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गरियाबंद में विकास की जगह विनाश का नक्शा: आदिवासी हकों की हत्या, खंडहरों में शिक्षा, अस्पतालों में सन्नाटा, सड़कों पर गड्ढे, नेताम बोले- कब तक चलेगा ये विकास का घटिया मज़ाक ?

गिरीश जगत की रिपोर्ट, गरियाबंद।
आदिवासी अंचलों की उपेक्षा अब और नहीं सहेगा गरियाबंद। जिले के जिला पंचायत सदस्य संजय नेताम ने मंगलवार को जिला प्रशासन को घेरते हुए आदिवासी और अति पिछड़ी जनजातियों की दुर्दशा पर कड़ा ऐतराज़ जताया। नेताम ने जिला कलेक्टर को ज्ञापन सौंपकर शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क और बुनियादी सुविधाओं की भयावह स्थिति पर सवालों की झड़ी लगा दी।

उन्होंने विशेष रूप से कमार और भूंजिया जनजाति के गांवों की दशा पर चिंता जताई और कहा कि

“करोड़ों का बजट, योजनाएं और आदिवासी विकास विभाग होने के बावजूद बच्चे खंडहरनुमा स्कूलों में पढ़ने को मजबूर हैं। स्वास्थ्य सुविधाएं लगभग दम तोड़ चुकी हैं और सड़कें बारिश के पहले पानी में बह जाती हैं।”


संजय नेताम के तीखे सवाल:

  • जब समस्याएं वर्षों से ज्ञात हैं, अब तक ठोस कार्रवाई क्यों नहीं?
  • अधूरे भवनों और घटिया सड़कों के लिए किस पर होगी जिम्मेदारी तय?
  • योजनाओं का लाभ असल जरूरतमंदों तक क्यों नहीं पहुंच रहा?

स्वास्थ्य सेवाएं दम तोड़ रहीं:

नेताम ने कहा कि उपस्वास्थ्य केंद्र, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और जिला अस्पतालों में डॉक्टरों और स्टाफ की भारी कमी है। कई गांवों में तो सालों से डॉक्टर नहीं पहुंचे हैं। इलाज के लिए मरीजों को मीलों दूर भटकना पड़ता है।


सड़कें: दो महीने भी नहीं टिकतीं:

ज्ञापन में यह भी बताया गया कि ग्रामीण सड़कों की हालत ऐसी है कि दो महीने के भीतर ही वे गड्ढों में तब्दील हो जाती हैं। मरम्मत के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति की जाती है, जिससे लोगों में रोष है।


नेताम की मांगें:

  1. 7 दिनों के भीतर एक उच्च स्तरीय जांच समिति बनाई जाए।
  2. प्रभावित गांवों का मैदानी निरीक्षण कर दोषियों पर कार्रवाई की जाए।
  3. सभी निर्माण कार्यों का थर्ड-पार्टी ऑडिट अनिवार्य किया जाए।
  4. जनजातीय क्षेत्रों के लिए स्थायी विकास रोडमैप तैयार हो।


संजय नेताम की यह पहल केवल ज्ञापन नहीं, एक जनजातीय चेतना का उद्घोष है। उन्होंने प्रशासन से न केवल जवाब मांगा है, बल्कि यह स्पष्ट कर दिया है कि अब खामोशी नहीं, हक़ की लड़ाई होगी।

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