
गिरीश जगत, गरियाबंद। छत्तीसगढ़ जब अपनी रजत जयंती मना रहा है, तब गरियाबंद की मिट्टी सवाल कर रही है — क्या वाकई यहां विकास हुआ? राज्य बने 25 साल और जिला बने 14 साल गुजर गए, लेकिन गरियाबंद अब भी अधूरे पुलों, टूटी सड़कों और बरसात में कटे गांवों के साथ खड़ा है। 193 सड़कों में से 46 सड़कों पर 61 पुलों की फाइलें सरकार की टेबल पर जमी हैं, लेकिन मंजूरी सिर्फ कागज़ों में है। 128.68 करोड़ की प्रशासकीय स्वीकृति दी गई, मगर वित्तीय स्वीकृति के नाम पर “बजट की कमी” का बहाना दोहराया जा रहा है।

बजट नहीं, बहाने हैं — विकास की फाइलें धूल खा रही हैं
प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के तहत जिले में 317.5 करोड़ की लागत से 1095 किमी सड़कें बनीं। लेकिन इनमें से 46 सड़कों पर आज भी 61 पुलिया अधूरी हैं, जिससे 50 से अधिक गांव बरसात में दुनिया से कट जाते हैं। इनमें सबसे ज्यादा बदहाल हालात बिन्द्रानवागढ़ विधानसभा क्षेत्र के हैं, जहां 48 पुलों की फाइलें वित्त विभाग में अटकी हुई हैं।

जब पुल नहीं, तो जान पर खेलकर पार होते हैं लोग
मोगराडिह, लोहारी, अमलीपदर, सेंदबहारा, पतोरा दादर जैसे गांवों में बारिश का मतलब है — अलगाव। कभी गर्भवती महिलाओं को खाट पर लादकर नदी पार कराना पड़ता है, तो कभी बहते हुए लोगों को ट्यूब से बचाया जाता है।
पिछले सालों में कई बार बाइक, ट्रैक्टर और लोगों के बहने की घटनाएं सामने आ चुकी हैं, लेकिन प्रशासन हर बार वही जवाब देता है — “वित्तीय स्वीकृति लंबित है।”

राजनीति के शिकंजे में फंसा विकास
गरियाबंद का दुर्भाग्य यह है कि यहां विकास हमेशा राजनीतिक समीकरणों में उलझा रहा। जब कांग्रेस की सरकार थी तब विधायक भाजपा के थे, अब सरकार भाजपा की है और विधायक कांग्रेस के। नतीजा — जनता के हिस्से में सिर्फ वायदों का मलबा और अधूरी फाइलें।
बिन्द्रानवागढ़ विधायक जनक ध्रुव बोले — “क्षेत्र के साथ सौतेला व्यवहार हो रहा है “मैंने विधानसभा में पुल-पुलिया के मुद्दे को कई बार उठाया, शासन को पत्र लिखा, लेकिन जवाब सिर्फ सन्नाटा है। अगर यही हाल रहा, तो अब जनता के साथ सड़क पर उतरूंगा।”

आदिवासी क्षेत्रों की अनदेखी — नेताओं का आरोप
जिला पंचायत सदस्य संजय नेताम और लोकेश्वरी नेताम ने कहा —“सरकार अगर सच में आदिवासी हितैषी है, तो पहले अधूरे पुल पूरे करे। हमने कई बार धरना दिया, ज्ञापन सौंपे, लेकिन सरकार ने सिर्फ तारीखें दीं।”
विभाग का जवाब — “जल्द मिलेगी मंजूरी”
प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क विभाग के कार्यपालन अभियंता अभिषेक पाटकर ने कहा जनमन योजना के तहत जल्द ही लंबित पुलों को वित्तीय स्वीकृति मिलने जा रही है।
विभाग लगातार शासन से पत्राचार कर रहा है।” लेकिन सवाल यह है — क्या 14 साल की प्रतीक्षा “जल्द” कहने के लिए पर्याप्त नहीं है?
गरियाबंद का विकास: कागज़ पर चमक, ज़मीन पर जख्म
193 सड़के बनीं, पर 46 सड़कों पर पुल अधूरे
61 पुलों को 128.68 करोड़ की प्रशासकीय मंजूरी मिली
317.5 करोड़ खर्च कर 1095 किमी सड़क बनी
बिन्द्रानवागढ़ के 48 पुल अब भी अधर में लटके
बरसात में 50 गांव अब भी “कट ऑफ जोन” में तब्दील
रजत महोत्सव या सरकारी ढकोसला ?
गरियाबंद में जब मंचों पर “विकास” के गीत गाए जा रहे हैं, उसी वक्त गांवों की आवाज़ पूछ रही है — “अगर पुल ही नहीं बने तो किस रास्ते पहुंचेगा विकास?”
राज्योत्सव की चमक के बीच, इन अधूरे पुलों के नीचे बह रही हैं लोगों की उम्मीदें, और यही है गरियाबंद की सबसे बड़ी सच्चाई —रजत महोत्सव नहीं, अधूरा विकास महोत्सव।






