MP विधानसभा चुनाव में सिंधिया की अग्नि परीक्षा: रिजल्ट बताएंगे ज्योतिरादित्य BJP के लिए सही चॉइस या नहीं, क्या इतनी सीटों पर कमल खिला पाएंगे महाराज ?
भोपाल. 2023 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने भले ही अन्य केंद्रीय मंत्रियों की तरह सिंधिया पर दांव न खेला हो, लेकिन यह चुनाव सिंधिया के लिए अग्नि परीक्षा से कम नहीं है. गुना सीट से पन्नालाल शाक्य का नाम घोषित होने के बाद यह बात लगभग साफ हो गई, लेकिन अब ग्वालियर चंबल की 34 सीटों पर कमल खिलाने की अघोषित जिम्मेदारी सिंधिया के सिर है।
बीजेपी को सत्ता का तोहफा देने वाले सिंधिया का पार्टी ने पूरा सम्मान किया है. सिंधिया के साथ कांग्रेस छोड़ने वाले दो दर्जन से ज्यादा विधायकों में से 18 को पार्टी ने फिर से अपना उम्मीदवार बनाया है. अब इन सीटों पर इन उम्मीदवारों के साथ-साथ सिंधिया की साख भी दांव पर है.
क्यों चुनाव है सिंधिया के लिए परीक्षा ?
ये चुनाव सिंधिया के लिए भी बड़ी परीक्षा है. इम्तिहान इसलिए क्योंकि पार्टी ने सिंधिया के साथ आए 25 विधायकों में से 18 पर फिर भरोसा जताया है. ये भरोसा दरअसल सिंधिया पर भी है. उम्मीदवारों के चयन में सिंधिया की पसंद को तरजीह सिर्फ पार्टी में सिंधिया के दबदबे का मामला नहीं है. अब सिंधिया को इस भरोसे पर खरा उतरना है.
राजनीतिक भविष्य भी उनकी जीत-हार से जुड़ गया
सिंधिया के आशीर्वाद से चुनाव मैदान में उतरे उम्मीदवारों की जीत सिर्फ उनके अपने राजनीतिक भविष्य का सवाल नहीं है. अब सिंधिया का राजनीतिक भविष्य भी उनकी जीत-हार से जुड़ गया है. हालांकि, ग्वालियर चंबल से नरेंद्र सिंह तोमर जैसे दिग्गज भी मैदान में हैं, लेकिन उन्हें चुनाव में उतारने के बाद सिंधिया से उम्मीदें बढ़ गई हैं.
बीजेपी की राजनीति में उनकी ताकत पर काफी असर
गुना से पन्नालाल शाक्य के प्रत्याशी घोषित होने के बाद यह लगभग साफ हो गया कि पार्टी ने सिंधिया को लेकर विधानसभा प्रयोग नहीं किया है, लेकिन भविष्य में 2023 के विधानसभा चुनाव के नतीजों से बीजेपी की राजनीति में उनकी ताकत पर काफी असर पड़ेगा.
2018 में सत्ता दी तो दावा भी किया
2018 के विधानसभा चुनाव में ज्योतिरादित्य सिंधिया का दबदबा था. ऐसा इसलिए क्योंकि इस क्षेत्र की 34 में से 28 सीटें कांग्रेस के खाते में गई थीं. उस दौरान जब कांग्रेस सरकार बनाने का दावा पेश करने राजभवन जाने वाली थी. तब गुटों में बंटी कांग्रेस का एक हिस्सा भोपाल के एक होटल में अपने समर्थकों के साथ ताकत दिखा रहा था.
हाथ खींचना पार्टी के लिए कितना महंगा
वो ज्योतिरादित्य सिंधिया ही थे, जिन्होंने सरकार का दावा पेश करने से पहले ही बता दिया था कि उनका हाथ खींचना पार्टी के लिए कितना महंगा साबित हो सकता है. उस दौरान भी सिंधिया समर्थक विधायकों ने एक सुर में मांग उठाई थी कि महाराज के मुख्यमंत्री बनने पर उन्हें कुछ भी स्वीकार नहीं होगा.
बीजेपी में शामिल होते ही सिंधिया के सुर बदल गए
हालांकि, बीजेपी में शामिल होने के बाद सिंधिया की राजनीति की शैली और उनके समर्थकों का रवैया बदल गया है. सिंधिया जानते हैं कि बीजेपी जैसे संगठन में अगर कोई नेता पार्टी लाइन से हटकर अपनी ताकत दिखाएगा तो यही उमा भारती का हश्र होगा.
महाराज स्टाइल की राजनीति नहीं
इसलिए पार्टी के भीतर अपना एक कुनबा होने के बावजूद सिंधिया उस कुनबे को अपनी ताकत के तौर पर इस्तेमाल नहीं करते. वह खुद बीजेपी में महाराज स्टाइल की राजनीति नहीं कर रहे हैं.
चुनाव बताएगा कि BJP के लिए सिंधिया सही विकल्प हैं या नहीं ?
वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक प्रकाश भटनागर कहते हैं, राजनीति में चुनाव खुद को साबित करने का सबसे बड़ा मौका होता है. फिर बीजेपी की राजनीति में किसी भी नेता को आगे बढ़ाने से पहले उसके जनाधार और संगठनात्मक क्षमता की परख होती है.
2020 के बाद सिंधिया ने बीजेपी के साथ घुलते-मिलते लंबा समय बिताया, लेकिन 2023 के विधानसभा चुनाव में उनका प्रदर्शन न सिर्फ मध्य प्रदेश की राजनीति में बल्कि देश की राजनीति में भी बीजेपी में उनकी स्थिति साफ कर देगा. दूसरी बात यह कि 2020 के उपचुनाव में सिंधिया की मजबूरी हो सकती थी, लेकिन 2023 के बाद यह तय हो जाएगा कि क्या वास्तव में सिंधिया बीजेपी के लिए सही विकल्प हैं या नहीं.
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