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MP Assembly Session: कांग्रेस-बीजेपी की कश्मकश में फंसा विधानसभा उपाध्यक्ष का चयन, कई साल से खाली है पद

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आगामी 19 दिसंबर से शुरू होने वाला विंटर सेशन एक बार फिर बिना विधानसभा उपाध्यक्ष के ही निकलेगा। चूंकि सत्र बहुत छोटा है, लिहाजा इस बार भी उपाध्यक्ष पद को लेकर कोई चर्चा नहीं होगी। दोनों पार्टियों की आपसी सहमति न होने से विधानसभा उपाध्यक्ष के पद को लेकर आमने-सामने हैं। कमलनाथ सरकार के दौरान उपाध्यक्ष का पद सत्तारूढ़ दल के कब्जे में जाने के बाद से बीजेपी भी इस बात पर अड़ी हुई है कि इस पद पर उन्हीं के दल का विधायक बैठेगा। इसी कश्मकश में उपाध्यक्ष पद को लेकर पिछले ढाई साल से कोई फैसला नहीं हो पा रहा है।

मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार गिरने के बाद दोबारा सत्ता में आई बीजेपी सरकार के कार्यकाल के दो साल आठ महीने पूरे हो रहे हैं और अब तक विधानसभा में उपाध्यक्ष का चयन नहीं हो पा रहा है। प्रदेश में जब कांग्रेस की सरकार बनी थी, तब अध्यक्ष के साथ-साथ उपाध्यक्ष का पद भी कांग्रेस ने अपने पास रखा था। इसके बाद जब कांग्रेस सरकार गिरी और बीजेपी को फिर सत्ता में आने का मौका मिला तो बीजेपी ने रामेश्वर शर्मा को लंबे समय तक प्रोटेम स्पीकर बनाए रखा। इसके बाद गिरीश गौतम को 22 फरवरी 2021 से अध्यक्ष बनाया गया, लेकिन हिना कांवरे का कार्यकाल 24 मार्च 2020 में समाप्त होने के बाद अब तक किसी को भी उपाध्यक्ष नहीं बनाया गया है।

विधानसभा की परंपरा के मुताबिक रूलिंग पार्टी का अध्यक्ष बनता है तो विपक्षी दल का उपाध्यक्ष बनता है। अध्यक्ष का चयन निर्विरोध हो जाता है और बदले में उपाध्यक्ष के पद पर विपक्षी दल से प्रस्तावित विधायक को मौका दिया जाता है। कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में जब अध्यक्ष बनाने की बात आई तो बीजेपी ने विजय शाह को अध्यक्ष पद का उम्मीदवार बनाया। कांग्रेस ने Unopposed Election की मांग की, जिसे उस समय विपक्षी दल बीजेपी ने नहीं माना था। वोटिंग के बाद मतों के आधार पर एनपी प्रजापति को अध्यक्ष बनने का मौका मिला, इसके चलते उपाध्यक्ष पद भी कांग्रेस ने उस समय बीजेपी के विधायक को नहीं दिया। इस पद के लिए भी चुनाव हुए, बीजेपी ने जगदीश देवड़ा और कांग्रेस ने हिना कांवरे को उम्मीदवार बनाया। नतीजों के आधार पर हिना कांवरे को उपाध्यक्ष बनाया गया था। अब जब बीजेपी की सरकार बन गई है तो बीजेपी भी उपाध्यक्ष का पद कांग्रेस को नहीं देना चाहती।

असेंबली स्पीकर गिरीश गौतम का कहना है कि सदन की सत्रावधि कम है। जनहित के मुद्दे ज्यादा हैं, जिन पर चर्चा होना है। कांग्रेस ने विधानसभा की परपंपरा को तोड़ा था, जिसके चलते अभी तक उपाध्यक्ष पद का फैसला नहीं हो पाया है, लेकिन जल्द ही विधानसभा को उपाध्यक्ष पद मिले इसके लिए प्रयास किया जा रहा है।

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आगामी 19 दिसंबर से शुरू होने वाला विंटर सेशन एक बार फिर बिना विधानसभा उपाध्यक्ष के ही निकलेगा। चूंकि सत्र बहुत छोटा है, लिहाजा इस बार भी उपाध्यक्ष पद को लेकर कोई चर्चा नहीं होगी। दोनों पार्टियों की आपसी सहमति न होने से विधानसभा उपाध्यक्ष के पद को लेकर आमने-सामने हैं। कमलनाथ सरकार के दौरान उपाध्यक्ष का पद सत्तारूढ़ दल के कब्जे में जाने के बाद से बीजेपी भी इस बात पर अड़ी हुई है कि इस पद पर उन्हीं के दल का विधायक बैठेगा। इसी कश्मकश में उपाध्यक्ष पद को लेकर पिछले ढाई साल से कोई फैसला नहीं हो पा रहा है।

मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार गिरने के बाद दोबारा सत्ता में आई बीजेपी सरकार के कार्यकाल के दो साल आठ महीने पूरे हो रहे हैं और अब तक विधानसभा में उपाध्यक्ष का चयन नहीं हो पा रहा है। प्रदेश में जब कांग्रेस की सरकार बनी थी, तब अध्यक्ष के साथ-साथ उपाध्यक्ष का पद भी कांग्रेस ने अपने पास रखा था। इसके बाद जब कांग्रेस सरकार गिरी और बीजेपी को फिर सत्ता में आने का मौका मिला तो बीजेपी ने रामेश्वर शर्मा को लंबे समय तक प्रोटेम स्पीकर बनाए रखा। इसके बाद गिरीश गौतम को 22 फरवरी 2021 से अध्यक्ष बनाया गया, लेकिन हिना कांवरे का कार्यकाल 24 मार्च 2020 में समाप्त होने के बाद अब तक किसी को भी उपाध्यक्ष नहीं बनाया गया है।

विधानसभा की परंपरा के मुताबिक रूलिंग पार्टी का अध्यक्ष बनता है तो विपक्षी दल का उपाध्यक्ष बनता है। अध्यक्ष का चयन निर्विरोध हो जाता है और बदले में उपाध्यक्ष के पद पर विपक्षी दल से प्रस्तावित विधायक को मौका दिया जाता है। कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में जब अध्यक्ष बनाने की बात आई तो बीजेपी ने विजय शाह को अध्यक्ष पद का उम्मीदवार बनाया। कांग्रेस ने Unopposed Election की मांग की, जिसे उस समय विपक्षी दल बीजेपी ने नहीं माना था। वोटिंग के बाद मतों के आधार पर एनपी प्रजापति को अध्यक्ष बनने का मौका मिला, इसके चलते उपाध्यक्ष पद भी कांग्रेस ने उस समय बीजेपी के विधायक को नहीं दिया। इस पद के लिए भी चुनाव हुए, बीजेपी ने जगदीश देवड़ा और कांग्रेस ने हिना कांवरे को उम्मीदवार बनाया। नतीजों के आधार पर हिना कांवरे को उपाध्यक्ष बनाया गया था। अब जब बीजेपी की सरकार बन गई है तो बीजेपी भी उपाध्यक्ष का पद कांग्रेस को नहीं देना चाहती।

असेंबली स्पीकर गिरीश गौतम का कहना है कि सदन की सत्रावधि कम है। जनहित के मुद्दे ज्यादा हैं, जिन पर चर्चा होना है। कांग्रेस ने विधानसभा की परपंपरा को तोड़ा था, जिसके चलते अभी तक उपाध्यक्ष पद का फैसला नहीं हो पाया है, लेकिन जल्द ही विधानसभा को उपाध्यक्ष पद मिले इसके लिए प्रयास किया जा रहा है।

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