Kailash Mountain की ऊंचाई Mount Everest से कम: अब तक कोई इसकी चढ़ाई नहीं कर सका, भारत का हिस्सा, लेकिन चीन का कब्जा, पढ़िए अनसुने रहस्य

Kailash Mountain Can Be Circumnavigated For 52 Km But No One Can Climb Kailash: हिमालय की गोद में स्थित कैलाश पर्वत को केवल एक पर्वत नहीं, बल्कि भगवान शिव का दिव्य धाम माना जाता है। यह वही स्थान है, जहां शिव योगी रूप में समाधि लगाते हैं और पार्वती संग निवास करते हैं। कैलाश को हिंदू धर्म ही नहीं, बल्कि बौद्ध, जैन और तिब्बती धर्म में भी पवित्रतम स्थानों में गिना जाता है। यह पर्वत तिब्बत के न्गारी क्षेत्र में स्थित है, जिसकी समुद्र तल से ऊंचाई करीब 6638 मीटर है—हालांकि यह माउंट एवरेस्ट से कम ऊंचा है, पर इसकी चुनौती कहीं अधिक रहस्यमय और आध्यात्मिक है।
Kailash Mountain Can Be Circumnavigated For 52 Km But No One Can Climb Kailash: इतिहास के पन्नों पर नज़र डालें तो 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान यह क्षेत्र तिब्बत के साथ ही चीन के नियंत्रण में चला गया। तभी से कैलाश मानसरोवर यात्रा चीन की अनुमति और निगरानी में होती है। इस पवित्र शिखर की खास बात यह है कि आज तक कोई भी पर्वतारोही इसे फतह नहीं कर पाया है।
Kailash Mountain Can Be Circumnavigated For 52 Km But No One Can Climb Kailash: जहां माउंट एवरेस्ट पर सैकड़ों बार चढ़ाई हो चुकी है, वहीं कैलाश पर्वत पर चढ़ने का प्रयास भी विरल है, और कुछ ने किया भी तो रहस्यमय घटनाओं के चलते पीछे हटना पड़ा। यही वजह है कि आज भी यह पर्वत अध्यात्म, आस्था और रहस्य की त्रयी बना हुआ है। तो आइए जानते हैं इस पवित्र पर्वत के बारे में…

Kailash Mountain Can Be Circumnavigated For 52 Km But No One Can Climb Kailash: दुनिया के सबसे ऊंचे माउंट एवरेस्ट पर अब तक 7000 लोग चढ़ाई कर चुके हैं, जिसकी ऊंचाई 8848 मीटर है। जबकि कैलाश की ऊंचाई माउंट एवरेस्ट से करीब 2000 मीटर कम है, लेकिन फिर भी इस पर कोई चढ़ नहीं सका है।
Kailash Mountain Can Be Circumnavigated For 52 Km But No One Can Climb Kailash: हां, कुछ लोग इसकी 52 किमी की परिक्रमा करने में सफल रहे है। दरअसल, कैलाश पर्वत का कोण 65 डिग्री से ज्यादा है। वहीं, माउंट एवरेस्ट का कोण 40 -50 डिग्री का है। इसलिए कैलाश की चढ़ाई कठिन है। इस पर चढ़ाई की कई कोशिशें हो चुकी हैं। आखिरी कोशिश 2001 में हुई थी।
Kailash Mountain Can Be Circumnavigated For 52 Km But No One Can Climb Kailash: हालांकि अब कैलाश पर चढ़ाई पूरी तरह से प्रतिबंधित है। कैलाश पर्वत सृष्टि के निर्माण के समय से ही अडिग है। इस पर्वत के लिए हर धर्म की अलग-अलग मान्यताएं हैं, लेकिन हिंदू शास्त्र के अनुसार यह पर्वत भगवान शिव और पार्वती का निवास स्थान है।
पर्वत के चारों ओर अलौकिक शक्ति की धारा
Kailash Mountain Can Be Circumnavigated For 52 Km But No One Can Climb Kailash: हिंदू, बौद्ध और जैन तीनों ही धर्म कैलाश को पवित्र और रहस्यमयी मानते हैं। तिब्बती मठों के गुरुओं का मानना है कि कैलाश पर्वत के चारों ओर अलौकिक शक्ति की धारा बहती रहती है। इसके पास पहुंचते ही मस्तिष्क में अलौकिक प्रवाह का अनुभव होने लगता है।
Kailash Mountain Can Be Circumnavigated For 52 Km But No One Can Climb Kailash: अलौकिक मानसिक बल के कारण कैलाश की चोटी पर पहुंचना संभव नहीं होता है। दूसरा कारण पर्वत का 65 डिग्री कोण और तीसरी महत्वपूर्ण बात ये है कि पर्वत के आसपास तो बर्फ जमती और पिघलती रहती है, लेकिन चोटी पर साल भर बर्फ जमी रहती है। यह भी यह एक अनसुलझा रहस्य ही है।

किसी भी मौसम से प्रभावित नहीं होता है कैलाश पर्वत
Kailash Mountain Can Be Circumnavigated For 52 Km But No One Can Climb Kailash: तिब्बत के तीन हिस्से हैं। पूर्वी तिब्बत, पश्चिम तिब्बत और मध्य तिब्बत। मध्य तिब्बत को उत्तर और दक्षिण तिब्बत भी कहा जा सकता है। कैलाश और मानसरोवर पश्चिमी तिब्बत में स्थित हैं। कैलाश शिखर की ऊंचाई लगभग 6714 मीटर है। कैलाश के चारों ओर के पर्वत लाल, भूरे रंग की मिट्टी और कच्चे पत्थरों से बने हैं।
हैरानी की बात यही है कि इतने धूल भरे कच्चे पहाड़ों के बीच भी कैलाश पर्वत पूरी तरह से ग्रेनाइट के पत्थरों से बना है। हवा, बर्फ और बारिश के चलते इसके आसपास के पहाड़ों का आकार और रंग बदलता रहता है, लेकिन कैलाश पर्वत मौसम से प्रभावित नहीं होता है।
कैलाश पर्वत हमेशा बर्फ से ढंका रहता है। दूर से एक भव्य पिरामिड की तरह दिखने वाला कैलाश एक स्वयंभू शिवलिंग है। आकाश से देखने पर कैलाश के आसपास छोटे-बड़े 16 पर्वत दिखाई देते हैं, जिनका रंग पीला है। ऐसा लगता है कि सोलह पंखुड़ी वाले कमलों के बीच थाल में शिवलिंग रखा हुआ है।
Kailash Mountain Can Be Circumnavigated For 52 Km But No One Can Climb Kailash: मानसरोवर को तिब्बती भाषा में ‘महाम युत्सो’ कहा जाता है। भौगोलिक दृष्टि से यह समुद्र तल से साढ़े चार हजार मीटर की ऊंचाई पर है। मानसरोवर के ठीक बगल में ही राक्षसताल और मानसरोवर झीलें हैं। राक्षसताल की सतह मानसरोवर झील से नीचे है।
जब मानसरोवर झील छलक उठती है तो गंगाछू नाम की नदी इस पानी से राक्षसताल को भरती है। मानो मानसरोवर अपने पवित्र जल से राक्षस ताल को पवित्र करने का प्रयास कर रहा हो। मान्यता है कि जब रावण ने यहां तपस्या की थी, तब उसी ने स्नान के लिए यह ताल बनाया था। इसी के चलते इसका नाम राक्षसताल पड़ा।

इस स्थान का पौराणिक महत्व तो गजब का है
Kailash Mountain Can Be Circumnavigated For 52 Km But No One Can Climb Kailash: प्राचीन काल में सप्तर्षियों और सनकादिकों ने यहां तपस्या की थी। सतयुग में भगवान दत्तात्रेय ने यहां तपस्या की। त्रेता युग में रावण ने तो द्वापर में पांडव यहां पहुंचे थे। इसके बाद कलियुग में तथागत ने यहां तपस्या की थी। इस तरह चारों युगों में कैलाश का अत्यधिक महत्व रहा है।
Kailash Mountain Can Be Circumnavigated For 52 Km But No One Can Climb Kailash: आदि शंकराचार्य जी और सिख गुरु नानकदेव भी यहां पहुंचे थे। सनातन हिंदू धर्म कैलाश को शिव का रूप मानता है। बौद्ध धर्म में कैलाश को शाक्यमुनि बुद्ध का स्वरूप माना गया है। भगवान बुद्ध यहां पांच सौ बोधिसत्वों के साथ निवास करते हैं।
जैन धर्म में भी इस स्थान का विशेष महत्व है। जैन धर्म में कैलाश के पास के पर्वत को अष्टापद कहते हैं। यह भी कहा जाता है कि प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव ने यहीं निर्वाण प्राप्त किया था। उसके बाद उनके पुत्र राजा भरत ने यहीं उनकी स्मृति में रत्नमय सिंह निषिधा प्रसाद करवाया था।
बौद्ध साहित्य में मानसरोवर का उल्लेख ‘अनवतप्त’ के रूप में मिलता है। बौद्ध अनुश्रुति के अनुसार कैलाश का स्थान पृथ्वी के केंद्र में है। यहां के अधिष्ठाता देव धर्मपाल (डेमचोक) हैं। वे बाघ की खाल पहनते हैं, मुंड माला धारण करते हैं। उनके हाथों में डमरू और त्रिशूल होता है और वज्र को उनकी शक्ति माना जाता है।

कैलाश की परिक्रमा 52 किमी
कैलाश पर्वत श्रेणी कश्मीर से भूटान तक फैली हुई है। इसमें ल्हा चू और झोंग चू के बीच यह पर्वत स्थित है। यहां दो जुड़े हुए शिखर हैं। इसमें से उत्तरी शिखर को कैलाश के नाम से जाना जाता है। इस शिखर का आकार एक विशाल शिवलिंग जैसा है। हिंदू धर्म में इसकी परिक्रमा का बड़ा महत्व है। परिक्रमा 52 किमी की होती है।
तिब्बत के लोगों का मानना है कि उन्हें इस पर्वत की 3 या फिर 13 परिक्रमा करनी चाहिए। वहीं, तिब्बत के कई तीर्थ यात्री तो दंडवत प्रणाम करते हुए इसकी परिक्रमा पूरी करते हैं। उनका मानना है कि एक परिक्रमा से एक जन्म के पाप दूर हो जाते हैं, जबकि दस परिक्रमा से कई अवतारों के पाप मिट जाते हैं। जो 108 परिक्रमा पूरी कर लेता है उसे जन्म और मृत्यु से मुक्ति मिल जाती है।
भारत का हिस्सा, लेकिन अब चीन का कब्जा
1962 में जब भारत और चीन के बीच युद्ध हुआ तो चीन ने भारत के कैलाश और मानसरोवर पर कब्जा कर लिया। अब यहां पहुंचने के लिए चीनी पर्यटक वीजा प्राप्त करना होता है। इसके चलते अब कैलाश जाना आसान नहीं रहा। ITBP के जवान और चीनी सैनिकों के पचासों तरह की चेकिंग के बाद मानसरोवर पहुंचा जाता है।
Kailash Mountain Can Be Circumnavigated For 52 Km But No One Can Climb Kailash: कैलाश मानसरोवर यात्रा दो से तीन सप्ताह तक चलती है (इस पर निर्भर करते हुए कि आप यात्रा कहां से शुरू करते हैं।)। भारत सरकार ने इस यात्रा को आसान बनाने के लिए ‘लिपुलेख मार्ग’ बनाया है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने 8 मई 2020 को इस मार्ग का उद्घाटन किया था।
हालांकि इससे कैलाश के तीर्थ यात्री खुश तो हैं, लेकिन इसमें अब भी कई अड़चने हैं। इसके अलावा इस क्षेत्र में प्रवेश करने के लिए तिब्बत सरकार से भी विशेष अनुमति लेनी पड़ती है।

लिपुलेख से सिर्फ भारतीय ही जा सकते हैं
दिल्ली से 750 किमी उत्तर पूर्व में लिपुलेख मार्ग यात्रा के समय को छह दिनों तक कम कर देता है। लिपुलेख से जुड़ी कुछ अन्य जटिलताएं भी हैं। जैसे कि यह मार्ग केवल भारतीय तीर्थयात्रियों के लिए ही है। इसके अलावा इस रास्ते से सिर्फ 1000 तीर्थयात्रियों के जाने की ही अनुमति है।
Kailash Mountain Can Be Circumnavigated For 52 Km But No One Can Climb Kailash: यात्रा का एक अन्य विकल्प नेपाल के सीमीकोट, कोराला, केरुंग और कोदरी बॉर्डर-पॉइंट हैं। यहां से गुजरने वाले श्रद्धालुओं की संख्या की कोई सीमा नहीं है। हालांकि यह भी चीन द्वारा तय की गई सीमा के अनुसार ही संभव है।
वहीं, तीसरा विकल्प है गंगटोक से सिक्किम होते हुए नथुला पास से गुजरना। तिब्बत के नागरी प्रदेश के बुरुंग प्रांत, उत्तर भारत के उत्तराखंड और नेपाल के सुदूर पश्चिम प्रांच में स्थित कैलाश मानसरोवर में जून से जुलाई के अंत तक श्रद्धालुओं की भारी भीड़ रहती है।

नसीब वाले ही कर पाते हैं पूरी यात्रा
Kailash Mountain Can Be Circumnavigated For 52 Km But No One Can Climb Kailash: नेपाल में लिपुलेख या सिमिकोट से तिब्बत पहुंचने के बाद तीर्थयात्रियों को तिब्बत के उत्तरी हिस्से में 150 किलोमीटर की यात्रा करनी पड़ती है। खड़ी पहाड़ियों पर चलने के अलावा श्रद्धालुओं को यहां हर पल बदलते मौसम का भी सामना करना पड़ता है।
जो लोग मौसम परिवर्तन के कारण जल्दी अस्वस्थ हो जाते हैं, उन्हें ऑक्सीजन की भी आवश्यकता पड़ती है। कोरोना वायरस के बाद तो लोगों को अब और भी सावधानी रखने की जरूरत है, क्योंकि तिब्बत के छोटे इलाकों में पर्याप्त मेडिकल सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं।

लेखक कॉलिन थुब्रोन ने क्या लिखा?
Kailash Mountain Can Be Circumnavigated For 52 Km But No One Can Climb Kailash: ब्रिटिश लेखक, ट्रैवलर, उपन्यासकार कॉलिन थुब्रोन ने 2011 में ‘टू ए माउंटेन इन तिब्बत’ किताब लिखी थी। इसमें उन्होंने तिब्बत और कैलाश मानसरोवर के अपने अनुभवों के बारे में विस्तार से लिखा है। उन्होंने लिखा- मैं मानता हूं कि कैलाश पर्वत ब्रह्मांड का रहस्यमय हृदय है। कैलाश के रास्ते में भयंकर अकेलापन महसूस होता है।
हालांकि हिंदू आस्था के साथ यहां पहुंचते हैं, लेकिन अंग्रेज सिर्फ पर्यटक बनकर आते हैं। मैंने देखा है कि भारत से तीर्थयात्रियों को तिब्बत पहुंचने में कई दिन लग जाते हैं। रास्ते में सरकारी मेडिकल जांच होती है। फेफड़े-हृदय आदि की जांच की जाती है। आधे श्रद्धालु तो इसी के चलते वापस लौटा दिए जाते हैं।
जिन्हें परमिशन मिलती भी है तो उनमें से भी कई 17,000 फीट की ऊंचाई तक पहुंचते-पहुंचते बीमार पड़ जाते हैं और फिर उन्हें निराशा के साथ वापस लौटना पड़ जाता है। इस तरह कैलाश मानसरोवर की पूरी यात्रा करने वालों को नसीब वाला कहा जा सकता है।

क्या कहते हैं सदगुरु जग्गी वासुदेव?
कैलाश पर्वत के बारे में सदगुरू जग्गी वासुदेव कहते हैं कि यह सबसे महान रहस्यमयी पुस्तकालय है। लोग पिछले कुछ हजार सालों से यहां की तीर्थ यात्रा कर रहे हैं। आमतौर पर लोग इसे 10,000 से 12,000 साल पुराना कहते हैं। कई और प्राचीन बताते हैं। हालांकि यह भी रहस्य ही है।
भारत में अधिकांश योगियों और रहस्यवादियों ने हमेशा पर्वत चोटियों को प्राथमिकता दी, क्योंकि यहां लोगों का आवागमन नहीं होता था। इसके अलावा ये सुरक्षित स्थान थे। उन्होंने अपने ज्ञान को ऊर्जा रूप में जमा करने के लिए पर्वतों को चुना। हजारों वर्षों से सिद्ध प्राणियों ने हमेशा कैलाश पर्वत की यात्रा की है और अपने ज्ञान को ऊर्जा के एक विशिष्ट रूप में जमा किया है।
Kailash Mountain Can Be Circumnavigated For 52 Km But No One Can Climb Kailash: मुनियों-सिद्धपुरुषों ने इस पहाड़ को आधार के रूप में इस्तेमाल किया। इसलिए हिंदू मानते हैं कि वहां शिव निवास करते हैं। जब हम कहते हैं कि यह शिव का वास है, तो इसका अर्थ यह नहीं है कि वे अब भी यहां बैठे हैं। वे यहां ऊर्जा के रूप में प्रवाहित होते हैं।
Kailash Mountain Can Be Circumnavigated For 52 Km But No One Can Climb Kailash: आप जीवन के इस छोटे से हिस्से की व्याख्या नहीं कर सकते, तो ब्रह्मांड में किसी और चीज की व्याख्या करने का प्रश्न ही नहीं उठता। कैलाश के बारे में कुछ भी कहना या सिखाना निरर्थक है। कैलाश को जानने के लिए आपको अलौकिक दृष्टि चाहिए।
सोर्स: – www.uttarakhandhindinews.in – https://isha.sadhguru.org – https://bharatdiscovery.org – https://gujaratvishwakosh.org – पुस्तक – देवभूमि तिब्बत, स्वामी माधवप्रियदासजी – पुस्तक – तिब्बत में एक पर्वत की ओर , कॉलिन थुब्रोन।

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