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Navratri 2022: यहां विराजमान हैं सम्राट विक्रमादित्य की कुलदेवी, ज्योत जलाने से हो जाती है हर मुराद पूरी

मध्यप्रदेश के उज्जैन शहर में राजा विक्रमादित्य की कुल देवी मां हरसिद्धि का प्रसिद्ध मंदिर है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार देवी हरसिद्धि का मंदिर 52 शक्तिपीठों में शामिल है। कहा जाता है कि यहां माता सती की कोहनी गिरी थी। मंदिर का इतिहास करीब 2000 साल पुराना है। यहां भगवान श्री कृष्ण से लेकर राजा विक्रमादित्य तक की आराधना की बात कही जाती है। मंदिर से चमत्कार के कई किस्से भी जुड़े हुए हैं। कहा जाता है कि मंदिर में सिर्फ ज्योत जलाने से ही मां हरसिद्धि सभी भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण कर देती हैं। लोगों का मानना है कि मां हरसिद्धि विपत्तियों से उज्जैन की रक्षा करती हैं।

भगवान कृष्ण ने दिया था नाम

देवी हरसिद्धि को मंगलमूर्ति देवी के रूप में पूजा जाता है। कहा जाता है कि जरसंध का वध करने से पूर्व भगवान श्री कृष्ण ने इसी स्थान पर माता की आराधना की थी। यादव वंश के लोग यहां माता की पूजा किया करते थे। देवी को हरसिद्धि नाम भगवान कृष्ण ने ही दिया था। वहीं, स्कंदपुराण के अनुसार भगवान शिव के आह्वान पर देवी ने चंड-प्रचंड नाम के दो दैत्यों का वध किया था, जिसके बाद भगवान शिव ने देवी मां को हरसिद्धि नाम दिया था। यह मंदिर तंत्र साधना के लिए भी काफी प्रसिद्ध है। मंदिर में एक पवित्र पत्थर होने की बात भी कही जाती है। यहां मां हरसिद्धि के साथ महासरस्वती और महालक्ष्मी भी विराजमान हैं।

रात में उज्जैन दिन में गुजरात में रहती हैं देवी

कहा जाता है कि देवी हरसिद्धि राजा विक्रमादित्य की कुल देवी थी। राजा विक्रमादित्य गुजरात के पोरबंदर के निकट स्थित हर्षद माता के दर्शन के लिए जाया करते थे। एक बार राजा ने माता से उज्जैन चलने की प्रार्थना की, तो मां हरसिद्धि एक शर्त पर राजा के साथ चलने के लिए तैयार हो गई। देवी मां की शर्त यह थी कि वे केवल रात में उज्जैन में निवास करेंगी और दिन में गुजरात में। मां हरसिद्धि की शर्त स्वीकार कर राजा विक्रमादित्य उन्हें ज्योति स्वरूप में उज्जैन लेकर आए और रुद्रसागर के किनारे पर स्थापित किया। मंदिर की एक विशेषता यह है कि यहां देवी श्रीयंत्र के कोणों पर स्थापित हैं।

देवी हरसिद्धि को शीश चढ़ाते थे राजा विक्रमादित्य

राजा विक्रमादित्य देवी हरसिद्धि के अनन्य भक्त थे। कहा जाता है कि हर 12 साल में वह देवी को अपना शीश काटकर अर्पित किया करते थे और प्रसन्न होकर देवी मां उनका शीश जोड़ देती हैं। लेकिन 12वीं बार जब उन्होंने अपना शीश माता को अर्पित किया तो वह नहीं जुड़ा, इसे सम्राट विक्रमादित्य ने अपने शासन काल का अंत माना और उनकी मृत्यु हो गई। मंदिर में 11 मुंड रखे हैं, जिन्हें राजा विक्रमादित्य का बताया जाता है। राजा विक्रमादित्य अवंतिका के शासक थे, उन्होंने यहां करीब 135 साल शासन किया।

1011 दीप जलाए जाते हैं

हरसिद्धि मंदिर में दो दीपमाला स्तंभ हैं। कहा जाता है सच्चे मन से मंदिर में दीप जलाने वाले की हर वांछित इच्छा मां हरसिद्धि पूरी करती हैं। 51 फीट ऊंचे दो दीप स्तंभों में 1011 दीप हैं। जिन्हें जलाने में करीब दो घंटे का समय लगता है। नवरात्रि में पांच बार ये दीप स्तंभ जलाएं जाते हैं। दीप स्तंभ करीब दो हजार साल पुराने बताएं जाते हैं। इन्हें एक बार जलाने में 4 किलो रुई और 60 लीटर तेल लगता है। नवरात्र के दिनों में हरसिद्धि मंदिर में बड़ी संख्या में लोग दर्शन करने पहुंचते हैं। हालांकि यहां साल भर भक्तों का तांता लगा रहता है।

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