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…जब 1971 की लड़ाई में पाकिस्तान में 40 मील अंदर घुस गए थे हम, सुनें भूतपूर्व सैनिक से कैसे छुड़ाए थे पाक के छक्‍के

हाइलाइट्स

जहांराम निराला जशपुर जिला मुख्यालय से लगभग 35 किलोमीटर दूर स्थित खरसोता गांव में रहते हैं .
मैं चीन से लड़ाई में भी गया था. चीन और बर्मा के बीच में किसी कोने में मैं गया था.

छत्‍तीसगढ़ के जशपुर (jashpur) जिले के हजारों जवान देश के लिए बॉर्डर पर तैनात हैं और यहां के सैकड़ों जवान देश के लिए शहीद हो गए. जशपुर से बड़ी संख्या में लोग सेना और अर्धसैनिक बलों में भर्ती होते हैं. जशपुरवासियों में देशसेवा का जज्बा सालों से है. आज हम आपको सेना से रिटायर्ड ऐसे बुजुर्ग से मिलवाने जा रहे हैं, जो अब 100 साल से ज्यादा उम्र के हो चुके हैं. इन्होंने पाकिस्तान (Pakistan) में 40 मील तक अंदर घुसकर दुश्मनों के छक्के छुड़ा दिए थे. इन्होंने 1962 में चीन के खिलाफ और 1971 में पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध (1971 war) भी लड़ा.

जशपुर जिला मुख्यालय से लगभग 35 किलोमीटर दूर स्थित खरसोता गांव में रहते हैं, जहांराम निराला. इनकी उम्र 100 से ज्यादा की हो चुकी है. जहांराम निराला भारतीय सेना से रिटायर हुए हैं. इन्होंने 1962 में चीन के खिलाफ और 1971 में पकिस्तान के खिलाफ युद्ध भी लड़ा है. दोनों लड़ाइयों का जिक्र करते हुए बुजुर्ग जहांराम निराला में आज भी जोश भर जाता है. सुनिए आखिरकार कैसी थी दोनों लड़ाई.

भूतपूर्व सैनिक जहांराम निराला ने बताया क‍ि मेरे से पीछे जो था उसके ऊपर बम गिरा और उसकी मौत वहीं हो गई. उसके बाद उसे दफना दिया गया, क्योंकि युद्ध के समय बॉडी को जलाना मना था. इसलिए उसे दफनाया गया. पाकिस्तान में 40 मील अंदर हम लोग घुस गए थे. युद्ध में बम पानी की तरह गिर रहे थे और सब कुछ बर्बाद हो रहा था.

उन्‍होंने बताया क‍ि मैं चीन से लड़ाई में भी गया था. चीन और बर्मा के बीच में किसी कोने में मैं गया था. 1965 में 7 दिन लड़ाई चली और 1971 में 14 दिन लड़ाई चली. कोई हिसाब नहीं कितने लोग मरे. सब कुछ सत्यानाश, सब कुछ बर्बाद हो गया. इंदिरा गांधी ने युद्ध विराम की घोषणा की. हमने दो घंटे का समय मांगा लेकिन हम लोगों को समय नहीं दिया गया. वरना हम दुश्मनों के दुश्मनों के छक्के छुड़ा देते.

जहांराम निराला का पूरा परिवार देशसेवा में था. उनके छोटे भाई सेना में थे और उनके भतीजे नंदकिशोर भगत और सतीश भगत सेना भी सेना में थे. अब इनके परिवार के सभी सदस्य रिटायर हो चुके हैं और 15 अगस्त और 26 जनवरी के दिन सब एक साथ मिलकर गांव मे झंडा फहराते हैं.

सेना से रिटायर्ड और जहांराम के भतीजे नंदकिशोर भगत ने बताया क‍ि जहांराम निराला रिटायर होने के बाद घर पर ही रहते हैं और इनका लंबा चौड़ा परिवार है, जो मिलजुलकर एक साथ रहता है. राष्ट्रीय त्योहारों में देशसेवा में लगे जवानों एवं शहीद परिवारों को सम्मानित किया जाता है, लेकिन देश के लिए दो बार अपनी जान दांव पर लगाकर देश के लिए दो दो युद्ध लड़ने वाले बुजुर्ग जहांराम निराला का आज तक जिले में किसी ने कोई सम्मान नहीं किया.

जहांराम निराला सेना के द्वारा दिए गए मेडल को देखकर ही संतुष्ट हो जाते हैं और इन मेडलों को बहुत सहेजकर रखते हैं लेकिन इनके परिवार के लोगों में दुख इसी बात का है कि जिला प्रशासन या जिला पुलिस प्रदेश सरकार द्वारा इनको कभी सम्मानित नहीं किया गया और ये गुमनामी के साये में जीवन जीने को मजबूर हैं.

जहांगीर राम निराला की पोती शारदा प्रधान ने बताया क‍ि उम्र के अंतिम पड़ाव पर पहुंच चुके हैं. जहांराम निराला में देशप्रेम का जजबा अब भी दिखता है और युद्ध की पुरानी यादों को लेकर वो आज भी रोमांचित हो उठते हैं. जिले और प्रदेश के अधिकांश लोगों को यह नहीं पता होगा कि 1962 और 1971 की लड़ाई लड़ने वाला कोई सैनिक आज भी जीवित है. जरूरत है इन्हें सामने लाने की इनके सम्मान की ताकि देशप्रेम और देशभक्ति की भावना से लबरेज जहांराम निराला और उनके पूरे परिवार को ये मलाल ना रहे कि उनका जीते जी जिले में कोई सम्मान नहीं हो सका.

Tags: Jashpur news, Republic day

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