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MP News: CAG रिपोर्ट में खुलासा, नौ जिला खनिज प्रतिष्ठानों के अधिकारियों के लापरवाही से 206.21 करोड़ का नुकसान

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मध्य प्रदेश के नौ जिला खनिज प्रतिष्ठानों में जिम्मेदारों की लापरवाही से वर्ष 2018-19 से लेकर 2020-21 के बीच 206.21 करोड़ का सरकार को नुकसान हुआ है। नियंत्रक महालेखा परीक्षक (सीएजी) की रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है। इसके लिए रिपोर्ट में अधिकारियों की जिम्मेदारी तय करने के लिए कहा गया है।  

 

भारत के नियंत्रक महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट का मध्य प्रदेश शासन का वर्ष 2023 का प्रतिवेदन सोमवार को विधानसभा में पेश किया। रिपोर्ट में बताया गया है कि प्रदेश के 22 जिलों में मुख्य खनिज उपलब्ध है। जिनमें से जिला खनिज प्रतिष्ठानों (डीएमएफ) की उच्च प्राप्तियों वाले नौ जिलों की जांच की गई। इन जिलों में मंडल और कार्यकारी समितियों की बैठकों का नियमित संचालन से संबंधित प्रशासनिक प्रावधान का पालन नहीं किया गया। खान प्रभावित क्षेत्र ओर प्रभावित लोगों की सूची और देय भुगतान किए गए। डीएमएफ निधि के रजिस्टर के रिकॉर्ड का रखरखाव नहीं रखा गया। चार्टर्ड अकाउंटेंड के द्वारा डीएमएफ के खातों का ऑडिट नियमित नहीं किया गया। इसके अलावा कई गड़बड़ियां पाई गई। जैसे पट्टेदारों द्वारा डीएफएफ निधि में कम योगदान, विलंबित भुगतान पर ब्याज की वसूली नहीं की गई। डीएमएफ में निष्क्रिय पड़ी धनराशि, पात्र गतिविधियों पर असंगत व्यय करना और कार्य निष्पादन करने वाली संस्थाओं से उपयोग नहीं की गई अग्रिम राशि भी वसूली नहीं की गई।

रिपोर्ट के अनुसार ऑडिट के तीन सालों में 54 बैठकें होना था, लेकिन 18 बैठकें ही आयोजित की गई। कार्यकारी समिति की 108 बैठकों की जगह 33 बैठकें ही आयोजित की गई। वर्ष 2020-21 के लिए चार्टर्ड अकाउंटेंड ने किसी भी डीएमओ का ऑडिट नहीं किया। सात जिलों में देय और भुगतान का रजिस्ट्रर ही नहीं बनाया गया। नौ जिला खनिज कार्यालयों और एवं संचालनाय भौमिकी तथा खनिकर्म भोपाल के अभिलेखों की नमूना जांच के दौरान सामने आया कि नियमानुसार विकसित की जाने वाली वेबसाइट ही नहीं बनाई गई।

 

प्रदेश में पुरातत्व विरासत की अनदेखी

भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक कहा है कि स्मारकों के संरक्षण को बढ़ाने के लिए संचालनालय ने कोई विस्तृत नीति या दिशा निर्देश तैयार नहीं किए। मध्यप्रदेश के पुरातत्व विभाग की अनुसंधान अन्वेषण गतिविधियां घट रही हैं। जबलपुर, ग्वालियर और इंदौर क्षेत्र के  स्मारक को संरक्षित स्मारक घोषित किया गया लेकिन 1984 से 2019 तक अधिसूचनाएं जारी होने के बाद भी एक बार भी कोई संरक्षण कार्य नहीं किया गया। संचालनालय ने जबलपुर में स्मारक पर लगाने की लिए अगस्त 2018 में साइन बोर्ड खरीदे जो आज तक नहीं लगाए गए। रिपोर्ट के अनुसार 100 वर्ष से अधिक पुराने 8 स्मारकों को संरक्षित करने की अधिसूचना जारी नहीं की गई। 7 स्मारकों पर लोगों ने अतिक्रमण कर रखा था। जिन्होंने अधिसूचना जारी होने के बाद भी अपना कब्जा जारी रखा जिसे विभाग हटवा नहीं पाया उल्टे उसने इनके संरक्षण के औचित्य का उल्लेख किए बिना विरासत होटलों में बदलने के लिए गैर अधिसूचित कर दिया और उसके बाद विरासत होटलों में परिवर्तित भी नहीं किया गया।

 

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