किसके सह पर चल रही खाद में लूट ? 266 की यूरिया 900 में बिक रही, किसानों की जेब पर खुलेआम डाका, पढ़िए गरियाबंद में खाद माफिया का काला खेल

गिरीश जगत की रिपोर्ट। गरियाबंद। छत्तीसगढ़।
गरियाबंद जिले के किसानों की मेहनत की जेब पर खुलेआम डाका डाला जा रहा था। सरकार जिस यूरिया की कीमत 266 रुपये तय करती है, वही खाद किसानों को 900 रुपये में थमाई जा रही थी। यह महज लूट नहीं, बल्कि खेती-किसानी की नींव हिलाने वाला अपराध है। देवभोग और अमलीपदर जैसे सीमावर्ती इलाकों में महीनों से कालाबाजारी की शिकायतें उठ रही थीं, लेकिन जब तक प्रशासन ने दबिश नहीं दी, तब तक यह गोरखधंधा धड़ल्ले से चलता रहा।

मौके पर पकड़ी गई कालाबाजारी
कलेक्टर के आदेश पर खुद कृषि उपसंचालक चंदन राय की अगुवाई में टीम जब ध्रुवागुड़ी पहुंची, तो वहां का नजारा चौंकाने वाला था। राजेंद्र खाद भंडार में यूरिया की बोरियां अनलोड हो रही थीं और किसान बोरी-बोरी खाद लेकर लौट रहे थे। जब कीमत पूछी गई तो किसानों ने बताया—“हमें 900 रुपये में बोरी बेची जा रही है।” यानी सरकार की तय दर से तीन गुना ज्यादा।
मौके पर ही 525 बोरियां जब्त कर दुकान को सात दिन के लिए निलंबित कर दिया गया। संचालक को नोटिस थमा दिया गया और चेतावनी दी गई—अगर तीन दिन में संतोषजनक जवाब नहीं आया तो लाइसेंस रद्द होगा।

दबिश की भनक मिलते ही बंद हुए शटर
टीम आगे बढ़ी और जैसे ही अन्य दुकानों की बारी आई, खबर फैलते ही कई विक्रेताओं ने अपने-अपने शटर गिरा दिए। बावजूद इसके सिद्धि विनायक कृषि केन्द्र गोहरापदर और एक अन्य दुकान में निरीक्षण हुआ, जहां गंभीर अनियमितताएं सामने आईं।
- उर्वरकों का अवैध भंडारण
- मूल्य सूची प्रदर्शित नहीं
- कैश/उधारी का हिसाब गायब
- फॉर्म-एम और जरूरी रिकॉर्ड नहीं रखा गया
यह सब उर्वरक नियंत्रण आदेश 1985 का सीधा उल्लंघन है। सवाल है—जब नियम इतने साफ हैं, तो महीनों से यह खेल चल कैसे रहा था? क्या विभाग की आंखें बंद थीं या मिलीभगत से यह लूट जारी थी?

किसान ठगे गए, अफसरों की अपील
कृषि विभाग ने अब किसानों से अपील की है कि वे केवल अधिकृत विक्रेताओं से तय दाम पर ही उर्वरक खरीदें और पक्का बिल लें। लेकिन किसान पूछ रहे हैं—जब प्रशासन ही समय रहते कार्रवाई नहीं करता, तो हमारी गाढ़ी कमाई कौन लौटाएगा?
यह सिर्फ एक दुकान या एक गांव की कहानी नहीं है, बल्कि पूरे सिस्टम पर सवाल है। किसानों की पीठ पर छुरा घोंपकर खाद माफिया मालामाल हो रहे हैं और अफसर कागजी नोटिस देकर इतिश्री मान लेते हैं। अगर सरकार वाकई किसानों की हितैषी है तो दिखावे की नहीं, कठोर कार्रवाई की जरूरत है—ताकि यह लूट बंद हो और जिम्मेदार जेल में हों।

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