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MP News: उच्च शिक्षा मंत्री ने बयान पर जताया खेद, जिन्होंने उनकी बात को तोड़ा-मरोड़ा, उन पर कानूनी कार्यवाही

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मध्यप्रदेश के उच्च शिक्षा मंत्री डॉ. मोहन यादव ने अपने विवादित बयान पर खेद जताया। दो दिन से डॉ. यादव का एक बयान वायरल हो रहा था। इसमें उन्होंने कहा था कि देवी सीता धरती में समा गई थी, जिसे आज की स्थिति में आत्महत्या कहा जा सकता है। 

इस बयान पर बवाल मचने के बाद डॉ. यादव ने एक वीडियो जारी कर कहा कि भगवान श्रीराम और माता सीता भारतीय संस्कृति के प्रेरणा पुंज है। हमारी श्रद्धा के केंद्र हैं। वे सदैव पूजनीय हैं। भगवान श्रीराम से प्रेरणा लेकर नई पीढ़ी उनसे सीखें, इस उद्देश्य को सामने रखकर उच्च शिक्षा विभाग ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अंतर्गत देश में पहली बार श्री राम चरित मानस को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया। 

उन्होंने कहा कि मैंने अपने बयान में माता सीता जी के जीवनकाल को लेकर उनके त्याग, तपस्या और बलिदान का उल्लेख करते हुए यह बताने का प्रयास किया कि माता सीता जी इतने कष्टों के बाद भी भगवान श्रीराम के प्रति श्रद्धा सिखाती हैं। लेकिन मेरे इस बयान को गलत तरीके से प्रस्तुत किया गया। वीडियो के एक हिस्से को काट-छांटकर प्रचारित किया गया। जाने-अनजाने में माता सीता जी के इस भाव को बताने में चुक हुई हो तो खेद व्यक्त करता हूं। माता सीता जी का जीवन सभी के लिए आशीर्वाद देने वाला रहा है। मेरे इस बयान को सोशल मीडिया पर तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है, इस पर कानूनी कार्यवाही भी की गई है। 

उच्च शिक्षा मंत्री ने कहा कि मध्यप्रदेश राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अंतर्गत श्रीराम चरित मानस को केंद्र में रखकर तीन पाठ्यक्रम प्रारंभ किए गए। महाविद्यालय स्तर पर श्रीरामचरितमानस का दार्शनिक चिंतन विषय राष्ट्रीय शिक्षा नीति के क्रियान्वयन के साथ प्रारंभ किया गया। मध्यप्रदेश भोज मुक्त विश्वविद्यालय में श्री रामचरित मानस से सामाजिक विकास विषय पर डिप्लोमा प्रारंभ किया गया है। इसी प्रकार विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन में श्री रामचरित मानस पर प्रमाण पत्र पाठ्यक्रम प्रारंभ किया गया है और भारत अध्ययन केंद्र में हिंदू स्टडीज पाठ्यक्रम में भी श्री रामचरित मानस का अध्ययन शामिल किया गया है। 

यह कहा था डॉ. यादव ने जिस पर हुआ बवाल
सोमवार को उज्जैन के एक कार्यक्रम में डॉ. मोहन यादव ने कहा था कि ‘जिस सीता माता को राम इतना बड़ा युद्ध करके लाए, उन्हें गर्भवती होने पर भी राज्य की मर्यादा के कारण छोड़ना पड़ा। सीता माता के बच्चों का जन्म जंगल में हुआ। इतने कष्ट के बावजूद भी वह पति के प्रति कितनी श्रद्धा करती है कि कष्टों को भूल कर भगवान राम के जीवन की मंगल कामना करती है। आज के दौर में ये जीवन तलाक के बाद की जिंदगी जैसा है। भगवान राम के गुणों को बताने के लिए उन्होंने बच्चों को भी संस्कार दिए। उनके धरती में समाने को आज की भाषा में आत्महत्या कहा जाता है।

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मध्यप्रदेश के उच्च शिक्षा मंत्री डॉ. मोहन यादव ने अपने विवादित बयान पर खेद जताया। दो दिन से डॉ. यादव का एक बयान वायरल हो रहा था। इसमें उन्होंने कहा था कि देवी सीता धरती में समा गई थी, जिसे आज की स्थिति में आत्महत्या कहा जा सकता है। 

इस बयान पर बवाल मचने के बाद डॉ. यादव ने एक वीडियो जारी कर कहा कि भगवान श्रीराम और माता सीता भारतीय संस्कृति के प्रेरणा पुंज है। हमारी श्रद्धा के केंद्र हैं। वे सदैव पूजनीय हैं। भगवान श्रीराम से प्रेरणा लेकर नई पीढ़ी उनसे सीखें, इस उद्देश्य को सामने रखकर उच्च शिक्षा विभाग ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अंतर्गत देश में पहली बार श्री राम चरित मानस को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया। 

उन्होंने कहा कि मैंने अपने बयान में माता सीता जी के जीवनकाल को लेकर उनके त्याग, तपस्या और बलिदान का उल्लेख करते हुए यह बताने का प्रयास किया कि माता सीता जी इतने कष्टों के बाद भी भगवान श्रीराम के प्रति श्रद्धा सिखाती हैं। लेकिन मेरे इस बयान को गलत तरीके से प्रस्तुत किया गया। वीडियो के एक हिस्से को काट-छांटकर प्रचारित किया गया। जाने-अनजाने में माता सीता जी के इस भाव को बताने में चुक हुई हो तो खेद व्यक्त करता हूं। माता सीता जी का जीवन सभी के लिए आशीर्वाद देने वाला रहा है। मेरे इस बयान को सोशल मीडिया पर तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है, इस पर कानूनी कार्यवाही भी की गई है। 

उच्च शिक्षा मंत्री ने कहा कि मध्यप्रदेश राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अंतर्गत श्रीराम चरित मानस को केंद्र में रखकर तीन पाठ्यक्रम प्रारंभ किए गए। महाविद्यालय स्तर पर श्रीरामचरितमानस का दार्शनिक चिंतन विषय राष्ट्रीय शिक्षा नीति के क्रियान्वयन के साथ प्रारंभ किया गया। मध्यप्रदेश भोज मुक्त विश्वविद्यालय में श्री रामचरित मानस से सामाजिक विकास विषय पर डिप्लोमा प्रारंभ किया गया है। इसी प्रकार विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन में श्री रामचरित मानस पर प्रमाण पत्र पाठ्यक्रम प्रारंभ किया गया है और भारत अध्ययन केंद्र में हिंदू स्टडीज पाठ्यक्रम में भी श्री रामचरित मानस का अध्ययन शामिल किया गया है। 

यह कहा था डॉ. यादव ने जिस पर हुआ बवाल

सोमवार को उज्जैन के एक कार्यक्रम में डॉ. मोहन यादव ने कहा था कि ‘जिस सीता माता को राम इतना बड़ा युद्ध करके लाए, उन्हें गर्भवती होने पर भी राज्य की मर्यादा के कारण छोड़ना पड़ा। सीता माता के बच्चों का जन्म जंगल में हुआ। इतने कष्ट के बावजूद भी वह पति के प्रति कितनी श्रद्धा करती है कि कष्टों को भूल कर भगवान राम के जीवन की मंगल कामना करती है। आज के दौर में ये जीवन तलाक के बाद की जिंदगी जैसा है। भगवान राम के गुणों को बताने के लिए उन्होंने बच्चों को भी संस्कार दिए। उनके धरती में समाने को आज की भाषा में आत्महत्या कहा जाता है।

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