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Sikh Diwali: सिखों की दिवाली का ग्वालियर से है खास नाता, जानें इसके पीछे की रोचक कहानी

दीपावली का पर्व प्रभू श्रीराम के चौदह साल के वनवास के बाद अयोध्या से लौटने पर कार्तिक अमावस्या पर दीपों का पर्व दीपावली मनाई जाती है। अलग-अलग क्षेत्रों में दीपोत्सव मनाने की अलग-अलग किदवंती और धार्मिक महत्व है। लेकिन पंजाब और सिखों के दीपावली मनाने का ग्वालियर से गहरा रिश्ता है। यह संबंध ग्वालियर दुर्ग से शुरू होता है।

दीपावली का त्योहार हिंदू धर्म के लोग बड़ी ही धूमधाम से मनाते हैं। क्योंकि हिंदू धर्म के लिए यह दिवाली का त्योहार आस्था और संस्कृति से जुड़ा हुआ है। भगवान राम ने अधर्म पर सत्य की पताका लहराई थी। लेकिन आपको जानकार यह भी आश्चर्य होगा कि यह दीपावली जितनी हिंदू धर्म के लिए विशेष महत्व रखती है, उतना ही सिख समाज के लिए ये दीपावली महत्व रखती है। वे त्योहार को बड़े धूमधाम से मनाते हैं, लेकिन सबसे खास बात यह है कि सिख धर्म की दीपावली से ग्वालियर का एक गहरा रिश्ता है। कहा जाता है कि सिख धर्म की दीपावली मनाने की शुरुआत इसी ग्वालियर से हुई थी। इसके पीछे की कहानी क्या है और ग्वालियर से इसकी शुरुआत कब और कैसे हुई।

बता दें, ग्वालियर के विश्व प्रसिद्ध किले की ऊंचाई पर एक बड़े हिस्से में ऐतिहासिक गुरुद्वारा, जिसे दाता बंदी छोड़ गुरुद्वारा के नाम से पूरे देश भर में जाना जाता है। इस गुरुद्वारे के पीछे की कहानी बड़ी दिलचस्प है। यहीं से सिख समाज की दीपावली मनाने की शुरुआत हुई थी।

कहा जाता है कि जब सिख धर्म के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए मुगल शासक जहांगीर ने सिखों के छठे गुरु हरगोविंद साहिब को बंदी बनाकर ग्वालियर के किले में कैद कर दिया था। उस समय पहले से ही 52 हिंदू राजा कैद थे। गुरु हरगोविंद जी जब जेल में पहुंचे तो सभी राजाओं ने उनका स्वागत किया, लेकिन गुरु हरगोविंद साहिब जी को बंदी बनाने के बाद जहांगीर बीमार पड़ गया। तभी जहांगीर के काजी ने सलाह देते हुए कहा कि आप की बीमारी की वजह एक सच्चे गुरु को किले में कैद करना है। जहांगीर अपने काजी की बात को सुनकर आश्चर्य रह गया और उस समय काजी ने कहा अगर आप एक सच्चे गुरु को रिहा नहीं करेंगे, तब तक आप की अब बीमारी बढ़ती जाएगी।

काजी की बात को सुनकर जहांगीर ने गुरु हरगोविंद साहिब को छोड़ने का आदेश जारी किया, लेकिन गुरु हरगोविंद साहिब ने अकेले रिहा होने से इंकार कर दिया। गुरु हरगोविंद साहिब जी ने अपने साथ सभी 52 हिंदू राजाओं को भी रिहा कराने की शर्त रखी। शर्त को स्वीकार करते हुए जहांगीर ने भी एक अनोखी शर्त रख दी, उसकी शर्त थी कि किले से गुरु जी के साथ सिर्फ वही राजा बाहर जा सकेंगे, जो सीधे गुरुजी का कोई अंग या कपड़ा पकड़े हुए होंगे। जहांगीर सोच रहा था कि एक साथ सभी राजा गुरु जी को छू नहीं पाएंगे और इस तरह बहुत से राजा इस किले में कैद ही रहेंगे।

जहांगीर की चालाकी को गुरु हरगोविंद साहिब पूरी तरह समझ चुके थे, उन्होंने मुस्कुराते हुए जहांगीर की इस शर्त को मान लिया। उसके बाद गुरु हरगोविंद साहिब ने एक विशेष कुर्ता सिलवाया, जिसमें 52 कलियां बनी हुई थी। इस तरह एक-एक कली को पकड़े हुए सभी 52 राजा किले से आजाद हो गए। 52 राजाओं को इस दाताबंदी छोड़ से एक साथ छुड़वाया गया था, इसलिए इस गुरुद्वारे को दाता बंदी छोड़ भी कहा जाता है। जहां लाखों की तादात में सिख धर्म के अनुयायी अरदास करने के लिए पहुंचते हैं। यहां पर देश ही नहीं बल्कि पूरे विश्वभर से सिख धर्म के लोग छठवे गुरु हरगोविंद साहिब के गुरुद्वारे में मत्था टेकने के लिए आते हैं।

इसके साथ ही गुरु हरगोविंद साहिब ने कार्तिक की अमावस्या यानी दीपावली के दिन 52 हिंदू राजाओं को अपने साथ जेल से बाहर निकाला था। तभी से सिख धर्म के लोग इसे दीपावली के रूप में मनाते हैं और कार्तिक माह की अमावस्या को दाता बंदी छोड़ दिवस भी मनाया जाता है। वहीं दिवाली के 2 दिन पहले सिख समुदाय के अनुयायी धूमधाम से यहां से अमृतसर स्वर्ण मंदिर पहुंचते हैं और दिवाली के दिन वहां भी प्रकाश पर्व धूमधाम से मनाया जाता है, क्योंकि कहा जाता है कि गुरु हरगोविंद साहिब रिहा होने के बाद सीधे स्वर्ण मंदिर गए थे।

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