
गिरीश जगत, गरियाबंद। छत्तीसगढ़ के गरियाबंद – जिले की कलेक्टरेट हो, अस्पताल हो या विभागीय दफ्तर — हर जगह फायर सेफ्टी सिस्टम सिर्फ दिखावे का तमाशा बनकर रह गया है। जिन दफ्तरों में हर दिन हजारों लोगों की आवाजाही होती है, वहां आग से निपटने के इंतजाम खुद धुएं में उड़ चुके हैं।
संयुक्त जिला कार्यालय, जहां से पूरे जिले की प्रशासनिक कमान चलती है, वहीं दो महीने से फायर एक्टिंगविशर एक्सपायर पड़ा है। गेट पर लगा 6 किलो वाला यंत्र हो या अंदर के बीसों ऑफिस — सब जगह लापरवाही की मिसालें गड़ी हैं। 8 अगस्त 2024 को भरे गए यंत्र 7 अगस्त 2025 तक वैध थे। यानी अगस्त के बाद से कलेक्टरेट में लगे फायर सेफ्टी यंत्र सिर्फ दीवार की शोभा हैं, सुरक्षा की नहीं।

जिन्हें सीख देनी चाहिए, वो खुद गैरजिम्मेदार
जिले के आला अफसरों को सुरक्षा मानकों की दुहाई देने में देर नहीं लगती, लेकिन अपने ही ऑफिस में मौत को न्यौता देने वाले हालात से आंखें मूंदे बैठे हैं। कोई पूछे — क्या किसी बड़े हादसे का इंतजार है?
हादसे की तारीख लिख चुकी जगहों पर भी सुध नहीं
दो साल पहले जिस सीएमएचओ दफ्तर के गोदाम में आग लगी थी, वहां भी हालात जस के तस हैं। वहां लगा यंत्र साल भर पहले ही एक्सपायर हो चुका है। जिला अस्पताल, जहां हर रोज मरीजों की भीड़ उमड़ती है, वहां भी फायर सेफ्टी एक दिखावटी नाम है। पीडब्ल्यूडी, कृषि विभाग, विश्राम गृह — कोई दफ्तर इससे अछूता नहीं।

नोटिस का भी नहीं कोई असर
आखिरी बार जब अग्निशमन अधिकारी ने सीएमएचओ और पीडब्ल्यूडी को नोटिस थमाया, तो लगा था कुछ तो बदलेगा। लेकिन न जिम्मेदारी बदली, न सिस्टम। जिला अस्पताल के प्रशासन से लेकर कलेक्टर के दफ्तर तक, हर जगह हालात यह चीख-चीख कर कह रहे हैं कि यहां लापरवाही को ‘नियम’ बना दिया गया है।

“कब जागेगा सिस्टम?”
पुष्पराज सिंह, जिला अग्निशमन अधिकारी ने साफ कहा है कि रिफिलिंग न कराने से न सिर्फ ड्राय पाउडर बेअसर हो जाता है बल्कि सिलेंडर का प्रेशर भी खत्म हो जाता है। लेकिन फिर सवाल ये है — क्या सिर्फ नोटिस देकर प्रशासन अपनी जिम्मेदारी निभा रहा है? क्या आम जनता की जान की कीमत एक एक्सपायर्ड सिलेंडर से भी कम है?
गरियाबंद प्रशासन फिलहाल आग से खेलने का शौक पाले हुए है। लेकिन याद रखिए — जब चिंगारी भड़कती है, तो सिस्टम की नींद से पहले लोगों की जान जाती है।

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