अनूपपुर में हाथियों की चिंघाड़ का खौफ: छत्तीसगढ़ से भटककर MP में डेरा, हर रात मौत के साए में जिंदगी, जानिए कहां टूटे घर, कहां चौपट हुई फसलें ?

Madhya Pradesh Anuppur Elephants camped in Choi forest: रात की हवा में अब फुसफुसाहट नहीं, चिंघाड़ सुनाई देती है। दरवाजों पर ताला नहीं, लोग खुद पहरा दे रहे हैं। चोई का जंगल अब सिर्फ जंगल नहीं, वहां से डर निकलकर गांवों तक आ पहुंचा है। पिछले पांच दिनों से अनूपपुर के जैतहरी इलाके के ग्रामीण एक ऐसे खतरे की साए में जी रहे हैं, जो हर रात उनके दरवाजे के सामने खड़ा हो जाता है—चार हाथियों का भटका हुआ झुंड, जो अब जंगल नहीं, गांव में रहने लगा है।
दिन में नींद, रात में कहर
Madhya Pradesh Anuppur Elephants camped in Choi forest: चोलना बीट के चोई गांव में डेरा डाले ये हाथी दिनभर जंगल की आड़ में विश्राम करते हैं और जैसे ही सूरज ढलता है, निकल पड़ते हैं अनाज, धान और मकान को तहस-नहस करने। गांव की गलियों में अब न बच्चों की किलकारी है, न बुजुर्गों की चौपाल। सब कुछ बंद है, सन्नाटा है, और है एक अनदेखा डर।

फरसू, छोकू और मन्नू का टूटा सपना
Madhya Pradesh Anuppur Elephants camped in Choi forest: फरसू यादव की खाट अब वहीं टूटी पड़ी है, जिस पर उसकी मां हर शाम बैठकर रामायण सुनती थी। छोकू का आंगन जहां उसके पोते ने पहली बार कदम रखा था, अब सिर्फ उखड़ी हुई मिट्टी है। मन्नू सिंह के घर की वह दीवार, जिसमें सालों से टंगी थी उसकी शादी की तस्वीर, अब खंडहर बन चुकी है।
Madhya Pradesh Anuppur Elephants camped in Choi forest: हाथियों ने न सिर्फ घरों को तोड़ा, बल्कि लोगों की मेहनत को भी चबा डाला। पूरन राठौर, लाला नापित, रामदीन सिंह जैसे दर्जनों किसान उन खेतों की ओर देखकर रो उठते हैं, जिनमें उन्होंने आने वाले त्योहारों के सपने बोए थे।

छत्तीसगढ़ के रास्ते भटके, अनूपपुर में अटके
यह हाथियों का वही दल है, जो बुढार की सीमा से होते हुए जैतहरी आया था। वन विभाग को उम्मीद थी कि ये झुंड छत्तीसगढ़ की ओर लौट जाएगा, लेकिन हाथियों ने जैसे चोई को ही अपना ठिकाना बना लिया है। अब तक 20 से ज्यादा खेत उजड़ चुके हैं, दर्जनों घरों में दरारें आ चुकी हैं, और हर दिल में डर घर कर चुका है।
हर रात जैसे कोई जंग हो
Madhya Pradesh Anuppur Elephants camped in Choi forest: हर रात गांव वाले टोर्च, डंडे और ढोल लेकर पहरा देते हैं। जैसे कोई युद्ध हो रहा हो — जहां एक ओर हैं बिना हथियार के ग्रामीण, और दूसरी ओर हैं प्रकृति के सबसे ताकतवर योद्धा। लेगराटोला, कनईटोला, पडमनियाटोला तक फैली इस दहशत की लहर ने गांव की रातों को नींद से परे कर दिया है।
वन विभाग की कोशिशें और ग्रामीणों का संघर्ष
वन परिक्षेत्र अधिकारी विवेक मिश्रा और उनकी टीम हाथी मित्र दल के साथ लगातार गश्त कर रही है। रात में ट्रैकर और फायर से हाथियों को दूर भगाने की कोशिश की जाती है, लेकिन हर सुबह वे फिर लौट आते हैं। जैसे कोई बिछुड़ा हुआ रास्ता फिर याद आ गया हो, जैसे जंगल से अधिक अपनापन अब इन हाथियों को गांवों में मिल गया हो।
अब सिर्फ अपील है… और उम्मीद
Madhya Pradesh Anuppur Elephants camped in Choi forest: वन विभाग बार-बार अपील कर रहा है — हाथियों से दूरी बनाए रखें, सतर्क रहें, अकेले जंगल की ओर न जाएं। लेकिन ग्रामीण पूछते हैं — “जब हाथी ही जंगल में नहीं, हमारे आंगन में हैं, तो हम किससे दूर रहें?”
Madhya Pradesh Anuppur Elephants camped in Choi forest: यह सिर्फ हाथियों की आमद नहीं, यह उस संतुलन का बिगड़ना है जो जंगल और इंसान के बीच कभी बहुत गहरा हुआ करता था। अब जंगल गांव में उतर आया है… और इंसान पेड़ पर चढ़कर जिंदगी बचाने को मजबूर है।

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