अनूपपुर में हाथियों के आतंक की दास्तां: जंगल से निकलकर गलियों में उतरी मौत, हर रात नए गांव में तबाही, कई रात से सोए नहीं रहवासी

Madhya Pradesh Anuppur Story on elephant terror: “काली रातें, सूनी पगडंडियां और अचानक गूंजती भारी पदचापें… जैसे मौत खुद जंगल से निकलकर गांवों की गलियों में उतर आई हो। ये कोई आदमखोर गिरोह नहीं, चार हाथियों का वो आतंक है जिसने अनूपपुर और जैतहरी के गांवों को सांस लेना भी सिखा दिया है—डर के साथ।”
Madhya Pradesh Anuppur Story on elephant terror: “हर रात किसी नए गांव में तबाही…कहीं खेत रौंद दिए गए, तो कहीं घर की दीवारों को मिट्टी बना दिया गया। लोग न दरवाजे बंद कर पा रहे हैं, न नींद पूरी कर पा रहे हैं। और जंगल? वो अब सिर्फ नक्शे में है, क्योंकि उसका डर अब इंसानी बस्तियों पर हावी हो चुका है।”
अनूपपुर में टूटी दीवारें, उजड़े खेत और कांपते हुए लोग
Madhya Pradesh Anuppur Story on elephant terror: रात का सन्नाटा, दूर कहीं शाखें टूटने की आवाज और फिर… धरती पर गूंजती भारी पदचापें। ये कोई सपना नहीं, बल्कि अनूपपुर के ग्रामीणों की हर रात की सच्चाई बन चुका है। 25 मई की रात से अब तक, मरवाही की सीमा पार कर आए चार जंगली हाथियों ने अनूपपुर और जैतहरी के वन क्षेत्रों को अपने कब्जे में ले रखा है। जहां ये जाते हैं, वहां पीछे सिर्फ टूटी दीवारें, उजड़े खेत और कांपते हुए लोग रह जाते हैं।

कहीं फसल रौंदी, कहीं घर गिरा — ‘सावन’ नहीं, ‘संकट’ बना हाथियों का झुंड
Madhya Pradesh Anuppur Story on elephant terror: जैतहरी के गोबरी और पगना गांव में लोगों की नींद अब चीखों से टूटती है। शनिवार-रविवार की दरम्यानी रात, हाथियों का झुंड नगर के बीचोंबीच से गुज़रा। जैसे कोई सशस्त्र गिरोह रात के अंधेरे में कूच कर रहा हो।
Madhya Pradesh Anuppur Story on elephant terror: रविवार सुबह इनका ठिकाना बना कुसुमहाई का जंगल, लेकिन पीछे छोड़े दर्द के कई निशान। जल्दाटोला में नरेश सिंह के खेत की पकी हुई गर्मी की धान की फसल सिर्फ चंद मिनटों में रौंद दी गई। वहीं बेलिया गांव में बहादुर कोल के घर की बाउंड्री वॉल को एक झटके में गिरा दिया गया—मानो ईंट की नहीं, माचिस की दीवार हो।
रेलवे ट्रैक और मुख्य मार्ग पार कर रहे हैं ये भीमकाय साये
Madhya Pradesh Anuppur Story on elephant terror: हाथी अब सिर्फ जंगलों तक सीमित नहीं। वे अनूपपुर-जैतहरी-वेंकटनगर के व्यस्त सड़क मार्ग से लेकर रेलवे लाइन तक निर्भीकता से गुजर रहे हैं। रेलवे लाइन के किनारे से होते हुए, हाथियों ने कुसुमहाई गांव की ओर रुख किया। सवाल ये है कि अगर कोई ट्रेन या वाहन उस समय गुजरता, तो नतीजा कितना भयावह होता?

डरे हुए हैं लोग, जाग रहे हैं गांव
Madhya Pradesh Anuppur Story on elephant terror: धनगवां बीट के गांवों में अब रात कोई नहीं सोता। परिवार बिस्तरों की जगह छतों पर, टीन शेड या खेतों की मेड़ पर बैठकर हाथियों की दिशा का अंदाजा लगाते हैं। बच्चों को भीतर बंद कर दिया जाता है, महिलाएं मवेशियों को घेरकर बैठती हैं और बुजुर्ग आसमान की ओर ताकते हैं—”क्या ये भी हमारी ही धरती है?”
वन विभाग की निगरानी, लेकिन भय बरकरार
Madhya Pradesh Anuppur Story on elephant terror: वन विभाग की गश्ती टीमें सक्रिय हैं, लेकिन हाथियों की चाल unpredictable है। विभाग की ओर से सतर्कता की अपील जारी की गई है। बताया जा रहा है कि हाथियों का अगला रुख रात में ही साफ होगा। अब तक किसी की जान नहीं गई, लेकिन संपत्ति और मानसिक तनाव की कीमत कोई आंक नहीं सकता।
जंगल जब शहर की दहलीज़ लांघे
Madhya Pradesh Anuppur Story on elephant terror: यह सिर्फ इंसान बनाम जानवर की कहानी नहीं है। यह उस टकराव की दास्तान है जहां जंगल की गहराइयों से आई ताकत, इंसानी बसावट की बुनियाद हिला रही है। हाथी—प्रकृति का सौम्य प्रतीक—अब गांवों में ‘आतंक’ का पर्याय बन चुका है।
शायद यही वक्त है जब हम खुद से पूछें—क्या हमने जंगलों को इतना कम कर दिया है कि जंगल अब हमारे घरों तक आ पहुंचे हैं?

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