोबाइल नंबर, गलती से इस गांव के एक युवक को अलॉट हो गया।
नतीजा यह हुआ कि विराट कोहली, एबी डिविलियर्स और अन्य क्रिकेटरों के कॉल इस ग्रामीण के मोबाइल पर आने लगे। जो होना था, वही हुआ — ग्रामीण युवकों ने इसे किसी शरारत या मजाक समझकर हल्के में लिया, और लापरवाही का यह सिलसिला तब तक चलता रहा, जब तक खुद रजत पाटीदार ने पुलिस की मदद से सिम वापस नहीं ले लिया।

कैसे शुरू हुआ यह नंबर का ड्रामा
28 जून को, माडागांव के 21 वर्षीय मनीष बीसी ने गांव के बीसी मोबाइल सेंटर से एक सिम कार्ड अलॉट कराया। दुकान संचालक शिशुपाल ने जियो कंपनी की सेवा के तहत मनीष को नंबर 8103277600 जारी कर दिया। यह प्रक्रिया उतनी ही सामान्य थी जितनी रोज होती है, लेकिन असली ट्विस्ट इस बात में था कि यह वही नंबर था, जो कुछ समय पहले तक रजत पाटीदार के नाम पंजीकृत था और लगभग 90 दिनों से बंद पड़ा था।
सप्ताहभर बाद, मनीष और उसके मित्र खेमराज ने इस नंबर पर व्हाट्सऐप इंस्टॉल किया। इंस्टॉल होते ही, प्रोफाइल पिक्चर में रजत पाटीदार की तस्वीर उभर आई। दोनों ने इसे कोई तकनीकी गड़बड़ी या “सॉफ्टवेयर का खेल” मानकर नजरअंदाज कर दिया। लेकिन कुछ दिनों बाद, इस ‘खेल’ का मजा बढ़ने वाला था।

कोहली-डीविलियर्स के कॉल और गांव में मजाक
कुछ ही दिनों में, मनीष के फोन पर अंजान नंबरों से कॉल आने शुरू हो गए। कॉल करने वाले खुद को कभी विराट कोहली बताते, कभी युजवेंद्र चहल, तो कभी दक्षिण अफ्रीका के दिग्गज एबी डिविलियर्स। क्रिकेट के शौकीन लेकिन बड़े खिलाड़ियों की आवाज पहचानने में असमर्थ मनीष और खेमराज को यह सब किसी प्रैंक कॉल जैसा लगा। वे भी हल्के-फुल्के अंदाज में जवाब देते और मजाक उड़ाते रहे।
15 जुलाई तक, यह सिलसिला बदस्तूर चलता रहा। गांव के लोग भी इस ‘क्रिकेट कॉल कांड’ का आनंद लेने लगे। युवकों को इस बात का अंदाजा ही नहीं था कि ये कॉल मजाक नहीं बल्कि असली क्रिकेट सितारों की तरफ से आ रहे थे — और वे रजत पाटीदार से जुड़ने की कोशिश कर रहे थे।
खुद पाटीदार का कॉल – और पुलिस की एंट्री
एक दिन, मनीष के फोन पर खुद रजत पाटीदार का कॉल आया। उन्होंने प्यार से कहा — “भाई, यह सिम मेरा है, कृपया मुझे लौटा दो।” लेकिन मनीष और खेमराज को यकीन नहीं हुआ। उन्होंने इस कॉल को भी मजाक समझा और हंसते-खेलते बात करते रहे।
रजत ने जब यह देखा कि गुजारिश काम नहीं कर रही, तो उन्होंने सख्त लहजे में कहा — “मैं पुलिस भेजता हूं।” और वाकई, 10 मिनट बाद पुलिस उनके घर पहुंच गई। यह देखकर युवकों को स्थिति की गंभीरता का अंदाजा हुआ।

साइबर सेल का ऑपरेशन और नंबर की वापसी
दरअसल, रजत पाटीदार पहले से ही एमपी साइबर सेल के संपर्क में थे। साइबर टीम ने मामले को गंभीरता से लिया और गरियाबंद पुलिस की मदद से कार्रवाई शुरू की। देवभोग थाना प्रभारी फैजुल शाह होदा के मुताबिक, रजत का यह नंबर लगभग 90 दिनों तक बंद था, जिसके बाद कंपनी ने उसे दोबारा अलॉट कर दिया।
साइबर सेल के कहने पर पुलिस ने मनीष के पिता गजेन्द्र बीसी से संपर्क किया। गजेन्द्र ने सहमति से सिम पुलिस को सौंप दिया, जिसे बाद में रजत पाटीदार के पते पर भेज दिया गया।
गांव के युवकों के लिए यादगार पल
मनीष और उसके दोस्त खेमराज, जो एक किराना दुकान चलाते हैं और क्रिकेट के जुनूनी फैन हैं, इस घटना को कभी नहीं भूल पाएंगे। खेमराज विराट कोहली का कट्टर प्रशंसक है और मजाक-मजाक में उसकी बात कोहली से हो गई — यह उसके लिए किसी सपने से कम नहीं।
दोनों युवकों का कहना है कि वे चाहते तो सिम अपने पास रख सकते थे, लेकिन जब आग्रह किया गया तो उन्होंने इसे लौटा दिया। उन्हें उम्मीद है कि एक दिन रजत पाटीदार खुद उनसे संपर्क करेंगे और इस मदद के लिए शुक्रिया कहेंगे।

लापरवाही पर सवाल
यह घटना जितनी मजेदार है, उतनी ही चुभने वाली भी। सवाल यह है कि एक अंतरराष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी का निजी नंबर इतनी लापरवाही से कैसे रीसाइकल कर दिया गया? दूरसंचार कंपनियां अक्सर निष्क्रिय नंबरों को पुनः अलॉट कर देती हैं, लेकिन संवेदनशील मामलों — खासकर पब्लिक फिगर्स — में यह एक गंभीर सुरक्षा चूक है।
यह केवल प्राइवेसी का मामला नहीं, बल्कि सुरक्षा का भी सवाल है। अगर यह सिम किसी गलत हाथों में चला जाता, तो इसका इस्तेमाल धोखाधड़ी, फेक मैसेज या ब्लैकमेल के लिए हो सकता था। इस घटना ने दूरसंचार सेवाओं के प्रबंधन पर बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं।
सबक और चेतावनी
माडागांव के लिए यह वाकया भले ही एक मनोरंजक याद बन गया हो, लेकिन यह देशभर में नंबर रीसाइकलिंग की प्रक्रिया की खामियों को उजागर करता है। ऐसे मामलों में दूरसंचार कंपनियों को चाहिए कि वे पब्लिक फिगर्स के निष्क्रिय नंबरों को लंबे समय तक रिजर्व रखें, ताकि उनकी पहचान और प्राइवेसी सुरक्षित रहे।
रजत पाटीदार का नंबर गांव के एक साधारण युवक तक पहुंचना और फिर क्रिकेट के दिग्गजों के कॉल का सिलसिला — यह कहानी हंसी-मजाक से शुरू हुई, लेकिन अंत में लापरवाही के खिलाफ एक कड़ा सबक छोड़ गई।

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