Father’s Day Special: 18 जून का दिन हर साल फादर्स डे के रूप में मनाया जाता है. लोग चाहते हैं कि उनके पिता इसे मनाएं. आज फादर्स डे के खास मौके पर हम आपको एक ऐसे शख्स से मिलवाते हैं जो 2 या 4 नहीं बल्कि 600 बच्चों का पिता है. गरियाबंद निवासी 60 वर्षीय श्यामलाल करीब 42 साल से अनाथालय चला रहे हैं. . श्यामलाल के माता-पिता बचपन में ही गुजर गए थे.
जशोदा अनाथ आश्रम देवभोग से मात्र 16 किलोमीटर की दूरी पर कालाहांडी के धरमगढ़ के गांबरीगुड़ा गांव में स्थित है. इस आश्रम में 6 दूध पिलाने वाले 6 बच्चों समेत 100 बच्चों का लालन-पालन 60 वर्षीय श्याम लाल की देखरेख में हो रहा है. इन बच्चों में 30 से अधिक ऐसे बच्चे हैं, जिनके गरीब माता-पिता जन्म से ही विकलांग होने के कारण अपने पीछे छोड़ गए हैं. ओडिशा में मौजूद इस आश्रम ने देवभोग क्षेत्र के 100 से ज्यादा अनाथ बच्चों को आश्रय दिया है.
सभी बच्चे श्याम सुंदर को पिता और उनकी पत्नी कस्तूरी को माता कहकर पुकारते हैं. ये कपल 3 आया और 5 अन्य कर्मियों के साथ 24 घंटे बच्चों की सेवा में लगा हुआ है. श्याम लाल ने कहा कि ओडिशा सरकार की मदद से पिछले 15 साल में आश्रम के लिए पर्याप्त भवन, चारदीवारी का निर्माण किया गया है. 40 बच्चों के पालन-पोषण के लिए प्रति सदस्य 1800 रुपये प्रतिमाह. इसके अलावा उनके 3 बेटे जो भी कमाते हैं वो इस नेक काम में खर्च करते हैं.
1980 से कई लोगों की जान बचाई जा रही है
श्याम सुंदर दास जब 18 साल के थे तो उन्होंने धरमगढ़ रोड पर एक पेड़ के नीचे एक बच्चे को रोते हुए पाया, जिसे उठाकर घर ले गए. उनकी मां जशोदा ने बच्चे की देखभाल की. उसी समय श्याम ने ऐसे बच्चों की सेवा करने का निश्चय किया. 6 महीने में 4 बच्चे हुए.
उस समय श्याम दर्जी का काम कर रहा था. वह देवभोग के कुम्हदई गांव भी मजदूरी करने जाता था. श्याम पर बच्चों को लेकर बच्चा चोरी का भी आरोप लगा था. जेल जाने की नौबत आ गई है, लेकिन कुछ समाजसेवियों के बयानों ने श्याम को कानून के शिकंजे से बचा लिया.
उसकी पत्नी दो साल से श्याम से दूर थी
1984 में मां जसोदा का भी निधन हो गया. 90 के दशक में श्याम बिना किसी की मदद के कच्चे घर में 40 से ज्यादा बच्चों की परवरिश कर रहे थे. सहयोग के लिए जीवन साथी चाहिए था. बच्चा पालने की सनक देखकर कोई भी उन्हें बेटी नहीं देना चाहता था, जिसके बाद उन्होंने अपनी पसंद की लड़की कस्तूरी देवी से मंदिर में शादी कर ली और घर बसा लिया. संघर्ष जारी रहा.
पहले 15 साल श्याम बच्चों की देखभाल के लिए दर्जी का काम करता था. श्याम के बच्चों की इस जिद को देखकर तीन बच्चों की मां बन चुकी कस्तूरी बाई बच्चों समेत दो साल तक अपने पति से दूर रहीं. घर में तनाव था, लेकिन बाहर के लोग भी श्याम की सेवा भावना के कायल थे.
पत्नी को भी पति के इस नेक काम का एहसास हुआ, फिर दोनों ने मिलकर अनाथों की सेवा की. बात यहां तक पहुंची कि श्याम के छोटे भाई ने उनके पालन-पोषण के लिए अपने ही बच्चों को ले लिया. बेटे बड़े हुए तो आज बेटे भी उन सभी बच्चों को परिवार का सदस्य मानकर मदद करने लगे हैं.
37 बेटियों की करा चुके शादी
श्यामलाल के खुद के 3 बच्चे भी हैं, लेकिन अनाथों के प्रति ज्यादा लगाव देख पत्नी भी घर छोड़ कर चली गई थी. फिर सेवा भाव का मन होने के बाद आज पत्नी भी पूरा सहयोग करती है. इस दंपत्ति ने आश्रम के 37 बेटियों की शादी भी कराई है. मायका का सारा रस्म निभा रहे हैं. भगवान के रूप माने जाने वाले बच्चों के इस मंदिर में ज्यादातर लोग अपना यादगार दिन मनाने भी पहुंचने लगे हैं.
150 से अधिक जोड़ों ने बच्चों को गोद लिया है
2008 के बाद उन्हें सरकारी मदद मिलने लगी. भवन, बाउंड्री वॉल बने. जब तक बच्चों के पालन-पोषण के लिए थोड़ी सी राशि से सरकारी फंडिंग शुरू हुई, तब तक वे 150 बच्चों को पाल चुके थे. समय के साथ छत्तीसगढ़ और ओडिशा के 150 से अधिक जोड़ों ने अनाथालय से कई बच्चों को गोद लिया. श्याम सुंदर इसे अनाथालय नहीं मानते हैं.
वे अपने घर और सभी को अपनी संतान मानते हैं. इस परिवार की खासियत की कहानी दूर-दूर तक कही जाती है. अन्य लोगों का इसके प्रति इतना लगाव है कि लोग इस आश्रम में जन्मदिन, वर्षगाँठ या अन्य खुशी के अवसर मनाने आते हैं. स्थानीय स्तर पर होने वाले आयोजनों में कुछ हिस्सा भोजन और अन्य व्यंजन भी यहां पहुंचते हैं.
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