Janjatiya Gaurav Divas 2024:छत्तीसगढ़ के हर जिले में आदिवासी गौरव महोत्सव का आयोजन किया जाएगा। यह आयोजन बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती पर 15 नवंबर को होगा। सीएम ने कहा कि आदिवासी समाज का अपना गौरवशाली इतिहास रहा है।
Janjatiya Gaurav Divas 2024: आज पूरी दुनिया को आदिवासी समाज से सीख लेने की जरूरत है। प्रकृति के बीच रहने वाले ये आदिवासी प्रकृति की पूजा करते हैं। वे प्रकृति को अपना भगवान मानते हैं। आदिवासी समाज ने हमेशा प्रकृति के संरक्षण और संवर्धन के लिए देश और दुनिया को राह दिखाई है।
15 नवंबर को आदिवासी गौरव दिवस मनाया जाएगा
Janjatiya Gaurav Divas 2024: सीएम ने कहा कि लोगों को आज आदिवासी समाज के लोगों से जीवन जीने की कला सीखनी चाहिए। आदिवासी समाज में किसी भी तरह का कोई भेदभाव नहीं है। सभी को समाज की भावना से देखा जाता है। आदिवासी समाज ने हमेशा दुनिया को प्रेम और भाईचारे का संदेश दिया है।
Janjatiya Gaurav Divas 2024: आदिवासी समाज में जन्मे भगवान बिरसा मुंडा के शौर्य और बलिदान से हमें प्रेरणा मिलती है। बिरसा मुंडा के बताए रास्ते पर चलने की जरूरत है। भगवान बिरसा मुंडा ने शोषण मुक्त समाज का सपना देखा था, हमें उस सपने को साकार करना चाहिए।
जनमन योजना से बढ़ रही है खुशहाली
Janjatiya Gaurav Divas: सीएम ने कहा कि प्रधानमंत्री जनमन योजना के जरिए पीएम मोदी आदिवासियों और पिछड़ी जाति के लोगों के जीवन को बेहतर बनाने का प्रयास कर रहे हैं।
Janjatiya Gaurav Divas 2024: पीएम मोदी द्वारा शुरू की गई योजना के जरिए समाज में खुशहाली और समानता लाने का भी प्रयास किया जा रहा है। कल पीएम मोदी झारखंड के हजारीबाग से जनजातीय उन्नत ग्राम अभियान की शुरुआत करने जा रहे हैं।
Janjatiya Gaurav Divas: जनजातीय उन्नत ग्राम अभियान के तहत 63 हजार आदिवासी बहुल गांवों के पांच करोड़ लोगों को इसका लाभ मिलेगा। आदिवासियों और गरीबों का जीवन बेहतर होगा।
आदिवासी समाज देता है एकता का संदेश
केदार कश्यप ने कहा कि पहले रेलवे लाइन बिछाने के लिए लकड़ी से बनी फिश प्लेट का इस्तेमाल किया जाता था। इसमें जंगल की कीमती लकड़ी का इस्तेमाल किया जाता था।
Janjatiya Gaurav Divas 2024: आदिवासी समाज ने इसका विरोध किया। बाद में पेड़ों की लकड़ी का इस्तेमाल बंद कर दिया गया। अब हमारे जंगल सुरक्षित हैं। यह सामाजिक एकता के कारण संभव हो पाया है।
Janjatiya Gaurav Divas: आज आदिवासी समाज की गौरवशाली कहानी को नई पीढ़ी तक पहुंचाने की जरूरत है। बस्तर का दशहरा इसका सबूत है। आज भी 80 प्रतिशत आदिवासी परिवार संयुक्त परिवार के रूप में रहते हैं। वे मोटा अनाज खाते हैं। इस समाज से सभी को सीखने की जरूरत है।
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