
गरियाबंद से रिपोर्ट | विशेष संवाददाता गिरीश जगत
छत्तीसगढ़ के गरियाबंद का जंगल, घना है। सुबह-सुबह घाटियों में धुंध ऐसे उतरती है जैसे कोई सफेद चादर फैला दी गई हो। दूर कहीं से कभी-कभी हल्की सी आरी चलने की आवाज़ आती है, जो धीरे-धीरे जंगल की सांस में गुम हो जाती है। लेकिन इस बार यहां सिर्फ पेड़ों की सरसराहट नहीं थी — यहां था ‘पुष्पा’ जैसी हिम्मत, चालाकी और बहादुरी की असली कहानी।
उदंती-सीता नदी अभ्यारण्य के भीतर एक ऐसा नेटवर्क सक्रिय था, जो सागौन तस्करी को नए ढंग से अंजाम दे रहा था । नदी के बहाव में लकड़ी बहाकर। और उनके लिए हर लठ्ठा करोड़ों का सपना था, लेकिन वन विभाग की टीम ने शातिर तस्करों के मनसूबे पर पानी फेर दिया।

‘पुष्पा स्टाइल’ प्लानिंग: नदी बना तस्करी का हाईवे
ओडिशा से लगती सीमांत बस्तियों से आए तस्कर अब जंगल काटने में पुराने तरीकों को छोड़ चुके हैं। पगडंडी छोड़ो, नदी पकड़ो — यही था उनका नया फॉर्मूला। वे चार-चार सागौन के लठ्ठों को रस्सियों से जोड़ते, फिर उन्हें उदंती नदी की धारा में छोड़ देते। बहाव उन्हें ले जाता सीधा ओडिशा के सिंदूर शील घाट तक, जहां तस्कर पहले से कमांडो स्टाइल में घात लगाए रहते। यह कोई फिल्मी सीन नहीं, बल्कि असली जंगल की असली साजिश थी।
सीक्रेट सूचना से साजिश का भंडाफोड़
सप्ताह भर पहले अभ्यारण्य के उपनिदेशक वरुण जैन को एक संकेत मिला — जंगल की मिट्टी जैसे कोई फुसफुसा रही हो कि दक्षिण उदंती में कुछ हलचल है। स्थानीय कर्मचारियों ने रात के समय नदी में गतिविधि बढ़ने की खबर दी थी। वरुण जैन की टीम ने फौरन मोर्चा संभाला। दो दिन पहले, इलाके में घेराबंदी शुरू कर दी गई। शनिवार रात को, जैसे ही हलचल फिर दिखी — ऑपरेशन ऑन हो गया।

जंगल की रात: जहां चौकीदार ‘एक्शन हीरो’ बने
अंधेरी रात, किनारे पर घात लगाए वन चौकीदार, और नदी में बहते लठ्ठों की हल्की आवाजें — सीन किसी थ्रिलर फिल्म जैसा था। तभी अचानक कुछ तस्करों की हलचल दिखाई दी। चौकीदारों ने बिना वक्त गंवाए दौड़ लगाई। तस्कर लठ्ठे छोड़कर भागे, लेकिन कुछ ने बहाव में चार लठ्ठों को एक साथ बहा दिया।
इसी बीच कर्मचारियों ने जान जोखिम में डालकर नदी में छलांग लगाई। लहरें तेज थीं, पानी में लकड़ी के भारी टुकड़े थे, लेकिन किसी ने नहीं सोचा — कि ‘सेफ्टी गियर’ है या नहीं। लक्ष्य सिर्फ एक था — जंगल को बचाना।
नेटवर्क ध्वस्त, प्लान फ्लॉप
तस्करों को लग रहा था कि नदी उनका सबसे सेफ रूट है। लेकिन इस बार वरुण जैन की रणनीति ने इस पुष्पा स्टाइल आइडिया को भी फेल कर दिया। जैसे ही लकड़ी सिंदूर शील घाट पर पहुंचती, वहां से उसे आगे ट्रकों में लादकर भेजा जाता। लकड़ी पर खास लाल निशान, और तय समय पर पहुंच — सब कुछ एक प्रफेशनल सेटअप जैसा। लेकिन अब लकड़ियां जप्त हैं, लठ्ठे जब्त हैं, और पूरे नेटवर्क का पर्दाफाश हो चुका है।
20 ऑपरेशन, 80 तस्कर — जंगल में ‘सुपरकॉप’ की एंट्री
वरुण जैन का नाम अब जंगल के भीतर रेड अलर्ट की तरह गूंजता है। दो साल में उनकी अगुआई में 20 बड़े ऑपरेशन हुए। ओडिशा में घुसकर कार्यवाही की गई, 80 लकड़ी तस्कर पकड़े गए। इतना ही नहीं, 50 से ज़्यादा वन्य प्राणी तस्करों को भी सलाखों के पीछे भेजा गया। लाखों रुपये की इमारती लकड़ी जब्त की गई। इस बार की कार्रवाई में भी सब कुछ उसी स्टाइल में हुआ — घेराबंदी, ट्रैकिंग और तस्करों के आइडिया को फेल करना।

असली हीरो: जिन्होंने पानी में छलांग लगाई
ऑपरेशन में शामिल एक कर्मचारी ने बताया, “सर, पानी बहुत तेज़ था। अगर एक लठ्ठा भी हाथ से छूट जाता तो तस्कर पूरा माल निकाल ले जाते।” एक वन गार्ड ने इशारा किया जंगल की ओर, “यह सिर्फ लकड़ी नहीं, जंगल की सांस है।” स्टाफ ने माना कि इतनी सख्त कार्रवाई पहले कभी नहीं देखी गई। अब पूरे क्षेत्र में सख्ती है, और हर निगरानी टीम हाई-अलर्ट पर है।
वरुण जैन का बयान: “अब तस्कर नहीं बचेंगे”
उपनिदेशक वरुण जैन ने बताया,
“नदी के बहाव से तस्करी की सूचना पर घेराबंदी की गई थी। लठ्ठे जप्त कर लिए गए हैं। तस्कर ओडिशा के हैं, पहचान की जा रही है। जल्द ही गिरफ्तार कर लेंगे।” उनका साफ कहना है कि अब चाहे रास्ता जंगल हो या नदी — कानून से बचना नामुमकिन है।
‘फूल नहीं, जंगल का खूँखार कांटा’: आखिरी इशारा
यह कहानी सिर्फ तस्करी की नहीं, जंगल के लिए लड़ने वालों की है। जहां तस्करों की सोच ‘पुष्पा’ स्टाइल में चलती है, वहां वर्दीधारी असली नायक बनकर सामने आते हैं — बिना डायलॉग के, सिर्फ हिम्मत के दम पर।आज उदंती नदी में बहती हर लहर, उन लकड़ियों की कहानी कहती है — जो बचा ली गईं। जो जंगल की जड़ों में वापस नहीं लौट सकीं, लेकिन जिन्होंने अपने आप में एक चेतावनी छोड़ दी: अब जंगल तस्करों के लिए नहीं, बहादुरों के लिए बचेगा।
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