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छत्तीसगढ़ी म पढ़व- कभू नइ जानेन तइसना होवत हे, बेरा बादर दुनो बिदक गेहें

ओसरी पारी आना जाना फेर इहां खोजव ठिकाना… जतका जीव जगत हे तेमा आना अऊ जाना चलतेच आवय अइसे रचना संसार हे. रचे अउ बसे के ठिकाना हमला धरती मा मिले हे. धरती अपन सेती सबो झन ला मया दुलार देतेच आवत हे. जबले जनम धरिस धरती मंईया तबले कोनो ला अपन डाहर ले दुख नइ देवय. हमन जानसुन के घलाव उतियाइल होगे हावन. लइकई बुद्धि मा माफी हे फेर जाने सुने के लाईक होगे हावस त पता ठिकाना ला संवारे के प्रयास काबर नइ होवत हे.

तब अब के सवांगा के सेती सब होवत हे
होत बिहिनिया सबो के अपन – अपन काम बुता के चिंता हो जथे. अपनेच सेती ताय कहिके रोसलगहा कखरो बिगाड़ झन होवय. सगा. होवय के पारा परोसी सबो डहर ले सोंच बनाना परही. रंग रंग सवांगा के सेती धरती के सोसन होवत हे. सोसन करइया आदमी तिदमी कतको होगे हें. कतको के सेती कतका झन नकसान ला झेलत हें. तेला तें नइ जानबे ते कइसे बनही. जतका मा चल जाय ततके सवांगा करना चाही.

अभे घलाव जादा बिगाड़ नइ होए हे सावचेत हो जावव
गरजत , बरसत अऊ तिपोवत हे तेन कोने कोनो अगमजानी होतिन ते पूछतेन. गुनइया मन गुनत रइथें अऊ नवा नवा बात ला समझ के रसमझावत रइथें. घरो घर चेताए बर के दिन ले बपुरा मन जाहीं. तिही देख सुन के कनुवाए हावस तेला तहूं जानत हावस. जानसुन के मन भितरी तोर काए चलत हे तेला तें जान. आमदनी के बढ़वार करइया मन चेत जावय तुहंरे सेती सबो होवत हे , कभू नइ जानेन तइसना होवत हे.

(मीर अली मीर छत्तीसगढ़ी के जानकार हैं, आलेख में लिखे विचार उनके निजी हैं.)

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