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कूनो नेशनल पार्क में नामीबिया के चीतों की ऐसे की जाएगी सुरक्षा

भोपाल:  

कूनो नेशन पार्क केन बेतवा नदी के करीब है, जो भौगोलिक रूप से ऐसा बिहड़ का क्षेत्र है, जैसा नामीबिया में पाया जाता है. इसी नेशनल पार्क में शनिवार को 8 चीतों को लाया जाएगा. गौरतलब है कि 1952-53 से पहले इसी नेशनल पार्क में चीता हुआ करता था, लेकिन शिकारियों के कारण 50 के दशक में भारत के जंगल चीताविहिन हो गए. अब जंगल और चीतों की सुरक्षा आईटीबीपी के ट्रेंड कमांडो डॉग के जरिए की जाएगी, जिसकी सिखलाई आईटीबीपी के पंचकूला बेसिक ट्रेनिंग अकादमी में चल रही है, जिसमें फॉरेस्ट विभाग मध्य प्रदेश, डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के तहत ट्रैफिक इंडिया पार्टनर है.

इसके मुख्य रूप से दो उद्देश्य हैं

मध्य प्रदेश का यह नेशनल पार्क तकरीबन 700 वर्ग किलोमीटर का है. जहां पर दो दर्जन से ज्यादा गांव आते हैं. जहां शिकारियों के होने की संभावना रहती है. ऐसे में शिकारियों से सुरक्षा की गारंटी आईटीबीपी के फ्रेंड डॉग के जरिए की जाएगी.

सभी 8 चीतों के लिए विशेष तकनीक के ट्रैकर कॉलर लगाए गए हैं, लेकिन अगर उनकी बैट्री या तकनीकी रूप से खराबी आ जाती है तो भी कई वर्ग किलोमीटर में फैले चीतों के लिए बनाए गए विशेष बाड़े में चीतों की खोज सटीकता से इन डॉग के जरिए की जा सकती है.

Part 1- शिकार की पहचान (सींग, खाल, दांत)

भारत आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है, लेकिन आजादी के बाद भारत के जंगलों से चीते गायब हो गए. अब दोबारा जब नामीबिया से विदेशी मेहमानों को लाकर यहां बसाया जा रहा है तो यह घटना की पुनरावृत्ति ना हो इसलिए इन डॉग की विशेष ट्रेनिंग दी जा रही है.

इसके तहत सबसे पहले जानवर की अलग-अलग खाल जैसे शेर, चीते, तेंदुए अलग-अलग सिंह जैसे बारहसिंघा, नीलगाय, गेंडे और अलग-अलग तरह के दांत जैसे किंग कोबरा, हाथी दांत आदि की पहचान करवाई जाती है.

इसके तहत अगर किसी भी तरह का शिकार शिकारियों द्वारा किया जाता है या फिर जानवरों की तस्करी की जाती है तो यह कुत्ते उसकी पहचान करके नेशनल पार्क को सुरक्षित बना सकते हैं.

Part 2- लगैज की तलाश (शेर-तैदुएं की खाल)

इसके तहत न्यूज नेशन संवाददाता राहुल डबास ने अपने हाथों पर ग्लवज पहन कर खुद तेंदुए की खाल को एक अटैची के अंदर छुपाया, तेंदुआ और शेर चीतों से मिलता जुलता है, इसलिए हमने तेंदुए की खाल का प्रयोग किया. जब हम खाल छुपा रहे थे तब ट्रेन डॉग दूसरी तरफ मुंह करके बैठे हुए थे, लेकिन इन डॉग कमांडो ने सटीकता से उस लगेज की पहचान की जहां पर हमने तेंदुए की खाल को छुपाया था.

Part 3- Dog Traning

जिस तरह से किसी कमांडो की ट्रेनिंग होती है, उसी तरीके से इन डॉग की भी ट्रेनिंग सुबह ही शुरू हो जाती है. इनकी पीटी करवाई जाती है, निर्देशों का पालन करना सिखाया जाता है, साथ ही मार्चिंग दस्ते की तरह मार्च पास्ट भी होता है.

यह अनुशासन सिर्फ डॉग नहीं बल्कि डॉग के ट्रेनर के लिए भी उतना ही जरूरी है, ताकि दोनों के बीच एक ऐसा रिश्ता बन सके जिससे रहे किसी भी जंगल में जाकर जानवरों को सुरक्षा दे सके और शिकारियों पर पैनी नजर रख सकें.

Part 4 जंगल में चीतों की खोज (ट्रेनंर संजीव शर्मा, डॉग ईलू)

फॉरेस्ट गार्ड संजीव शर्मा मध्य प्रदेश के उस ही नेशनल पार्क से विशेष रूप से ट्रेनिंग करने के लिए हरियाणा के पंचकुला पहुंचे हैं, जहां कल 8 चीतों को लाया जाएगा. वह नेशनल पार्क के भूगोल की जानकारी दे रहे हैं. बता रहे हैं कि किस तरीके से नदी के किनारे बड़ी संख्या में जानवर रहते हैं, कैसे 70 साल पहले इसी जंगल में भारतीय चीते हुआ करते थे और कैसे वह उस इलाके के स्थानीय निवासी होते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल और इसके जरिए पैदा होने वाले फॉरेस्ट टूरिज्म के अवसर को लेकर खुश हैं.

फॉरेस्ट रेंजर के साथ-साथ इनका फीमेल डॉग ईलु भी अपनी ट्रेनिंग की अंतिम अवस्था में है. 400 एकड़ में फैले आईटीबीपी के इस ट्रेनिंग सेंटर में एक ऐसा इलाका भी है जो हिमालय की तराई का जंगल का क्षेत्र है, क्योंकि यहां से हिमाचल की दूरी ज्यादा नहीं है. उसी क्षेत्र में ईलू फीमेल डॉग की ट्रेनिंग चल रही है, जिसकी सुघंने की शक्ति से विदेशी चीजों की सुरक्षा सुनिश्चित की जाएगी.

Part 4- जंगल की सुरक्षा (वहिकल सर्च)

मध्य प्रदेश का यह जंगल 700 वर्ग किलोमीटर में फैला है, जहां दो दर्जन से ज्यादा गांव हैं और कई मुख्य सड़कें जंगल के बफर जोन से गुजरती है. ऐसे में कहीं गाड़ियों के अंदर जानवरों की तस्करी या उनकी खाल का अवैध व्यापार ना हो इसकी ट्रेनिंग भी आईटीबीपी के सेंटर में दी जा रही है.

न्यूज नेशन की टीम ने इस ट्रेनिंग की जांच को और ज्यादा मुश्किल बनाते हुए इस बार जानवर की खाल जिसे सूंघना अपेक्षाकृत आसान है, उसकी जगह हाथी के दांत को कई गाड़ियों के बीच में से एक कार के अंदर वह भी बैग के अंदर छुपा के रखा, लेकिन फिर भी आइटीबीपी के विशेष कमांडो डॉग ने आसानी से इसकी पहचान कर ली.

Part 5- तकनीक से बेहतर डॉग

यह बात ठीक है कि 8 चीटों की सुरक्षा के लिए तकनीक की मदद ली जा रही है, लेकिन कुत्तों की सुंघने की शक्ति का कोई सानी नहीं है. ऐसे में अगर कभी तकनीक फेल हो जाए तो भी हमारे ट्रेंड डॉग चीतों की खोजबीन कर सकते हैं और शिकारियों से उनकी सुरक्षा भी सुनिश्चित कर सकते हैं.






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