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MP News: यहां आज भी बरकरार है जाति प्रथा का दंश, जातियों के बीच बटे हैं तालाब पर बने घाट, जानें कैसे हैं हालात

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दमोह जिला मुख्यालय से महज आठ किलोमीटर दूर बसा हिनौती गांव जातिवाद की बेड़ियों में जकड़ा हुआ है। इस गांव में एक तालाब है, जिसमें चार जाति के लोगों के अलग-अलग घाट हैं। इस तालाब के पानी का उपयोग पूरे गांव के लोग करते हैं, लेकिन उन्हें अपनी ही जाति के घाट पर जाना पड़ता है। क्योंकि सदियों पहले गांव के बुजुर्गों ने ये व्यवस्था बनाई थी, जो आज भी चल रही है। इस व्यवस्था से किसी को आपत्ति भी नहीं है।

गांव के लोगों ने बताया कि उनके गांव में यह तालाब है, जिस पर अलग-अलग घाट बने हुए हैं। चार घाटों पर जातियों को विभाजित किया गया है, जिसमें उन जाति के लोग ही जाकर पानी का उपयोग करते हैं। कपड़े धोते हैं और नहाते हैं। इस बात पर गांव के किसी भी व्यक्ति को कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन एक मर्यादा भी बनी है कि कोई भी जाति का व्यक्ति दूसरी जाति के घाट का उपयोग नहीं करता है।

गांव में पानी की दिक्कत…
गांव के युवा भी इस बात को जानते हैं और उनका कहना है कि उनके पूर्वजों ने ये व्यवस्था बनाई थी। युवाओं का ये जरूर कहना है कि गांव के इस तालाब का यदि जीर्णोद्धार हो जाए और बेहतर घाट हो जाएं तो लोगों को काफी सुविधाएं होने लगेंगी। उन्होंने कहा कि गांव में पानी की बहुत दिक्कत है, एक सरकारी कुआं है, जिस पर भी कुछ लोगों ने कब्जा कर लिया है। गांव के लोगों को निस्तार के पानी के लिए केवल इसी तालाब में आना पड़ता है। तालाब गहरीकरण हो जाए तो बहुत कुछ ठीक हो जाएगा।

दूसरे के घाट पर नहीं जाते ग्रामीण…
गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि सदियों पहले व्यवस्था बनी थी, जो आज भी जारी है। कोई भी व्यक्ति दूसरी जाति के घाट पर तालाब में नहीं जाता है। ग्रामीणों से पूछा कि यदि कोई दूसरे घाट पर चला जाएगा तो क्या होगा। तब उन्होंने बताया कि लोग डांटते हैं, लेकिन ऐसा होता नहीं है। लोग अपने घाट के अलावा दूसरे के घाट पर नहीं जाते हैं। ये बात जरूर है कि बड़ी जाति के लोग दूसरी जाति के घाटों पर जाकर उपयोग कर लेते हैं तो इस पर कोई आपत्ति नहीं लेता है।

पहले के लोगों ने कोई पहल नहीं की…
हिनौती गांव की सरपंच नीता अहिरवार ने बताया कि गांव की आबादी दो हजार है। गांव से सटा निस्तारी तालाब है, जो ढाई हेक्टेयर में फैला है। यह पुरानी परंपरा है, पहले के लोगों ने कोई पहल नहीं की, इसलिए आज भी ऐसी स्थिति बनी हुई है। गांव में ठाकुर 1200,  बंसल 200, प्रजापति 25 और चौधरी परिवार के 450 घर हैं। गांव में चार हैंडपंप हैं, लेकिन चारों बंद, गांव में जो पानी की टंकी बनी थी, उसमें दरारें आ गई हैं। चार हैंडपंप में पानी नहीं निकला। ऐसे में निस्तारित तालाब और लंबरदार का कुआं पानी के लिए रह जाता है, जिसके सहारे पूरा गांव रहता है।

ग्रामीण रूप सिंह ने बताया कि तालाब का उपयोग नहाने-धोने के लिए होता है। पीने का पानी भरने गांव से 600 मीटर दूर कुएं पर जाते हैं, वहां पर जिस समाज के लोग पहले पहुंचते हैं वे पहले पानी भर लेते हैं। उसके बाद दूसरी समाज के लोग पानी भरते हैं। दमोह जनपद सीईओ विनोद जैन का कहना है, इस प्रकार की किसी प्रथा के बारे में उन्हें जानकारी नहीं है। वह गांव जाएंगे और ग्रामीणों से बात करेंगे और यदि कोई शिकायत करता है तो आगे की कार्रवाई की जाएगी।

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दमोह जिला मुख्यालय से महज आठ किलोमीटर दूर बसा हिनौती गांव जातिवाद की बेड़ियों में जकड़ा हुआ है। इस गांव में एक तालाब है, जिसमें चार जाति के लोगों के अलग-अलग घाट हैं। इस तालाब के पानी का उपयोग पूरे गांव के लोग करते हैं, लेकिन उन्हें अपनी ही जाति के घाट पर जाना पड़ता है। क्योंकि सदियों पहले गांव के बुजुर्गों ने ये व्यवस्था बनाई थी, जो आज भी चल रही है। इस व्यवस्था से किसी को आपत्ति भी नहीं है।

गांव के लोगों ने बताया कि उनके गांव में यह तालाब है, जिस पर अलग-अलग घाट बने हुए हैं। चार घाटों पर जातियों को विभाजित किया गया है, जिसमें उन जाति के लोग ही जाकर पानी का उपयोग करते हैं। कपड़े धोते हैं और नहाते हैं। इस बात पर गांव के किसी भी व्यक्ति को कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन एक मर्यादा भी बनी है कि कोई भी जाति का व्यक्ति दूसरी जाति के घाट का उपयोग नहीं करता है।

गांव में पानी की दिक्कत…

गांव के युवा भी इस बात को जानते हैं और उनका कहना है कि उनके पूर्वजों ने ये व्यवस्था बनाई थी। युवाओं का ये जरूर कहना है कि गांव के इस तालाब का यदि जीर्णोद्धार हो जाए और बेहतर घाट हो जाएं तो लोगों को काफी सुविधाएं होने लगेंगी। उन्होंने कहा कि गांव में पानी की बहुत दिक्कत है, एक सरकारी कुआं है, जिस पर भी कुछ लोगों ने कब्जा कर लिया है। गांव के लोगों को निस्तार के पानी के लिए केवल इसी तालाब में आना पड़ता है। तालाब गहरीकरण हो जाए तो बहुत कुछ ठीक हो जाएगा।

दूसरे के घाट पर नहीं जाते ग्रामीण…

गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि सदियों पहले व्यवस्था बनी थी, जो आज भी जारी है। कोई भी व्यक्ति दूसरी जाति के घाट पर तालाब में नहीं जाता है। ग्रामीणों से पूछा कि यदि कोई दूसरे घाट पर चला जाएगा तो क्या होगा। तब उन्होंने बताया कि लोग डांटते हैं, लेकिन ऐसा होता नहीं है। लोग अपने घाट के अलावा दूसरे के घाट पर नहीं जाते हैं। ये बात जरूर है कि बड़ी जाति के लोग दूसरी जाति के घाटों पर जाकर उपयोग कर लेते हैं तो इस पर कोई आपत्ति नहीं लेता है।

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