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MP Politics: गुजरात मॉडल की सफलता ने बढ़ाई भाजपा में बेचैनी, मौजूदा विधायकों को सताने लगी टिकट कटने की चिंता

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मध्यप्रदेश में अगले साल विधानसभा चुनाव है। एक साल से भी कम समय बचा है। ऐसे में गुजरात में मिली सफलता के बाद कई मौजूदा विधायकों को टिकट कटने की चिंता सताने लगी है। खासकर उन विधायकों को जिनका प्रदर्शन औसत से कमजोर रहा है। भाजपा अपनी सक्सेस स्टोरी दोहराने के लिए गुजरात मॉडल पूरे देश में लागू कर सकती है। एक साल पहले मुख्यमंत्री का चेहरा बदला। फिर मंत्रियों के कामकाज में भी फेरबदल किए। 30 से अधिक विधायकों के टिकट काटे। उनकी जगह युवाओं को मौका दिया। इसका असर यह हुआ कि 182 विधायकों वाली विधानसभा में पार्टी ने 156 सीटों पर बढ़त/जीत हासिल की।  

मध्यप्रदेश में भी थ्री-लेयर सर्वे
मध्यप्रदेश में भाजपा ने अपने विधायकों का प्रदर्शन जांचने के लिए तीन स्तर पर सर्वे कराया है। पहले सर्वे में जिन विधायकों का प्रदर्शन खराब निकला था, उन्हें समझाइश दी गई थी। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने नवंबर में विधायक दल की बैठक बुलाई और इसमें साफ तौर पर सर्वे का जिक्र भी किया था। शिवराज ने कहा था कि अभी चुनाव से पहले दो और सर्वे होंगे। आचरण और व्यवहार सुधारना होगा। तभी 2023 के विधानसभा चुनावों में विधायकों के टिकट पर फैसला होगा। 

सर्वे बनेगा टिकट कटने का आधार
भाजपा ने इन सर्वे के आधार पर ही टिकट काटने का फैसला किया है। गुजरात मॉडल से यह सुनिश्चित हो गया है कि यह फॉर्मूला आने वाले चुनावों में भी आजमाया जाएगा। मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार प्रभू पटैरिया ने कहा कि भाजपा सर्वे कराती है और यह किसी से छिपा नहीं है। इसके नतीजे टिकट काटने का आधार भी बनते हैं। कमजोर परफॉर्मंस वाले विधायकों और मंत्रियों के भी टिकट पिछली बार कटे थे। अब गुजरात में जबरदस्त सफलता मिली है तो निश्चित तौर पर भाजपा मध्यप्रदेश में जातिगत और क्षेत्रीय संतुलन साधने के साथ ही युवाओं पर दांव खेलेगी।  

उम्मीदवारों के नामों से भी चौंका रही है पार्टी
भाजपा नेतृत्व ने पिछले समय में कई प्रत्याशियों के नामों से चौंकाया है। राजनीतिक पंडितों और जानकारों के साथ-साथ दावेदारों को दरकिनार करते हुए इंदौर में महापौर पद के लिए पुष्यमित्र भार्गव का चुनाव किया गया। भार्गव इससे पहले कभी चुनाव नहीं लड़े थे। इससे पहले भाजपा ने जबलपुर से सुमित्रा वाल्मीकि को राज्यसभा चुनावों में कैंडिडेट बनाकर चौंकाया था।

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मध्यप्रदेश में अगले साल विधानसभा चुनाव है। एक साल से भी कम समय बचा है। ऐसे में गुजरात में मिली सफलता के बाद कई मौजूदा विधायकों को टिकट कटने की चिंता सताने लगी है। खासकर उन विधायकों को जिनका प्रदर्शन औसत से कमजोर रहा है। भाजपा अपनी सक्सेस स्टोरी दोहराने के लिए गुजरात मॉडल पूरे देश में लागू कर सकती है। एक साल पहले मुख्यमंत्री का चेहरा बदला। फिर मंत्रियों के कामकाज में भी फेरबदल किए। 30 से अधिक विधायकों के टिकट काटे। उनकी जगह युवाओं को मौका दिया। इसका असर यह हुआ कि 182 विधायकों वाली विधानसभा में पार्टी ने 156 सीटों पर बढ़त/जीत हासिल की।  

मध्यप्रदेश में भी थ्री-लेयर सर्वे

मध्यप्रदेश में भाजपा ने अपने विधायकों का प्रदर्शन जांचने के लिए तीन स्तर पर सर्वे कराया है। पहले सर्वे में जिन विधायकों का प्रदर्शन खराब निकला था, उन्हें समझाइश दी गई थी। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने नवंबर में विधायक दल की बैठक बुलाई और इसमें साफ तौर पर सर्वे का जिक्र भी किया था। शिवराज ने कहा था कि अभी चुनाव से पहले दो और सर्वे होंगे। आचरण और व्यवहार सुधारना होगा। तभी 2023 के विधानसभा चुनावों में विधायकों के टिकट पर फैसला होगा। 

सर्वे बनेगा टिकट कटने का आधार

भाजपा ने इन सर्वे के आधार पर ही टिकट काटने का फैसला किया है। गुजरात मॉडल से यह सुनिश्चित हो गया है कि यह फॉर्मूला आने वाले चुनावों में भी आजमाया जाएगा। मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार प्रभू पटैरिया ने कहा कि भाजपा सर्वे कराती है और यह किसी से छिपा नहीं है। इसके नतीजे टिकट काटने का आधार भी बनते हैं। कमजोर परफॉर्मंस वाले विधायकों और मंत्रियों के भी टिकट पिछली बार कटे थे। अब गुजरात में जबरदस्त सफलता मिली है तो निश्चित तौर पर भाजपा मध्यप्रदेश में जातिगत और क्षेत्रीय संतुलन साधने के साथ ही युवाओं पर दांव खेलेगी।  

उम्मीदवारों के नामों से भी चौंका रही है पार्टी

भाजपा नेतृत्व ने पिछले समय में कई प्रत्याशियों के नामों से चौंकाया है। राजनीतिक पंडितों और जानकारों के साथ-साथ दावेदारों को दरकिनार करते हुए इंदौर में महापौर पद के लिए पुष्यमित्र भार्गव का चुनाव किया गया। भार्गव इससे पहले कभी चुनाव नहीं लड़े थे। इससे पहले भाजपा ने जबलपुर से सुमित्रा वाल्मीकि को राज्यसभा चुनावों में कैंडिडेट बनाकर चौंकाया था।

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