
गिरीश जगत, गरियाबंद। क्या 9 हजार रुपये प्रति एकड़ उस फसल के दर्द की भरपाई कर सकते हैं, जिसे किसानों ने पसीने से सींचा हो और जिसे एक रात में हाथियों ने रौंद डाला हो? गरियाबंद जिले के मैनपुर में आज यही सवाल गूंजा — नारों, तख्तियों और 10 सूत्रीय मांगों के साथ। करीब 2 हजार ग्रामीण, जिनमें बड़ी संख्या में महिलाएं भी शामिल थीं, हाथी प्रभावित क्षेत्रों के किसानों को न्याय दिलाने के लिए सड़कों पर उतर आए।
दुर्गा मंच से वन विभाग कार्यालय तक रैली निकाली गई, लेकिन वहां पहले से तैनात भारी पुलिस बल ने उन्हें रोक लिया। इसके बाद प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच झूमाझटकी हुई। हालात बिगड़ते देख वन विभाग के उपनिदेशक वरुण जैन स्वयं बाहर आए और किसानों से संवाद किया।
क्या हैं ग्रामीणों की प्रमुख मांगें?
फसल नुकसान पर 75,000 रुपये प्रति एकड़ का मुआवजा, जबकि वर्तमान में सिर्फ 9,000 रुपये दिए जा रहे हैं।
जनहानि पर 50 लाख रुपये का मुआवजा।
हाथी प्रभावित क्षेत्रों को सुरक्षित घोषित करने और सीमांकन करने की मांग।
मकान क्षति, लंबित मुआवजा और आजीविका के नुकसान की भरपाई।
हाथियों के हमले से सुरक्षा के स्थायी उपाय और ट्रैकिंग सिस्टम की समीक्षा।
वन विभाग ने क्या कहा?
उपनिदेशक वरुण जैन ने हाथी मित्र, 24×7 ट्रैकर, ‘हाथी ऐप’ जैसी पहलों का उल्लेख करते हुए कहा कि विभाग लगातार हाथियों के मूवमेंट पर निगरानी रख रहा है। उन्होंने ग्रामीणों को आश्वस्त किया कि उनकी मांगें “शासन तक पहुंचाई जाएंगी” और संवेदनशीलता से विचार किया जाएगा।
जैन ने यह भी स्पष्ट किया कि जंगल और गांव के बीच सामंजस्य बैठाने के प्रयास चल रहे हैं, ताकि हाथी और मानव के बीच संघर्ष को न्यूनतम किया जा सके। उन्होंने कहा, “हम भी नहीं चाहते कि कोई ग्रामीण जान जोखिम में डाले, लेकिन इस समस्या का समाधान सभी की सहभागिता से ही संभव है।”
ग्रामीण बोले – ‘अब वादे नहीं, समाधान चाहिए’
लेकिन प्रदर्शनकारी इस आश्वासन से संतुष्ट नहीं दिखे। आंदोलन का नेतृत्व कर रहे जिला पंचायत सदस्य लोकेश्वरी नेताम और संजय नेताम ने स्पष्ट शब्दों में चेतावनी दी: अगर 15 दिन के भीतर हमारी मांगे नहीं मानी गईं, तो गांव-गांव में प्रदर्शन होगा।”
लोकेश्वरी नेताम ने कहा कि विभाग सालों से सिर्फ 9 हजार रुपये प्रति एकड़ का मुआवजा दे रहा है, जबकि वास्तविक नुकसान कहीं अधिक है। उन्होंने सवाल उठाया कि जब किसानों की पूरी फसल बर्बाद हो जाती है, तो इतनी कम राशि में उनका गुज़ारा कैसे होगा?
संजय नेताम ने कहा, “हाथियों का इलाका तय नहीं है। दिन-रात हम डर के साये में जीते हैं। रात में नींद नहीं आती। हमारी जान-माल दोनों खतरे में हैं। अब सिर्फ कोरे आश्वासन नहीं चाहिए, समाधान चाहिए।”
क्यों गंभीर हो रही है यह समस्या ?
गरियाबंद जिला लंबे समय से हाथी-human conflict का केंद्र बना हुआ है। जंगल से सटे गांवों में हाथी लगातार घुसपैठ करते हैं, फसलें बर्बाद होती हैं, मकान टूटते हैं और कभी-कभी मानव जीवन भी खत्म हो जाता है।
सरकार ने ट्रैकिंग सिस्टम, मुआवजा स्कीम और हाथी मित्र जैसी योजनाएं लागू की हैं, लेकिन ग्राउंड पर राहत सीमित नजर आती है। अब किसान सुनवाई और न्याय की बजाय ठोस कार्रवाई की मांग कर रहे हैं।
यह आंदोलन सिर्फ मुआवजे का मामला नहीं है, यह एक सिस्टम पर सवाल है, जो संकट को पहचान तो रहा है, लेकिन समाधान अभी अधूरा है। गरियाबंद के जंगलों में हाथी हैं और उनके बीच फंसे वे लोग हैं, जिनकी आवाज़ अब सड़कों से उठ रही है। अब देखना यह है कि 15 दिन के इस अल्टीमेटम के बाद, शासन क्या रुख अपनाता है — समाधान या फिर टकराव?