Party Changers Are Marginalised In Chhattisgarh: छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ आदिवासी नेता और पूर्व सांसद नंद कुमार साय भाजपा में वापस आ गए हैं। उन्होंने अपना ऑनलाइन सदस्यता कार्ड भी सोशल मीडिया पर शेयर किया है। इसके बाद राजनीतिक गलियारों में दलबदलू नेताओं की चर्चा फिर शुरू हो गई है।
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार राज्य गठन से पहले से ही प्रदेश में दलबदलुओं का खेल चलता रहा है। राजनेता सत्ता मोह में ऐसा करते हैं। लेकिन ऐसे नेताओं का रिकॉर्ड अच्छा नहीं रहा है। एक-दो मामलों को छोड़ दें तो ज्यादातर को न तो नई पार्टी में कार्यकर्ताओं का समर्थन मिलता है, न ही जनता का भरोसा।
विद्याचरण शुक्ल ने दल बदलने का रिकॉर्ड तोड़ा
छत्तीसगढ़ बनने से पहले कांग्रेस नेता विद्याचरण शुक्ल ने दल बदलने का रिकॉर्ड तोड़ा था। राज्य बनने के बाद सबसे बड़ा दलबदल पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी के कार्यकाल में हुआ था। जोगी ने विपक्षी भाजपा के 12 विधायकों को अपने पाले में कर लिया था। हालांकि, तब दलबदल कर सत्ताधारी पार्टी में शामिल होने वाले ज्यादातर लोग चुनाव हार गए और अब राजनीतिक हाशिये पर हैं।
उइके ने सबसे पहले पार्टी बदली
राज्य बनने के बाद पार्टी बदलने वाले सबसे पहले विधायक रामदयाल उइके थे। उइके 1998 में मरवाही से भाजपा विधायक थे। जब अजीत जोगी मुख्यमंत्री बने, तब उइके विधायक नहीं थे। उइके ने जोगी के लिए अपनी सीट छोड़ दी और कांग्रेस में शामिल हो गए।
इसके बाद वे 2003, 2008 और 2013 में पाली तानाखार सीट से कांग्रेस विधायक रहे। लेकिन 2018 में विधानसभा चुनाव से पहले उइके भाजपा में शामिल हो गए। उन्हें टिकट तो मिला, लेकिन हार का सामना करना पड़ा। फिलहाल वे राजनीति में हाशिए पर हैं।
सरकार गई तो कांग्रेस से मोहभंग हो गया
नंद कुमार साय ने अप्रैल 2023 में भाजपा से इस्तीफा देकर कांग्रेस का दामन थाम लिया था। कांग्रेस सरकार में उन्हें सीएसआईडीसी का अध्यक्ष बनाया गया था। प्रदेश में कांग्रेस सरकार जाने के बाद नंद कुमार साय का कांग्रेस से मोहभंग हो गया।
उन्होंने कांग्रेस से भी इस्तीफा दे दिया था। 3 सितंबर से शुरू हुए भाजपा सदस्यता अभियान में उन्होंने ऑनलाइन सदस्यता ली और सदस्यता कार्ड सोशल मीडिया पर शेयर कर बवाल मचा दिया। पूरे मामले पर भाजपा-कांग्रेस के नेता अभी भी चुप्पी साधे हुए हैं।
कांग्रेस ने उन्हें सांसद बनाया, लेकिन उन्हें किनारे कर दिया गया
विद्याचरण शुक्ल 1989 में कांग्रेस छोड़कर जनता दल में शामिल हो गए और केंद्र में मंत्री बने। वे फिर से कांग्रेस में लौट आए और 1991-96 में नरसिम्हा राव सरकार में मंत्री बने। 2003 के अंत में वे भाजपा में शामिल हो गए। 2004 के लोकसभा चुनाव में वे भाजपा के टिकट पर महासमुंद से कांग्रेस के अजीत जोगी के खिलाफ खड़े हुए, लेकिन हार गए।
फिर 2004 में उन्होंने भाजपा से इस्तीफा दे दिया। 2007 में सोनिया गांधी के निर्देश पर वे फिर से कांग्रेस में शामिल हो गए। इसके बाद 2013 में अपने निधन तक वे कांग्रेस में ही रहे, लेकिन राजनीति की मुख्यधारा में वापस नहीं आ सके।
छत्तीसगढ़ के गांधी, लेकिन उन्होंने इतनी पार्टियां बदलीं कि वे हाशिए पर चले गए
पार्टियां बदलने की राजनीति में दूसरा बड़ा नाम संत और कवि पवन दीवान का है। दीवान 1977 में जनता पार्टी से विधायक बने और मंत्री भी बनाए गए। 1980 में वे जनता पार्टी से अलग हो गए और अपनी छत्तीसगढ़ पार्टी बना ली।
जब अर्जुन सिंह मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री थे, तब वे कांग्रेस में शामिल हुए और सांसद बने। 2008 के विधानसभा चुनाव से पहले वे भाजपा में शामिल हो गए। 2012 में कांग्रेस में लौटे, फिर भाजपा में चले गए।
कांग्रेस ने जब उनके बेटे को पार्टी से निकाला तो उन्होंने अपनी पार्टी बना ली
जोगी के नेतृत्व में लड़े गए 2003 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी को हार का सामना करना पड़ा और अगले 15 साल तक भाजपा ने राज्य पर शासन किया। 2016 में कांग्रेस पार्टी ने उनके बेटे विधायक अमित जोगी को 6 साल के लिए पार्टी से निष्कासित कर दिया और उन्हें नोटिस जारी किया।
इसके बाद जोगी ने कांग्रेस से इस्तीफा देकर 21 जून 2016 को छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस नाम से अपनी पार्टी बनाई। वे पार्टी के राज्य में तीसरे मोर्चे के रूप में उभरना चाहते थे, लेकिन वे संघर्ष करते रहे और 29 मई 2020 को दिल का दौरा पड़ने से उनकी मृत्यु हो गई।
जब वह भाजपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुईं तो राजनीति की मुख्यधारा में वापस नहीं आ सकीं।
वह 1982 से भाजपा में थीं। डॉ. रमन सिंह से अनबन के बाद 2014 में वह भाजपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गईं। करुणा ने 2018 के विधानसभा चुनाव में रमन सिंह के खिलाफ राजनांदगांव सीट से चुनाव भी लड़ा था, लेकिन हार गईं। इस हार के बाद वह राजनीति की मुख्यधारा से दूर हो गईं। 26 जुलाई 2021 की देर रात उनका निधन हो गया।
कांग्रेस छोड़ी, लौटे पर पुराना कद नहीं पा सके
अरविंद नेताम 1998 में कांग्रेस छोड़कर बीएसपी में शामिल हो गए थे। बीएसपी में जब कुछ खास नहीं कर पाए तो 2002 में एनसीपी में चले गए। 2007 में कांग्रेस में लौटे पर पार्टी में पुराना कद नहीं पा सके।
2012 में पीए संगमा की एनपीपी में चले गए। 17 मई 2018 को राहुल गांधी ने अरविंद नेताम को फिर से कांग्रेस पार्टी की प्राथमिक सदस्यता दिलाई। 10 अगस्त 2023 को उन्होंने फिर से कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा देकर हमार राज पार्टी बनाई।
पार्टी बदली, लेकिन कद हमेशा ऊंचा रहा
कांग्रेस में शामिल होने से पहले महेंद्र कर्मा सीपीआई से विधायक चुने गए थे। 1996 के आम चुनाव में उन्होंने बस्तर से निर्दलीय के तौर पर लोकसभा का चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। फिर वे कांग्रेस में लौट आए। वे दंतेवाड़ा से विधानसभा के सदस्य चुने गए और अविभाजित मध्य प्रदेश में दिग्विजय सिंह मंत्रिमंडल में जेल मंत्री बनाए गए।
छत्तीसगढ़ बनने के बाद वे अजीत जोगी मंत्रिमंडल में उद्योग और वाणिज्य मंत्री रहे। हालांकि, वे जोगी के राजनीतिक विरोधी के तौर पर जाने जाते थे। महेंद्र कर्मा की भी 25 मई 2013 को दरभा में हुए नक्सली हमले में मौत हो गई थी।
NCP छोड़ BJP में आए, और सियासत में उठते गए
भाजपा नेता विजय बघेल ने वर्ष 2000 में निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की थी। इस समय वे पार्षद बने थे। ठीक तीन साल बाद यानी 2003 में वे राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए।
वर्ष 2008 में राज्य में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान वे भाजपा में शामिल हो गए। एक बार फिर पाटन से टिकट मिला और चुनाव जीते। वर्ष 2019 और 2024 में वे दुर्ग लोकसभा सीट से भाजपा के टिकट पर जीते।
BJP में रहे या कांग्रेस में खुद की शर्त पर की राजनीति
जब भाजपा ने उनकी उपेक्षा की तो उन्होंने 2008 में सामरी विधानसभा से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ा, जिसमें वे हार गए। चुनाव हारने के बाद वे भाजपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गए। 2013 में कांग्रेस ने उन्हें लुंड्रा से टिकट दिया और वे विधायक बन गए।
2018 के चुनाव में जब कांग्रेस ने उन्हें विधानसभा का टिकट नहीं दिया तो वे बगावत कर 31 अक्टूबर 2023 को भाजपा में शामिल हो गए। भाजपा ने उन्हें लोकसभा चुनाव में उम्मीदवार बनाया और वर्तमान में वे सरगुजा के सांसद हैं।
दल बदलने वालों की लिस्ट में ये भी शामिल
- मोतीलाल साहू
- आरके राय
- प्रमोद शर्मा
- ताराचंद्र साहू
- शक्राजीत नायक
- श्यामलाल मरावी
- तरुण चटर्जी
- मदनलाल डहरिया
- धरमजीत सिंह
- कांग्रेस उपाध्यक्ष वाणी राव
- डाॅ. हरिदास भारद्वाज
- रानी रत्नमाला
- डाॅ. सोहनलाल
- परेश बागबाहरा
हिमाचल सरकार जैसा नियम लागू करना चाहिए
राजनीतिक विश्लेषक उचित शर्मा कहते हैं, दलबदलू नेताओं को दूसरी पार्टी में ज्यादा तवज्जो नहीं मिलती, लेकिन अपवाद हर जगह देखने को मिलते हैं। लोग निजी महत्वाकांक्षाओं के लिए पार्टी बदलते हैं। 50 साल बाद पार्टी बदलना और इसे विचारधारा कहना एक अनसुलझी पहेली है।
उन्होंने बताया कि, मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने मंगलवार को हिमाचल प्रदेश विधानसभा (सदस्य भत्ते और पेंशन) संशोधन विधेयक, 2024 पेश किया था और कहा था कि विधेयक का मुख्य उद्देश्य विधायकों की पेंशन बंद करना और उन्हें दल बदलने से रोकना है। ऐसा विधेयक पूरे देश में लागू होना चाहिए। अगर नेता विश्वासघात करके पार्टी छोड़ रहे हैं, तो उन्हें आर्थिक झटका दिया जाना चाहिए।
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