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Jan Sanskriti Manch: फासीवादी संस्कृति के खिलाफ जन संस्कृति मंच का राष्ट्रीय सम्मेलन 8 से रायपुर में

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सत्ता के खिलाफ सियासी लड़ाई अपनी जगह चलती ही रहती है। खासकर भाजपा सरकार के खिलाफ चुनावी नजरिये से राजनीतिक गोलबंदी की कोशिशें भी जारी हैं। लेकिन सांस्कृतिक धरातल पर भी प्रतिरोध की आवाज अब तेज होने लगी है। वामपंथी ताकतों को भले ही कम करके प्रचारित किया जाए, लेकिन देश के तमाम छोटे-छोटे इलाकों में सांस्कृतिक कार्यक्रमों, नुक्कड़ नाटकों, जनवादी गीतों और आम लोगों से जुड़े सवालों के साथ साथ फासीवादी संस्कृति के खिलाफ तमाम कार्यक्रमों के जरिये ये कोशिश जारी है। छत्तीसगढ़ के रायपुर में 8 और 9 अक्तूबर को होने जा रहा जन संस्कृति मंच का 16वां सम्मेलन कई मामलों में बेहद खास होने जा रहा है।

इस सम्मेलन के जरिये तमाम जनवादी सांस्कृतिक संगठनों और विचारधारा को एक मंच पर लाने की कोशिश की जा रही है। सम्मेलन में सभी वामपंथी पार्टियों से जुड़े सांस्कृतिक संगठन, लेखकों और साहित्यकारों के संगठन के प्रतिनिधि तो हिस्सा ले ही रहे हैं, नए सिरे से ऐसी सभी ताकतों को एक साथ जोड़ने की पहल भी की जा रही है।

जन संस्कृति मंच के संस्थापकों में रहे और फिलहाल जसम के कार्यकारी अध्यक्ष कौशल किशोर कहते हैं कि इस सम्मेलन का मकसद है, फासीवाद के खिलाफ प्रतिरोध और लोकतंत्र व आजादी की संस्कृति के लिए जन-गोलबंदी। इसमें फासीवाद के खिलाफ प्रतिरोध के तमाम रूपों पर भी चर्चा होगी और एक मजबूत सांस्कृतिक आंदोलन खड़ा करने की दिशा में संगठित कोशिश की जाएगी। कौशल किशोर बताते हैं कि इस सम्मेलन की तैयारी के सिलसिले में लखनऊ, पटना, रायपुर, इलाहाबाद, वाराणसी और देश के तमाम छोटे बड़े शहरों और कस्बों में छोटे बड़े कार्यक्रम लगातार होते रहे हैं। अपने-अपने इलाके में जन संस्कृति मंच, जनवादी लेखक संघ, प्रगतिशील लेखक संघ, इप्टा के अलावा तमाम वामपंथी सांस्कृतिक संगठन देश पर आए इस फासीवादी संकट के खिलाफ माहौल बना रहे हैं। हाल ही में लखनऊ में मुक्तिबोध स्मृति दिवस के मौके पर भी तमाम बुद्धिजीवी इकट्ठे हुए और यह संकल्प लिया कि फासीवाद के इस नए चेहरे के खिलाफ मजबूती से एकजुट होंगे।

रायपुर में होने जा रहे इस सम्मेलन में राजेश्वर सक्सेना, रवि श्रीवास्तव, हरि भटनागर, जया जादवानी, विजय गुप्त, आनंद हर्षुल, देवेन्द्र, दिवाकर मुक्तिबोध, जयप्रकाश, आलोक वर्मा, साधना रहटगांवकर, डॉ राकेश गुप्ता, विनय शील, ईश्वर सिंह दोस्त, महेश वर्मा, अरुणकांत शुक्ला, मिनहाज असद, फैसल रिजवी, लक बाबू, जीतेन्द्र गढ़वी, पीसी रथ, मुमताज, प्रदीप यदु, नरेश कुमार, आशीष रंगनाथ, सुधीर शर्मा, राजकुमार सोनी जैसे तमाम संस्कृतिकर्मी मौजूद रहेंगे। साथ ही बिहार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, झारखंड, उत्तराखंड, दिल्ली, मध्यप्रदेश, राजस्थान के अलावा देश के तमाम हिस्सों से सांस्कृति संगठन और नाट्य मंडलियां मौजूद रहेंगी। सांस्कृतिक कार्यक्रम होंगे और फासीवाद के खिलाफ एक मजबूत प्रतिरोध की संस्कृति के लिए प्रस्ताव पास किए जाएंगे।

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सत्ता के खिलाफ सियासी लड़ाई अपनी जगह चलती ही रहती है। खासकर भाजपा सरकार के खिलाफ चुनावी नजरिये से राजनीतिक गोलबंदी की कोशिशें भी जारी हैं। लेकिन सांस्कृतिक धरातल पर भी प्रतिरोध की आवाज अब तेज होने लगी है। वामपंथी ताकतों को भले ही कम करके प्रचारित किया जाए, लेकिन देश के तमाम छोटे-छोटे इलाकों में सांस्कृतिक कार्यक्रमों, नुक्कड़ नाटकों, जनवादी गीतों और आम लोगों से जुड़े सवालों के साथ साथ फासीवादी संस्कृति के खिलाफ तमाम कार्यक्रमों के जरिये ये कोशिश जारी है। छत्तीसगढ़ के रायपुर में 8 और 9 अक्तूबर को होने जा रहा जन संस्कृति मंच का 16वां सम्मेलन कई मामलों में बेहद खास होने जा रहा है।

इस सम्मेलन के जरिये तमाम जनवादी सांस्कृतिक संगठनों और विचारधारा को एक मंच पर लाने की कोशिश की जा रही है। सम्मेलन में सभी वामपंथी पार्टियों से जुड़े सांस्कृतिक संगठन, लेखकों और साहित्यकारों के संगठन के प्रतिनिधि तो हिस्सा ले ही रहे हैं, नए सिरे से ऐसी सभी ताकतों को एक साथ जोड़ने की पहल भी की जा रही है।

जन संस्कृति मंच के संस्थापकों में रहे और फिलहाल जसम के कार्यकारी अध्यक्ष कौशल किशोर कहते हैं कि इस सम्मेलन का मकसद है, फासीवाद के खिलाफ प्रतिरोध और लोकतंत्र व आजादी की संस्कृति के लिए जन-गोलबंदी। इसमें फासीवाद के खिलाफ प्रतिरोध के तमाम रूपों पर भी चर्चा होगी और एक मजबूत सांस्कृतिक आंदोलन खड़ा करने की दिशा में संगठित कोशिश की जाएगी। कौशल किशोर बताते हैं कि इस सम्मेलन की तैयारी के सिलसिले में लखनऊ, पटना, रायपुर, इलाहाबाद, वाराणसी और देश के तमाम छोटे बड़े शहरों और कस्बों में छोटे बड़े कार्यक्रम लगातार होते रहे हैं। अपने-अपने इलाके में जन संस्कृति मंच, जनवादी लेखक संघ, प्रगतिशील लेखक संघ, इप्टा के अलावा तमाम वामपंथी सांस्कृतिक संगठन देश पर आए इस फासीवादी संकट के खिलाफ माहौल बना रहे हैं। हाल ही में लखनऊ में मुक्तिबोध स्मृति दिवस के मौके पर भी तमाम बुद्धिजीवी इकट्ठे हुए और यह संकल्प लिया कि फासीवाद के इस नए चेहरे के खिलाफ मजबूती से एकजुट होंगे।

रायपुर में होने जा रहे इस सम्मेलन में राजेश्वर सक्सेना, रवि श्रीवास्तव, हरि भटनागर, जया जादवानी, विजय गुप्त, आनंद हर्षुल, देवेन्द्र, दिवाकर मुक्तिबोध, जयप्रकाश, आलोक वर्मा, साधना रहटगांवकर, डॉ राकेश गुप्ता, विनय शील, ईश्वर सिंह दोस्त, महेश वर्मा, अरुणकांत शुक्ला, मिनहाज असद, फैसल रिजवी, लक बाबू, जीतेन्द्र गढ़वी, पीसी रथ, मुमताज, प्रदीप यदु, नरेश कुमार, आशीष रंगनाथ, सुधीर शर्मा, राजकुमार सोनी जैसे तमाम संस्कृतिकर्मी मौजूद रहेंगे। साथ ही बिहार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, झारखंड, उत्तराखंड, दिल्ली, मध्यप्रदेश, राजस्थान के अलावा देश के तमाम हिस्सों से सांस्कृति संगठन और नाट्य मंडलियां मौजूद रहेंगी। सांस्कृतिक कार्यक्रम होंगे और फासीवाद के खिलाफ एक मजबूत प्रतिरोध की संस्कृति के लिए प्रस्ताव पास किए जाएंगे।

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