गरियाबंद में गोलियों से गूंजी मटाल की पहाड़ी: अब जवानों संग सजा जश्न का भोज, तीन दिन चला ऑपरेशन, मौत बनकर टूटी बौछार

गिरीश जगत की रिपोर्ट। गरियाबंद।
गरियाबंद की मटाल पहाड़ियों में तीन दिन तक चली गोलियों की बारिश ने नक्सल आतंक का किला हिला दिया। घात लगाए बैठे नक्सलियों को जब पुलिस और पैरामिलिट्री फोर्स की संयुक्त टीम ने जवाब दिया, तो जमीन पर वही कहानी लिखी गई जो बरसों से जवान अपने खून-पसीने से लिखते आ रहे हैं। इस ऑपरेशन में 10 कुख्यात नक्सलियों का सफाया हुआ, जिनमें वांछित मोडेम बालकृष्णा उर्फ मनोज (सीसी) भी शामिल था।

तीन दिन चला ऑपरेशन, मौत बनकर टूटी बौछार
10 सितंबर से 12 सितंबर तक ई-30, एसटीएफ, सीएएफ और कोबरा-207 बटालियन ने थाना मैनपुर क्षेत्र के राजाडेरा मटाल पहाड़ी की घेराबंदी की। मुखबिरी के आधार पर सुरक्षाबल उस इलाके में पहुँचे जहाँ नक्सली हथियार लूटने और जवानों को मौत के घाट उतारने की साजिश रच चुके थे। घने जंगलों में अचानक गूँजी अंधाधुंध गोलियों की बौछार। लेकिन इस बार जवाब भी उतना ही सटीक और घातक था। सुरक्षाबलों ने पलटवार करते हुए मुठभेड़ को अपने नाम कर लिया।

नक्सल खात्मे का बड़ा अध्याय
इस ऑपरेशन ने गरियाबंद की धरती पर नक्सलविरोधी अभियान को नई ऊर्जा दी। पुलिस ने न सिर्फ 10 बड़े नक्सल कैडरों को ढेर किया बल्कि इलाके के ग्रामीणों को भी यह भरोसा दिलाया कि अब जंगल की हुकूमत बदल रही है।
जीत का स्वाद, जवानों संग लंच
इस सफलता के बाद गरियाबंद पुलिस लाइन में एक अलग ही नज़ारा था। गोलीबारी की गूंज के बाद अब बारी थी जीत के स्वाद की। छत्तीसगढ़ पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) अरुण देव गौतम, एडीजी विवेकानंद सिन्हा, आईजी अमरेश मिश्रा और केंद्रीय बलों के वरिष्ठ अधिकारी जवानों के बीच पहुँचे। नक्सल ऑपरेशन में शामिल हर सिपाही को बधाई और शुभकामनाएँ दी गईं।
इसके बाद वही हुआ जो शायद जवानों के लिए सबसे बड़ी खुशी होती है—उनके साथ एक ही पंगत में बैठकर आला अधिकारी भोजन करते दिखे। गरियाबंद पुलिस लाइन में सजा बड़ा खाना सिर्फ भोज नहीं था, यह उन जवानों की बहादुरी का उत्सव था, जिन्होंने मौत को मात देकर नक्सलियों को धूल चटाई।
जवानों का हौसला और बढ़ा
डीजीपी गौतम ने साफ कहा—“यह जीत सिर्फ पुलिस की नहीं, बल्कि पूरे समाज की है। जवानों का साहस और त्याग ही है जिसने नक्सल खात्मे के इस सफर को संभव बनाया। आने वाले दिनों में यह अभियान और तेज़ होगा।”