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Project Cheetah: दक्षिण अफ्रीकी विशेषज्ञों की नजर नामीबियाई चीतों पर, सबकुछ ठीक रहा तो भारत को देंगे अपने चीते

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मध्यप्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में नामीबिया से आए चीते धीरे-धीरे नए माहौल में रम रहे हैं। पिछले आठ दिन में विशेषज्ञों ने प्रोजेक्ट से जिस तरह की उम्मीद लगा रखी थी, वैसा ही हुआ है। कुछ भी अनपेक्षित नहीं हुआ है। इससे प्रोजेक्ट चीता से जुड़े सभी अधिकारी और कर्मचारी खुश हैं। नामीबिया से आए विशेषज्ञ तो लौट गए हैं, लेकिन दक्षिण अफ्रीकी विशेषज्ञ अब भी कूनो में हैं। सबकुछ ठीक रहा तो ही चीतों की अगली खेप दक्षिण अफ्रीका से भारत आएगी। दरअसल, अभी आठ ही चीते आए हैं। पांच साल में पचास चीतों को लाकर बसाने की योजना है प्रोजेक्ट चीता। 

क्वारंटाइन बाड़ों से चीतल पर नजर
कूनो नेशनल पार्क में नए माहौल के प्रति अभ्यस्त हो रहे नामीबियाई चीतों को फिलहाल क्वारंटाइन बाड़ों में ही रहना होगा। एक महीना यहां बिताने के बाद ही उन्हें बड़े बाड़ों में छोड़ा जाएगा, जहां चीतल समेत अन्य जानवर रखे गए हैं और चीते खुद शिकार करने लगेंगे। फिलहाल इन चीतों को क्वारंटाइन बाड़ों में ही ताजा मांस परोसा जा रहा है। अब तक तो भैसे का मांस ही परोसा गया है। इस समय यह चीते अपने क्वारंटाइन बाड़ों से बाहर विचरण कर रहे हिरणों और चीतल को देख रहे हैं। 
 
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने छोड़ा था चीतों को
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने जन्मदिन 17 सितंबर पर चीतों को कूनो नेशनल पार्क में छोड़ा था। नामीबिया से आए पांच मादा और तीन नर चीतों को विशेष रूप से तैयार बाड़ों में रखा गया है। इन पर निगाह रख रहे विशेषज्ञों के अनुसार एक-दो दिन बाद ही चीते मस्ती में नजर आने लगे। कभी पेड़ की छांव में तो कभी एक-दूसरे के साथ खेलने लगते। इन्हें एक दिन छोड़कर भैंस का मांस परोसा जा रहा है। इन्हें बाड़े के बाहर जंगल में विचरण करते चीतल-सांभर की ओर टकटकी लगाए भी देखा जा रहा है। एक माह बाद ही इन चीतों को बड़े बाड़े में छोड़ा जाएगा, जहां इन्हें शिकार उपलब्ध होगा। डीएफओ पीके वर्मा के अनुसार अभी चीते नींद पूरी कर रहे हैं। भरपेट भोजन कर रहे हैं। चीतों के व्यवहार से नामीबिया में बैठे विशेषज्ञ भी संतुष्ट हैं। पीएमओ दिल्ली, साउथ अफ्रीका, नामीबिया, भारतीय वन्यजीव संस्थान के अलावा सुप्रीम कोर्ट की कमेटी की भी चीतों के पुनर्वास पर नजर है।

निगरानी के तरीके
कूनो डीएफओ पीके वर्मा के अनुसार इंसानों की मौजूदगी देख चीते विचलित हो जाते हैं। दक्षिण अफ्रीका और कूनो के विशेषज्ञ तीन किलोमीटर दूर गाड़ी रखते हैं। मोबाइल साइलेंट कर चीतों पर नजर रखने पैदल ही जाते हैं। बाड़े से दूर ग्रीन नेट से कवर मचान में केवल आंखों के लायक छेद हैं, इन छेद से ही विशेषज्ञ उनके व्यवहार पर नजर रख रहे हैं। नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका एक-एक विशेषज्ञ दल लौट चुका है। अब केवल दक्षिण अफ्रीका के तीन विशेषज्ञों की टीम रुकी है।
 
नामकरण के लिए प्रतियोगिता
आठ चीतों में से एक का नाम प्रधानमंत्री मोदी ने आशा रखा था। अन्य के नाम नामीबिया में रखे गए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को मन की बात कार्यक्रम में कहा कि चीतों को लेकर हम जो अभियान चला रहे हैं, उसका नाम क्या होना चाहिए? चीतों को किन नामों से बुलाया जाना चाहिए ? इसके लिए माय जीओवी एप पर प्रतियोगिता आयोजित की जाएगी। ये नामकरण अगर ट्रेडिशनल हो तो अच्छा रहेगा क्योंकि अपने समाज और संस्कृति, परंपरा और विरासत से जुडी कोई भी चीज हमें अपनी ओर आकर्षित करती है। पीएम मोदी ने कहा कि कुछ ही दिनों बाद देशवासी चीतों को देख सकेंगे।

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मध्यप्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में नामीबिया से आए चीते धीरे-धीरे नए माहौल में रम रहे हैं। पिछले आठ दिन में विशेषज्ञों ने प्रोजेक्ट से जिस तरह की उम्मीद लगा रखी थी, वैसा ही हुआ है। कुछ भी अनपेक्षित नहीं हुआ है। इससे प्रोजेक्ट चीता से जुड़े सभी अधिकारी और कर्मचारी खुश हैं। नामीबिया से आए विशेषज्ञ तो लौट गए हैं, लेकिन दक्षिण अफ्रीकी विशेषज्ञ अब भी कूनो में हैं। सबकुछ ठीक रहा तो ही चीतों की अगली खेप दक्षिण अफ्रीका से भारत आएगी। दरअसल, अभी आठ ही चीते आए हैं। पांच साल में पचास चीतों को लाकर बसाने की योजना है प्रोजेक्ट चीता। 

क्वारंटाइन बाड़ों से चीतल पर नजर

कूनो नेशनल पार्क में नए माहौल के प्रति अभ्यस्त हो रहे नामीबियाई चीतों को फिलहाल क्वारंटाइन बाड़ों में ही रहना होगा। एक महीना यहां बिताने के बाद ही उन्हें बड़े बाड़ों में छोड़ा जाएगा, जहां चीतल समेत अन्य जानवर रखे गए हैं और चीते खुद शिकार करने लगेंगे। फिलहाल इन चीतों को क्वारंटाइन बाड़ों में ही ताजा मांस परोसा जा रहा है। अब तक तो भैसे का मांस ही परोसा गया है। इस समय यह चीते अपने क्वारंटाइन बाड़ों से बाहर विचरण कर रहे हिरणों और चीतल को देख रहे हैं। 

 

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