Indian Army: माइनस 30 डिग्री में सैनिकों का जीवन देखने पहुंचे, अंडे फोड़े तो निकली बर्फ
शहर के चार यंग सीए स्वर्णिम गुप्ता, ऋषभ जैन, अपूर्व तोमर और आदित्य जखेटिया एक रोमांचक यात्रा पर लेह पहुंचे। वहां पर सैनिकों का जीवन देखने के लिए वह उन दुर्गम स्थानों पर भी गए जहां पर जीवन अपनी सबसे विषय परिस्थितियों से जूझता है। उन्होंने यहां पर सैनिकों का रहन सहन, काम करने का तरीका और अन्य बातों की जानकारी ली। वहां से लौटकर उन्होंने अपने अनुभव शेयर किए।
10 किलो से अधिक का सामान पहनकर चलते हैं सैनिक
अमर उजाला से बातचीत में चारों ने बताया कि सैनिकों के जज्बे और शक्ति को देखकर वे हैरान रह गए। सैनिक वहां पर 10 किलो से अधिक का सामान पहनकर मोर्चे पर डटे रहते हैं। खाने के लिए सिर्फ चावल या अन्य सब्जियों के पाउडर होते हैं जिन्हें पानी में गलाकर खाना पड़ता है। अंडे भी वहां पर जम जाते हैं और तोडऩे पर बर्फ निकलती है। स्लीपिंग बैग में चिपककर सोना पड़ता है जिसमें नींद भी बहुत मुश्किल से आती है। इसके अलावा जमीन पर हर जगह बर्फ की चादर बिछी होती है। कब वह बर्फ टूट जाएगी यह पता नहीं रहता। हम खुद कई बार बर्फ टूटने से पानी में घुस गए।
भारी बर्फबारी से रोकना पड़ी यात्रा
चारों ने बताया कि गणतंत्र दिवस को मनाने के लिए लेह से आगे चादर ट्रेक के स्थान का चयन कर अपनी यात्रा प्रारंभ की। इस यात्रा में माइनस 30 डिग्री तक शरीर का तापमान सहने के लिए उन्हें तीन दिन लेह में रहना पड़ा। यहां का तापमान माइनस 17 डिग्री था। यहां माइनस 30 डिग्री था। इसके बाद सभी चादर ट्रेक के शुरुवाती प्वाइंट त्सो मो की ओर रवाना हुए। वहां पहुंचते ही भारी बर्फबारी शुरू हो गई जो पूरे दिन रही। सभी को वहां विपरीत परिस्थितियों में एक दिन देर से यात्रा शुरू करना पड़ी, यात्रा का 64 किलोमीटर का मार्ग बेहद दुर्गम स्थानों से होकर जाता है जिसमें बर्फ की चादर पर चलना होता है और यह बर्फ की चादर कई जगह कमजोर होने से टूटने का डर बना रहता है। इस कठिन और अपार सौंदर्य से अच्छादित यात्रा के बीच में एक पड़ाव टिब्ब केव आता है। यहां कुछ देर विश्राम के बाद यात्रा के अंतिम स्थल नेरक वाटर फॉल, फ्रोजन वाटर फॉल पहुंचे। यह पूरी तरह से बर्फ से जमा हुआ है। पूरे रास्ते में बर्फबारी के बीच 30 किलोमीटर की यात्रा एक दिन में पूर्ण की।
26 जनवरी के दिन यात्रा रोककर झंडा फहराया
दूसरे दिन 26 जनवरी को यात्रा के बीच में तिरंगे को फहराकर सामूहिक राष्ट्रगान गाया गया। पूरी 64 किलोमीटर की चार दिवसीय यात्रा को मात्र दो दिन में पूरा किया गया। इस यात्रा के पूर्व में सभी लेह लद्दाख की बाइक से यात्रा कर चुके हैं यात्रा का उद्देश्य उन स्थानों को जानना था जहां हमारे सैनिक किन किन विपरीत परिस्थितियों में देश की रक्षा के लिए मौजूद रहते हैं।