
गरियाबंद से गिरीश जगत की रिपोर्ट।
प्रधानमंत्री आवास योजना (PMAY) की साख पर गरियाबंद में बेज़ुबान मजदूरों के खून-पसीने से खेल किया जा रहा है। योजना के तहत अधूरे मकानों को झूठे जियो टैग और कागज़ी खेल के ज़रिये “पूर्ण” बता दिया गया—और नतीजा? 2,000 से अधिक लाभार्थियों की मनरेगा मजदूरी की 3 करोड़ से ज़्यादा की रकम लेप्स हो गई। इस प्रशासनिक लापरवाही या मिलीभगत का सबसे बड़ा नुकसान उन गरीब मजदूरों को हुआ है, जो दिन-रात मिट्टी और ईंट के बीच अपने घर का सपना बुन रहे थे। अब ना घर पूरा मिला, ना मजदूरी की पाई।

कैसे हुआ ये ‘खेला’? आंकड़ों में समझिए घोटाले का मैप
- जिले में कुल 2,000 से अधिक PM आवास अधूरे हैं, जिन्हें कागजों में पूरा बताया गया।
- योजना में हर आवास के लिए 1.2 लाख की राशि तो दी ही जाती है, साथ ही मनरेगा से 90 दिन की मजदूरी (₹23,490) का प्रावधान भी है।
- ये मजदूरी निर्माण की प्रगति के आधार पर मस्टररोल जनरेट कर चरणबद्ध तरीके से दी जानी थी।
- लेकिन जब अधूरे आवास को ही जियो टैगिंग कर ‘पूरा’ बता दिया गया, तो मस्टररोल जेनरेट ही नहीं हुआ — नतीजतन 3 करोड़ से ज़्यादा की मजदूरी राशि सीधे लेप्स हो गई।

देवभोग जनपद: बोगस आवासों का लाइव डेटा
- देवभोग ब्लॉक के 53 पंचायतों में जांच में पता चला —
- 6,850 स्वीकृत आवासों में से 15 जुलाई तक 2,236 को “पूर्ण” बताया गया
- केवल जून-जुलाई में ही 261 ऐसे आवासों की बोगस जियो टैगिंग की गई, जहां 90 दिन की मजदूरी (₹61.30 लाख) का भुगतान होना था
- इन्हीं महीनों में 272 और आवासों में 60 दिन की मजदूरी (₹42.43 लाख) का भी भुगतान नहीं हुआ

मजदूरों का हक मारा गया…किसकी जिम्मेदारी?
मनरेगा के जिला समन्वयक बुद्धेश्वर साहू ने स्वीकार किया कि भुगतान के लिए मस्टररोल जेनरेट नहीं हो सका। उनका तर्क — “हितग्राही ने समय पर मांग नहीं की होगी।”
उन्होंने यह भी जोड़ा, “अब स्वत: संज्ञान लेकर भुगतान की प्रक्रिया शुरू की जा रही है।”
सवाल ये है:
जब मजदूरों को मालूम ही नहीं था कि जियो टैगिंग उनके नाम से फर्जी हो चुकी है, तो मांग कैसे करते?
फर्जीवाड़ा का चेहरा: मां, भाई, पड़ोसी के घर खड़ा कर बना दिया फोटो प्रूफ
इस घोटाले में जियो टैगिंग को लेकर जो फर्जीवाड़ा सामने आया है, वो शर्मनाक है।
- बरबहली के गिरधारी सोरी को उसके छोटे भाई प्रेम सोरी के घर में खड़ा कर दिया गया
- सरगिगुड़ा के बलभद्र को उनकी मां सोनाबती के आवास में
- सिद्धेश्वर को पड़ोसी के घर के सामने खड़ा किया गया
ऐसे ही 500 से अधिक मामलों में नाम बदला, फोटो बदला, लोकेशन बदला — पर रिपोर्ट में मकान ‘पूर्ण’ बता दिया गया।

कागज में मकान पूरे, ज़मीन पर अधूरे… फिर पैसा कहां गया?
इस पूरे मामले में सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि अधिकारियों ने फील्ड वेरिफिकेशन के बगैर आवास “पूर्ण” घोषित कर दिए। सिर्फ प्रशासनिक वाहवाही और रिपोर्टिंग के लिए फर्जी आंकड़े थोप दिए गए।
ज़मीनी हकीकत:
- 2,000 परिवारों के घर अभी भी अधूरे हैं
- 3 करोड़ से ज़्यादा मजदूरी पैसा लेप्स
- झूठी प्रगति रिपोर्ट से अगले चरण की धनराशि की संभावनाएं भी खत्म
किसे बचाया गया, किसे बलि चढ़ाया गया?
19 मई को मामले का खुलासा हुआ।
राज्य स्तरीय जांच में पुष्टि भी हो गई।
तीन आवास मित्र हटाए गए — पर सवाल ये है कि
- इस संगठित घोटाले में सिर्फ तीन लोगों की गलती थी?
- BDO, जनपद CEO, पंचायत सचिव, तकनीकी सहायक, पंचायत प्रतिनिधि — इन सबकी भूमिका पर चुप्पी क्यों?
‘आवास मित्र’ बन गए घोटाले के एजेंट?
सीईओ जिला पंचायत घासी राम मरकाम का कहना है —
“जिम्मेदारी आवास मित्रों की थी, इसलिए उन्हीं पर कार्रवाई हुई। जहां और गड़बड़ी मिली, वहां भी कार्रवाई करेंगे।”
अब सवाल ये है:
- जब गड़बड़ी 500+ मामलों में है तो कार्रवाई सिर्फ 3 पर क्यों?
मंत्री जी, अब आपके संज्ञान में है यह मामला…
गरियाबंद के हजारों गरीब परिवार आज भी फटे छप्पर और धूप में पिघलती उम्मीदों के साथ जी रहे हैं।
मनरेगा का पैसा अगर समय पर दिया जाता तो ईंट जुड़ते, छत चढ़ती, सपने पूरे होते।
अब ये आपके हाथ में है कि — जिम्मेदारों पर एक्शन होगा या रिपोर्टों में सिर्फ खानापूर्ति?
PM Awas Yojana में गरियाबंद घोटाले का मामला क्या है?
गरियाबंद जिले में कई लाभार्थियों के मकान अधूरे हैं, फिर भी सरकारी रिकॉर्ड में इन्हें “पूर्ण” दिखा दिया गया है। साथ ही मनरेगा से मजदूरी भुगतान के नाम पर लाखों-करोड़ों की राशि लिप्सा में चली गई।
मनरेगा से कैसे जोड़ा गया है यह घोटाला?
कुछ गांवों में आवास निर्माण में मनरेगा मजदूरी जोड़ दी गई है, जबकि जमीन पर ऐसा कोई कार्य नहीं हुआ। इस तरह मजदूरी राशि ‘लेप्स’ कर दी गई।
इस घोटाले में किन विभागों की भूमिका संदिग्ध है?
ग्रामीण यांत्रिकी सेवा (RES), पंचायत सचिव, तकनीकी सहायक, और पंचायत पदाधिकारियों की भूमिका की जांच की जा रही है। आवास मिशन और मनरेगा की समन्वित निगरानी भी सवालों के घेरे में है।
कितनी राशि की अनियमितता की आशंका है?
प्रारंभिक अनुमान के अनुसार करोड़ों रुपए की राशि का गलत उपयोग हुआ है, जिसकी विस्तृत जांच जारी है।
क्या लाभार्थियों को बिना मकान पूरा हुए भुगतान मिल गया?
हाँ, कई ग्रामीणों ने शिकायत की है कि उनके मकान अधूरे हैं लेकिन पेमेंट “पूर्ण आवास” के नाम पर हो चुका है।
प्रशासन की क्या प्रतिक्रिया रही है?
जिला पंचायत और जनपद स्तर पर जांच बैठा दी गई है। कुछ जगहों पर सचिव और तकनीकी सहायक को नोटिस जारी हुआ है।
क्या यह सिर्फ एक गांव की घटना है?
नहीं, यह मामला मैनपुर ब्लॉक के कई पंचायतों जैसे नवागांव, पतेरापाली, गर्रापदर, गोरगांव, सुपतरा आदि में सामने आया है।
क्या सीएम हेल्पलाइन या अन्य शिकायत माध्यमों से भी शिकायतें आई हैं?
हाँ, कई शिकायतें सीएम हेल्पलाइन और जनचौपाल में दर्ज हुई हैं, जिस पर कार्रवाई की जा रही है।
इससे पहले भी गरियाबंद में कोई आवास घोटाले की शिकायत हुई थी?
पहले भी साल 2022-23 में आवास संबंधी गुणवत्ता, गड़बड़ी और अपात्र चयन को लेकर शिकायतें हुई थीं।
क्या यह मामला EOW या ACB को सौंपा जाएगा?
अगर जिला जांच में राशि गबन और पददुरुपयोग की पुष्टि होती है, तो यह मामला आर्थिक अपराध अन्वेषण शाखा (EOW) या भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (ACB) को भेजा जा सकता है।

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