सार
Kuno-Palpur Project: कूनो राष्ट्रीय उद्यान को वर्ष 1992 में सिंह परियोजना के लिए चुना गया था। मध्यप्रदेश सरकार ने वर्ष 2003 तक 29 गांवों के विस्थापन से लेकर शेर लाने की सारी तैयारी कर ली थी। इसके बाद से ही गुजरात से शेर मांगे जा रहे हैं। लेकिन किसी न किसी बहाने से वहां की सरकार इस प्रोजेक्ट में अड़ंगा लगा रही है…
देश में करीब 74 साल बाद चीते की वापसी हो गई है। नामीबिया से आठ चीते मध्यप्रदेश के श्योपुर में बने कूनो नेशनल पार्क में आ गए और विचरण भी करने लगे हैं। लेकिन वर्षों के इंतजार के बाद भी गुजरात से एशियाटिक लायन (बब्बर शेर या सिंह ) नहीं लाए जा सके। दरअसल, कूनो राष्ट्रीय उद्यान को वर्ष 1992 में सिंह परियोजना के लिए चुना गया था। मध्यप्रदेश सरकार ने वर्ष 2003 तक 29 गांवों के विस्थापन से लेकर शेर लाने की सारी तैयारी कर ली थी। इसके बाद से ही गुजरात से शेर मांगे जा रहे हैं। लेकिन किसी न किसी बहाने से वहां की सरकार इस प्रोजेक्ट में अड़ंगा लगा रही है। सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद भी इस मामले में कोई प्रगति होती दिखाई नहीं दे रही है। इधर, कांग्रेस ने भी केंद्र और प्रदेश की भाजपा सरकार पर इस मसले पर आड़े हाथों लिया है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष एवं राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने तंज कसते हुए कहा कि गुजरात द्वारा कूनो राष्ट्रीय उद्यान में शेर नहीं भेजने पर लोगों का ध्यान बांटने के लिये अब अफ्रीका से चीते लाये गये हैं। यहां कायदे से तो गिर के शेर आने चाहिए थे।
मध्यप्रदेश सरकार लगातार करती रहेगी प्रयास
मध्यप्रदेश के वन मंत्रालय से जुड़े अफसरों का अमर उजाला से कहना है कि गिर वन्यजीव अभयारण्य गुजरात में है। यहां एशिया में सबसे ज्यादा सिंह पाए जाते हैं। ये राज्य के पर्यटकों का बड़ा आकषर्षण का केंद्र भी है। लेकिन गुजरात सरकार ने शेरों को अपने राज्य की शान मानकर उनके पुनर्वास की सारी कोशिशों को नाकाम कर दिया है। कूनो राष्ट्रीय उद्यान में चीता आने के बाद सिंह परियोजना को बंद माना जा रहा है। हालांकि शेर और चीता एक साथ रह सकते हैं इसलिए यहां शेर लाने के प्रयास सरकार के स्तर पर जारी रहेंगे।
चिड़ियाघर में शेर देने का वादा कर पलटा गुजरात
अंतत मार्च 2018 में भारत सरकार के वकील ने कोर्ट को भरोसा दिलाया कि कूनो में जल्द शेर भेजे जा रहे हैं। इस आधार पर अवमानना याचिका समाप्त कर दी गई। इसके अलावा मध्यप्रदेश सरकार ने गुजरात से चिड़ियाघर के लिए युवा शेर मांगे गए थे। सरकार की मंशा थी कि भोपाल के वन विहार नेशनल पार्क में उनका प्रजनन करवाएंगे और वंश बढ़ने पर जंगल में छोड़ेंगे। इस पर गुजरात सरकार ने पहले सहमति जताई, लेकिन बाद में योजना का पता चलते ही चिड़ियाघर को भी शेर देने से इंकार कर दिया। इसके बाद जब शेर भेजने को लेकर सुप्रीम कोर्ट की सख्ती बढ़ी तो गुजरात सरकार ने अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ की गाइड लाइन को हवाला बना लिया। एमपी सरकार ने तय मापदंड पूरे किए लेकिन भी शेर नहीं आ पाए।
राजघराने ने मांगी अपनी जमीन
पालपुर राजघराने का दावा है कि उन्होंने अपना किला और जमीन शेरों के लिए दी थी, न कि चीतों के लिए। शेर आते तो जंगल बचता लेकिन अब चीतों के लिए मैदान बनाए जा रहे हैं और पेड़ काटे जा रहे हैं। राज परिवार की तरफ से कहा गया है कि जब कूनो को गिर शेरों को लाने के लिए अभयारण्य घोषित किया गया, तो उन्हें अपना किला और 260 बीघा भूमि खाली करनी पड़ी। पालपुर राजघराने के वंशजों ने अपनी पुश्तैनी संपत्ति वापस पाने के लिए राज्य सरकार के खिलाफ कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
कांग्रेस का हमला, कूनो में गिर के शेर आने चाहिए थे
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष एवं राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने कहा ने भी केंद्र और प्रदेश की भाजपा सरकार पर हमला बोला हैं। कमलनाथ ने तंज कसते हुए कहा कि गुजरात द्वारा कूनो राष्ट्रीय उद्यान में शेर नहीं भेजने पर लोगों का ध्यान बांटने के लिये अब अफ्रीका से चीते लाये गये हैं। कमलनाथ ने कहा, यहां कायदे से तो गिर के शेर आने चाहिए थे। जब मध्यप्रदेश में 17 दिसंबर 2018 से 22 मार्च 2020 तक कांग्रेस की सरकार थी और मैं मुख्यमंत्री था, तब मैंने इसे लेकर खूब प्रयास किए। मैंने इसे लेकर सरकार से बात भी की थी कि यहां पूरी तैयारी है। आप गिर के शेर भेज दीजिए, लेकिन उन्होंने शेर भेजने से मना कर दिया।
विस्तार
देश में करीब 74 साल बाद चीते की वापसी हो गई है। नामीबिया से आठ चीते मध्यप्रदेश के श्योपुर में बने कूनो नेशनल पार्क में आ गए और विचरण भी करने लगे हैं। लेकिन वर्षों के इंतजार के बाद भी गुजरात से एशियाटिक लायन (बब्बर शेर या सिंह ) नहीं लाए जा सके। दरअसल, कूनो राष्ट्रीय उद्यान को वर्ष 1992 में सिंह परियोजना के लिए चुना गया था। मध्यप्रदेश सरकार ने वर्ष 2003 तक 29 गांवों के विस्थापन से लेकर शेर लाने की सारी तैयारी कर ली थी। इसके बाद से ही गुजरात से शेर मांगे जा रहे हैं। लेकिन किसी न किसी बहाने से वहां की सरकार इस प्रोजेक्ट में अड़ंगा लगा रही है। सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद भी इस मामले में कोई प्रगति होती दिखाई नहीं दे रही है। इधर, कांग्रेस ने भी केंद्र और प्रदेश की भाजपा सरकार पर इस मसले पर आड़े हाथों लिया है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष एवं राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने तंज कसते हुए कहा कि गुजरात द्वारा कूनो राष्ट्रीय उद्यान में शेर नहीं भेजने पर लोगों का ध्यान बांटने के लिये अब अफ्रीका से चीते लाये गये हैं। यहां कायदे से तो गिर के शेर आने चाहिए थे।
मध्यप्रदेश सरकार लगातार करती रहेगी प्रयास
मध्यप्रदेश के वन मंत्रालय से जुड़े अफसरों का अमर उजाला से कहना है कि गिर वन्यजीव अभयारण्य गुजरात में है। यहां एशिया में सबसे ज्यादा सिंह पाए जाते हैं। ये राज्य के पर्यटकों का बड़ा आकषर्षण का केंद्र भी है। लेकिन गुजरात सरकार ने शेरों को अपने राज्य की शान मानकर उनके पुनर्वास की सारी कोशिशों को नाकाम कर दिया है। कूनो राष्ट्रीय उद्यान में चीता आने के बाद सिंह परियोजना को बंद माना जा रहा है। हालांकि शेर और चीता एक साथ रह सकते हैं इसलिए यहां शेर लाने के प्रयास सरकार के स्तर पर जारी रहेंगे।
चिड़ियाघर में शेर देने का वादा कर पलटा गुजरात
इस प्रोजेक्ट से जुड़े लोगों का कहना है कि मध्यप्रदेश सरकार ने करीब ढाई सौ करोड़ रुपये की लागत से कूनो राष्ट्रीय उद्यान को शेरों के लिए तैयार कर लिया था। इसके बाद प्रदेश सरकार ने गुजरात और केंद्र सरकार से शेर मांगे लेकिन नहीं मिले। इसके बाद राजधानी भोपाल के आरटीआइ कार्यकर्ता अजय दुबे ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई। कोर्ट ने अप्रैल 2013 में भारत सरकार को छह माह में गिर से शेर कूनो भेजने के आदेश दिए। जब वर्ष 2014 तक भी शेर नहीं पहुंचे तो अजय दुबे ने अवमानना याचिका लगाई। कूनो में शेरों को बसाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने दिसंबर 2016 में विशेषज्ञ समिति बनाई थी।
अंतत मार्च 2018 में भारत सरकार के वकील ने कोर्ट को भरोसा दिलाया कि कूनो में जल्द शेर भेजे जा रहे हैं। इस आधार पर अवमानना याचिका समाप्त कर दी गई। इसके अलावा मध्यप्रदेश सरकार ने गुजरात से चिड़ियाघर के लिए युवा शेर मांगे गए थे। सरकार की मंशा थी कि भोपाल के वन विहार नेशनल पार्क में उनका प्रजनन करवाएंगे और वंश बढ़ने पर जंगल में छोड़ेंगे। इस पर गुजरात सरकार ने पहले सहमति जताई, लेकिन बाद में योजना का पता चलते ही चिड़ियाघर को भी शेर देने से इंकार कर दिया। इसके बाद जब शेर भेजने को लेकर सुप्रीम कोर्ट की सख्ती बढ़ी तो गुजरात सरकार ने अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ की गाइड लाइन को हवाला बना लिया। एमपी सरकार ने तय मापदंड पूरे किए लेकिन भी शेर नहीं आ पाए।
राजघराने ने मांगी अपनी जमीन
इधर, चीतों के नए घर श्योपुर के कूनो नेशनल पार्क में जमीन को लेकर नया विवाद खड़ा हो गया है। दरअसल, अभ्यारण्य के लिए दी गई जमीन को लेकर पालपुर राजघराने के वंशजों ने कोर्ट में याचिका लगाई है, जिसकी 19 सितंबर को सुनवाई होगी। राजघराने के वंशजों की ओर से दी गई याचिका में कहा गया है कि यह जमीन शेरों को रखने के लिए दी गई थी। लेकिन अब इस सेंचुरी में चीते लाए जा रहे हैं। पालपुर राजघराने का कहना है कि या तो हमें अपनी जमीन वापस दी जाए या अभयारण्य में शेर लाए जाएं।
पालपुर राजघराने का दावा है कि उन्होंने अपना किला और जमीन शेरों के लिए दी थी, न कि चीतों के लिए। शेर आते तो जंगल बचता लेकिन अब चीतों के लिए मैदान बनाए जा रहे हैं और पेड़ काटे जा रहे हैं। राज परिवार की तरफ से कहा गया है कि जब कूनो को गिर शेरों को लाने के लिए अभयारण्य घोषित किया गया, तो उन्हें अपना किला और 260 बीघा भूमि खाली करनी पड़ी। पालपुर राजघराने के वंशजों ने अपनी पुश्तैनी संपत्ति वापस पाने के लिए राज्य सरकार के खिलाफ कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
कांग्रेस का हमला, कूनो में गिर के शेर आने चाहिए थे
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष एवं राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने कहा ने भी केंद्र और प्रदेश की भाजपा सरकार पर हमला बोला हैं। कमलनाथ ने तंज कसते हुए कहा कि गुजरात द्वारा कूनो राष्ट्रीय उद्यान में शेर नहीं भेजने पर लोगों का ध्यान बांटने के लिये अब अफ्रीका से चीते लाये गये हैं। कमलनाथ ने कहा, यहां कायदे से तो गिर के शेर आने चाहिए थे। जब मध्यप्रदेश में 17 दिसंबर 2018 से 22 मार्च 2020 तक कांग्रेस की सरकार थी और मैं मुख्यमंत्री था, तब मैंने इसे लेकर खूब प्रयास किए। मैंने इसे लेकर सरकार से बात भी की थी कि यहां पूरी तैयारी है। आप गिर के शेर भेज दीजिए, लेकिन उन्होंने शेर भेजने से मना कर दिया।
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