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गरियाबंद में करंट से मासूम की मौत: छत पर खेल रही 8 साल की बच्ची हाईटेंशन तार की चपेट में आई, गोद में लाश लेकर रो रहा पिता, बिलख रहीं मां

गिरीश जगत, गरियाबंद। छत्तीसगढ़ में सुशासन तिहार के बीच गरियाबंद जिले के पारागांव से एक ऐसा दर्दनाक हादसा सामने आया है, जिसने पूरे इलाके को हिला दिया। सिर्फ आठ साल की एक मासूम बच्ची की जान उस करंट ने ले ली, जिसकी शिकायत ग्रामीण कई महीनों से करते आ रहे थे। पर विभाग ने कभी सुना नहीं — और आज एक मासूम की जान चली गई।

छत पर खेलते हुए हुआ हादसा

घटना गोबरा नवापारा से लगे पारागांव की है। सोमवार की दोपहर बच्ची अपने घर की छत पर खेल रही थी।छत के ऊपर से ही 11 केवी हाईटेंशन लाइन गुज़रती थी। अचानक बच्ची उस लाइन की चपेट में आ गई। तेज़ करंट और जोरदार स्पार्किंग के बीच बच्ची नीचे गिर गई — और मौके पर ही उसकी दर्दनाक मौत हो गई।

गांव के लोग कुछ समझ पाते, उससे पहले पूरा घर मातम में बदल गया। गांव की गलियां सन्नाटे में डूब गईं — बिजली विभाग की लापरवाही का यह मंजर हर आंख को नम कर गया।

परिजनों का फूटा गुस्सा — शव लेकर पहुंचे बिजली दफ्तर

घटना के बाद ग्रामीणों में भारी आक्रोश फैल गया। मृत बच्ची के पिता अपनी बेटी का शव गोद में उठाए विद्युत विभाग कार्यालय पहुंचे और वहीं धरने पर बैठ गए।

उन्होंने आरोप लगाया कि हाईटेंशन लाइन को हटाने की मांग कई बार लिखित रूप में की गई थी, यहां तक कि सुशासन तिहार के दौरान भी आवेदन दिया गया, लेकिन अफसरों ने अनदेखी की।

गांव के लोगों ने बिजली विभाग पर गंभीर लापरवाही के आरोप लगाए और कहा —“अगर समय रहते विभाग सुन लेता, तो आज एक मासूम की जान नहीं जाती।”

ग्रामीणों ने किया घेराव — चेताया प्रशासन को

गुस्साए ग्रामीणों ने विद्युत कार्यालय का घेराव कर जमकर नारेबाजी की। उन्होंने चेतावनी दी — “अगर जल्द ही गांव के ऊपर से हाईटेंशन लाइन नहीं हटाई गई, तो हम उग्र आंदोलन करेंगे।”

लोगों ने कहा कि यह सिर्फ एक हादसा नहीं, बल्कि विभागीय लापरवाही का नतीजा है। सरकार विकास की बातें करती है, लेकिन ग्रामीणों की सुरक्षा उसके एजेंडे में कहीं नहीं दिखती।

विभाग का सफाई बयान — ‘बजट नहीं है’

वहीं इस पूरे मामले पर विद्युत विभाग के अधिकारियों ने कहा कि “हाईटेंशन लाइन को शिफ्ट करने के लिए आवेदन उच्च कार्यालय भेजा गया है, लेकिन फिलहाल बजट स्वीकृत नहीं हुआ।” सरकारी बयान वही पुराने अंदाज़ में — ‘बजट नहीं है’, ‘स्वीकृति लंबित है’, और बीच में दम तोड़ती एक मासूम ज़िंदगी।

सवाल यही है…

कब तक ऐसे हादसे बजट और स्वीकृति के बीच दबते रहेंगे? क्या अब कोई और बच्ची इस लापरवाही की कीमत चुकाएगी?वक्त है कि शासन और प्रशासन दोनों जवाब दें —गरियाबंद अब चुप नहीं रहेगा।

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