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Jabalpur: दहेज हत्या को हत्या का प्रकरण मानते हुए किया था दंडित, हाईकोर्ट ने आदेश निरस्त कर किया बरी

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पुलिस ने दहेज हत्या के तहत न्यायालय में प्रकरण प्रस्तुत किया था। जिला न्यायालय ने हत्या का अपराध मानते हुए आरोपी को आजीवन कारावास की सजा से दंडित कर दिया। हाईकोर्ट जस्टिस सुजय पॉल तथा जस्टिस पीसी गुप्ता की युगलपीठ ने सजा के खिलाफ दायर अपील की सुनवाई करते हुए जिला न्यायालय के आदेश को निरस्त करते हुए आरोपी को दोषमुक्त करार दिया है।

बता दें कि पत्नी की हत्या के मामले में जिला कोर्ट से आजीवन कारावास मिलने के बाद मनोज उर्फ गुड्डी सिंह ने फैसले को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में अपील की थी। याचिकाकर्ता की तरफ से कहा गया था कि उसकी शादी साल 2005 में संगीता से हुई थी। संगीता ने 12 मई 2008 को घर में आग लगाकर आत्महत्या कर ली थी। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मृत्यु का कारण श्वास नली का फटना बताया गया था। न्यायालय ने धारा 304 बी के तहत उसे निर्दोष करार देते हुए धारा 302 के तहत आजीवन कारावास की सजा से दंडित किया।

युगलपीठ ने सुनवाई के दौरान पाया कि मृतिका के मौसा ने अपने बयान में कहा है कि आवेदक ने रात 12 बजे जांधिया में आकर संगीता द्वारा आग लगाने की सूचना दी थी। वह घटनास्थल पर पहुंचा तो दरवाजा अंदर से बंद था। जिसे तोड़कर वे अंदर गए तब तक उसकी जलने के कारण मौत हो गई थी। पुलिस द्वारा बनाए गए घटना स्थल के नक्शे में बताया गया था कि घर के अंदर जाने के लिए एकमात्र दरवाजा था। जो अंदर से बंद था और ताला लगा हुआ था। महिला के माता-पिता ने अपने बयान में कहा कि अपीलकर्ता मोटरसाइकिल खरीदने के लिए रुपयों की मांग करते हुए उसकी बेटी को परेशान करता था। आरोपी घटना को अंजाम देने के बाद दीवार से ईंट हटाकर फरार हो गया था। 

युगलपीठ ने अपने आदेश में कहा है कि अभियोजन यह साबित करने में सफल रहा कि मृत्यु का कारण श्वास नली का फटना था। फेफड़े में कार्बन के कण नहीं पाए गए हैं। घर में प्रवेश के लिए सिर्फ एक दरवाजा था, जो अंदर से बंद था और ताला लगा हुआ था। घटनास्थल के नक्शे में इस बात का उल्लेख नहीं है कि किसी दीवार की ईंट हटाई हो या फिर उसे जोड़ा गया है। इस स्थिति में अपीलकर्ता को संदेह का लाभ देते हुए जिला न्यायालय के आदेश को निरस्त किया जाता है। 
 

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पुलिस ने दहेज हत्या के तहत न्यायालय में प्रकरण प्रस्तुत किया था। जिला न्यायालय ने हत्या का अपराध मानते हुए आरोपी को आजीवन कारावास की सजा से दंडित कर दिया। हाईकोर्ट जस्टिस सुजय पॉल तथा जस्टिस पीसी गुप्ता की युगलपीठ ने सजा के खिलाफ दायर अपील की सुनवाई करते हुए जिला न्यायालय के आदेश को निरस्त करते हुए आरोपी को दोषमुक्त करार दिया है।

बता दें कि पत्नी की हत्या के मामले में जिला कोर्ट से आजीवन कारावास मिलने के बाद मनोज उर्फ गुड्डी सिंह ने फैसले को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में अपील की थी। याचिकाकर्ता की तरफ से कहा गया था कि उसकी शादी साल 2005 में संगीता से हुई थी। संगीता ने 12 मई 2008 को घर में आग लगाकर आत्महत्या कर ली थी। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मृत्यु का कारण श्वास नली का फटना बताया गया था। न्यायालय ने धारा 304 बी के तहत उसे निर्दोष करार देते हुए धारा 302 के तहत आजीवन कारावास की सजा से दंडित किया।

युगलपीठ ने सुनवाई के दौरान पाया कि मृतिका के मौसा ने अपने बयान में कहा है कि आवेदक ने रात 12 बजे जांधिया में आकर संगीता द्वारा आग लगाने की सूचना दी थी। वह घटनास्थल पर पहुंचा तो दरवाजा अंदर से बंद था। जिसे तोड़कर वे अंदर गए तब तक उसकी जलने के कारण मौत हो गई थी। पुलिस द्वारा बनाए गए घटना स्थल के नक्शे में बताया गया था कि घर के अंदर जाने के लिए एकमात्र दरवाजा था। जो अंदर से बंद था और ताला लगा हुआ था। महिला के माता-पिता ने अपने बयान में कहा कि अपीलकर्ता मोटरसाइकिल खरीदने के लिए रुपयों की मांग करते हुए उसकी बेटी को परेशान करता था। आरोपी घटना को अंजाम देने के बाद दीवार से ईंट हटाकर फरार हो गया था। 

युगलपीठ ने अपने आदेश में कहा है कि अभियोजन यह साबित करने में सफल रहा कि मृत्यु का कारण श्वास नली का फटना था। फेफड़े में कार्बन के कण नहीं पाए गए हैं। घर में प्रवेश के लिए सिर्फ एक दरवाजा था, जो अंदर से बंद था और ताला लगा हुआ था। घटनास्थल के नक्शे में इस बात का उल्लेख नहीं है कि किसी दीवार की ईंट हटाई हो या फिर उसे जोड़ा गया है। इस स्थिति में अपीलकर्ता को संदेह का लाभ देते हुए जिला न्यायालय के आदेश को निरस्त किया जाता है। 

 

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