गिरीश जगत, गरियाबंद: ये गरियाबंद है साहब। यहां विकास के नाम पर झुनझुना ही मिलता है। चाहे किडनी पीड़ित गांव हो या फिर कोई ग्राणीण इलाके का गांव। यहां के ग्रामवासियों को सिर्फ विकास के नाम पर झुनझुना ही थामना पड़ता है। बेबस, लाचार ग्रामीण अब चुनाव बहिष्कार कर दिए हैं। ग्रामीणों ने नेता, मंत्री समेत SDM, कलेक्टर को झूठा कहा है। गरियाबंद के परेवापाली में विकास पर अनदेखी का ग्रहण लग चुका है। यहां दयनीय स्थिति इतनी खराब है कि गर्भवती महिलाएं पहले ही गांव छोड़ देती हैं। बाहर किराए के घर में रहती हैं, ताकि बच्चे को जन्म दे सकें। यहां न स्कूल, न सड़क और न पुल बना है। ग्रामवासी हताश हैं, गांव को छोड़कर जाने को मजबूर हैं। प्रशासन हाथ पर हाथ धरे बैठा है।
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ये है पूरी गांव की कहानी
गरियाबंद में स्थानीय जन प्रतिनिधियों के प्रति काफी नाराजगी है। देवभोग तहसील के परेवापाली गांव की आबादी 800 है। यहां इस बार भी चुनाव बहिष्कार का ऐलान किया गया है। गांव के बाहर एक बोर्ड भी लगाया गया है, जिसमें लिखा है कि नेताओं का प्रवेश वर्जित है। ग्रामीणों का कहना है कि 15 साल में कोई भी सरकार उनकी पांच मांगों को पूरा नहीं कर पाई, जिसके कारण लोग गांव छोड़ रहे हैं।
50 परिवार पहले ही गांव छोड़ चुके
छत्तीसगढ़ अस्तित्व में आने के 24 साल बाद भी गरियाबंद जिले का एक गांव आज भी बुनियादी सुविधाओं से जूझ रहा है। परेवापाली गांव में 446 मतदाता हैं, जो एक बार फिर चुनाव का बहिष्कार कर रहे हैं। 150 परिवारों वाले इस गांव में 50 परिवार पहले ही गांव छोड़ चुके हैं।
किसी भी सरकार ने मांगें पूरी नहीं कीं
ग्रामीण पक्की सड़क, स्कूल भवन, राशन दुकान, पेयजल, करचिया रोड पर पुल निर्माण और गांव को सेनमुडा और पंचायत मुख्यालय निष्टीगुड़ा से जोड़ने वाली 45 साल पुरानी नहर की मरम्मत की मांग कर रहे हैं। वे 2008 से भाजपा सरकार के सुराज अभियान के माध्यम से मांग कर रहे हैं, लेकिन अब तक किसी भी सरकार ने उनकी मांग पूरी नहीं की है।
कांग्रेस सरकार ने भी मांगें पूरी नहीं कीं
ग्रामीण विद्याधर पात्र, निमाई चरण, प्रवीण अवस्थी ने कहा कि भाजपा सरकार में मांगें पूरी नहीं हुईं तो 2018 विधानसभा और 2019 लोकसभा चुनाव का बहिष्कार किया गया। जब कांग्रेस की सरकार बनी तो हमें आश्वासन तो मिला, लेकिन कांग्रेस सरकार ने भी मांगें पूरी नहीं कीं। ग्रामीणों ने बताया कि कलेक्टर और एसडीएम को भी ज्ञापन दिया गया, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई।
50 परिवारों ने गांव छोड़ दिया
बुनियादी समस्याओं के कारण अब तक 50 परिवार गांव छोड़ चुके हैं। 800 की आबादी वाले इस गांव में 150 परिवार रहते थे। ग्रामीणों ने बताया कि यहां 23 परिवार ऐसे हैं जो अपने रिश्तेदारों के गांव में बस गए। उनका नाम भी वोटर लिस्ट से हटा दिया गया।
वर्तमान में पंजीकृत मतदाताओं की संख्या 446 है। इनमें से 35 परिवारों के मतदाता अपने परिवार सहित देवभोग एवं ओडिशा में बस गये। इस परिवार की खेती किसानी के नाम पर है और राशन कार्ड गांव के नाम पर है। वे भी वोट देने आते हैं।
गर्भवती महिलाएं दूसरे गांव में किराए के घर में रहती हैं
गांव की कच्ची सड़क बरसात के मौसम में चिकनी मिट्टी के कारण फिसलन भरी हो जाती है। दोपहिया वाहन से पैदल चलना भी मुश्किल हो जाता है। प्रसव पीड़ा होने पर गर्भवती महिला को खाट पर लादकर दूर खड़ी एंबुलेंस तक ले जाना पड़ता है। खतरे को देखते हुए गर्भवती महिला को दूसरे गांव में किराए का सुरक्षित घर लेना पड़ता है और प्रसव तक उसे बाहर रखना पड़ता है।
अधिकांश मांगें स्वीकृत हो गई हैं, ग्रामीणों को बताएंगे
एसडीएम अर्पिता पाठक ने बताया कि ग्रामीणों की भवन, सड़क और पेयजल संबंधी अधिकांश मांगें स्वीकृत हो गई हैं। पेयजल का काम चल रहा है। प्रशासन गांव में जाकर उन्हें मांगों के बारे में विस्तार से जानकारी देगा। गांव में मतदाता जागरूकता कार्यक्रम चलाया जायेगा और ग्रामीणों से मतदान में भाग लेने की अपील की जाएगी।
प्रशासन पर सवाल ?
अब सवाल ये है कि जब इनकी मांगें पूरी हो गई हैं, सरकार ने स्वीकृति दे दी है, तो प्रशासन किस मुहूर्त का इंतजार कर रहा है। यहां विकास कार्य क्यों शुरू नहीं किए गए। क्या 15 साल से जो झुनझुना ग्रामीणों को थमाया जा रहा है, वही झुनझुना फिर स्वीकृत हुआ है, जिससे आज गर्भवती महिलाओं को किराए के घर में रहना पड़ रहा है ? प्रशासन और नेताओं पर ग्रामीण खासे नाराज हैं।
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