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डॉ. वैदिक ने 21 लाख लोगों के हस्ताक्षर बदलवाए, अन्य भाषाओं से हिन्दी में करवाए

आज सुबह जब यह दुःखद सूचना मिली कि वरिष्ठ पत्रकार डॉ. वेदप्रताप वैदिक नहीं रहे तो यकीन नहीं हुआ। एक सप्ताह पहले तो मैं उनके साथ दिल्ली में था और परसों ही एक आर्टिकल पर उनसे बात हुई। दुनिया छोड़ने के एक दिन पहले तक वे लिखते रहे। वे मातृभाषा उन्नयन संस्थान के संरक्षक थे और मैं इसका अध्यक्ष हूं। इस नाते लगभग हर एक दो दिन में उनसे बात होती थी। डॉ. वैदिक की प्रेरणा व मार्गदर्शन में ही संस्थान द्वारा हिन्दी में हस्ताक्षर बदलो अभियान संचालित हो रहा था। इसमें अब तक 21 लाख से अधिक लोगों ने अपने हस्ताक्षर अन्य भाषाओं से हिन्दी में बदले हैं। उनका लक्ष्य एक करोड़ का था। 

मुझे आज सुबह पता चला कि मातृभाषा उन्नयन संस्थान के संरक्षक, हिन्दी योद्धा, वरिष्ठ पत्रकार, जन दसेक्ष के संस्थापक डॉ. वेदप्रताप वैदिक नहीं रहे। बताया गया कि मंगलवार सुबह गुरुग्राम स्थित निज निवास पर उन्होंने अंतिम सांस ली और अंतिम संस्कार दिल्ली में होगा। 

डॉ. वैदिक के निधन से पत्रकारिता, साहित्य व हिन्दी जगत में शोक की लहर है। अनेक जानी-मानी हस्तियों, पत्रकारों, साहित्यकारों ने डॉ. वैदिक के निधन पर गहरा दुःख व्यक्त किया है। उनकी गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है, जिन्होंने हिन्दी के ध्वज को वैश्विक स्तर पर लहराया, मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत् संघर्ष और त्याग किया। महर्षि दयानंद, महात्मा गांधी और डा राममनोहर लोहिया की महान परंपरा को आगे बढ़ाने वाले योद्धाओं में उनका नाम अग्रणी है।



पत्रकारिता, राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति, हिन्दी के लिए अपूर्व संघर्ष, विश्व यायावरी, प्रभावशाली वक्तव्य, संगठन-कौशल आदि अनेक क्षेत्रों में एक साथ मूर्धन्यता प्रदर्षित करने वाले अद्वितीय व्यक्त्तिव के धनी डॉ. वेदप्रताप वैदिक का जन्म 30 दिसंबर 1944 को पौष की पूर्णिमा पर इंदौर में हुआ। वे सदा प्रथम श्रेणी के छात्र रहे। वे रुसी, फ़ारसी, जर्मन और संस्कृत के भी जानकार हैं। उन्होंने अपनी पीएच.डी. के शोधकार्य के दौरान न्यूयार्क की कोलंबिया यूनिवर्सिटी, मास्को के ‘इंस्तीतूते नरोदोव आजी, लंदन के ‘स्कूल ऑफ़ ओरिंयटल एंड एफ़्रीकन  स्टडीज़’और अफ़गानिस्तान के काबुल विश्वविद्यालय में अध्ययन और शोध किया।

उन्होंने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के ‘स्कूल ऑफ़ इंटरनेशनल स्टडीज़’से अंतरराष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की। वे भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अपना अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा।

पिछले 60 वर्षों में हजारों लेख और भाषण! 

वे लगभग 10 वर्षों तक पीटीआई भाषा (हिन्दी समाचार समिति) के संस्थापक-संपादक और उसके पहले नवभारत टाइम्स के संपादक (विचारक) रहे हैं। फिलहाल मातृभाषा उन्नयन संस्थान के संरक्षक के तौर पर लगातार हिन्दी में हस्ताक्षर अभियान का मार्गदर्शन करते हुए दिल्ली के राष्ट्रीय समाचार पत्रों तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग 200 समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर डॉ. वैदिक के लेख हर सप्ताह प्रकाशित होते हैं।

मैं तो यही कहूंगा कि ‘हिन्दी ने अपना लाल और अपना कर्मठ योद्धा खो दिया। आप मातृभाषा उन्नयन संस्थान के संरक्षक के तौर पर सदैव मेरा व संस्थान का मार्गदर्शन करते रहे। हाल ही में दिल्ली में विश्व पुस्तक मेले में जब आप संस्मय के स्टॉल पर पधारे तब भी केवल दो चिंता, एक तो ‘मेरे बेटे यानी अर्पण की किताब आई है तो वह मुझे दो, मैं पढूंगा’। तब भी मैं दादा के सामने बस आँसुओं को रोक रहा था कि कितनी आत्मीयता है मुझसे। दूसरा ‘कितने हस्ताक्षर बदल गए अर्पण, जल्दी से एक करोड़ पूरे करो, फिर मैं दिल्ली में तुम्हारा बड़ा अभिनन्दन करूंगा।’


वे कहते थे हिन्दी महारानी है और अंग्रेजी नौकरानी

डॉ जैन ने बताया कि ‘दादा अक्सर कहते थे, हिन्दी महारानी है, अंग्रेजी नौकरानी। हमें अपनी महारानी का स्वाभिमान बचाना है। आपने जन दसेक्ष की स्थापना की थी। आज मैंने अपना आराध्य खो दिया। मैं फिर अकेला महसूस कर रहा हूं। संस्थान के कार्य शेष थे जो दादा के संरक्षण में पूरे होने थे। ईश्वर अपने श्री चरणों में पूज्य वैदिक जी को स्थान दें।’

उनके निधन पर इंदौर में सैकड़ों लोग दुःखी हैं। संस्थान के संरक्षक राजकुमार कुम्भज, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ नीना जोशी, राष्ट्रीय सचिव गणतंत्र ओजस्वी, राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष शिखा जैन, राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य नितेश गुप्ता, भावना शर्मा, प्रेम मङ्गल, सपन जैन काकड़ीवाला सहित भारतीय जनसंचार संस्थान के निदेशक प्रो संजय द्विवेदी, इंदौर प्रेस क्लब अध्यक्ष अरविंद तिवारी, विचार प्रवाह अध्यक्ष मुकेश तिवारी, वरिष्ठ पत्रकार जय सिंह रघुवंशी, हेमन्त जैन, संस्थान के प्रदेश अध्यक्ष अमित मौलिक, श्रीमन्नारायण विराट सहित कवि गौरव साक्षी, अंशुल व्यास, जलज व्यास, सुरेश जैन, रमेश धाड़ीवाल और अन्य उनके चहेते सभी मित्रों ने श्रद्धासुमन अर्पण किए।

– डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ 

राष्ट्रीय अध्यक्ष, मातृभाषा उन्नयन संस्थान, भारत


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