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देवभोग के देव दशहरे की शुरुआत: शस्त्र पूजन कर निकाला गया खंडा, जानिए नेगी जोगी पाड़े प्रधान की अहम भूमिका ?

गिरीश जगत, गरियाबंद। छत्तीसगढ़ के गरियाबंद के देवभोग में देव शस्त्र के पूजन के साथ देवभोग के पारंपरिक दशहरा की शुरुआत हुई। नेगी, जोगी, पाड़े प्रधान की भूमिका अहम होती है। विजय दशमी को लंकेश की प्रक्रिमा लंकेश्वरी देवी करेगी। 200 साल से भी ज्यादा पुराना है देवभोग दशहरे का इतिहास।

रिवाज के मुताबिक आज अष्टमी को ग्राम पुजारी के घर में स्थापित देव कचना ध्रुवा के खंडा (शस्त्र) को बाहर निकाला गया। इसके पूजन के पूर्व इसे नदी के रेत से धोने ले जाया गया। धुलने के बाद जब शस्त्र बस्ती पारा पंहुचा तो पूरे मोहल्ले में हर घर के सामने दीप प्रज्जवलित कर स्वागत किया गया।

देव वाद्य यंत्र बजता रहा,फिर राजापारा स्थित कचना ध्रुवा के गुड़ी में शस्त्र को स्थापित किया गया। आज रात से इसकी पूजन अनवरत होगी। देव के इस पारंपरिक पूजन में नेगी,जोगी, पांडे प्रधान की भूमिका अहम होती है।

इनके मौजूदगी में पूजन की प्रकिया के लिए सभी की अलग अलग जवाबदारी तय किया गया होता है ।इस पुरी प्रक्रिया को देखने भारी संख्या में लोगो की भिड़ उमड़ती है। इसी शसत्र से विजय दशमी को बलि दि जाएगी।बलि अब रखिए के फल का दिया जाता है ।

बलि के इस रिवाज के बाद ही आस पास गांव से आए सभी देव विग्रह एक साथ लंकेश्वरी देवी विग्रह के नेतृत्व में गांधी मैदान पहुंचते है। और रावण के पुतले की प्रकिमां करेंगे।इसी प्रक्रिमां के बाद ही रावन पुतले के दहन का रिवाज है।

जानिए नेगी जोगी पाडे प्रधान की भूमिका

नेगी _देव दशहरा में देवी के पूजन से लेकर दशहरा के बाद उन्हे शांत कर स्थापित करने का दायित्व संभालने वाले पुजारी परिवार ,दाऊ परिवार को नेगी कहा जाता है।इस पूजन में अन्य सहयोगी भी शामिल होते है।

जोगी की भूमिका बीसी परिवार निभाते आ रहे है।आज शुरू हुई पूजन में दीप प्रज्वलन की देख रेख और जागरण की जवाबदारी इन्ही के जिम्मे होती है।

पाडे परिवार को कालांतर से देव पूजन में लगने वाले मिट्टी के दिए और सभी मिटी के पूजन सामग्री व्यवस्था करने की जवाबदारी होती है।

देवभोग के प्रधान परिवार वर्षो से देव पूजन के लिए प्रज्वलित होने वाले दिए की बाती जिसे नागिन कहा जाता की व्यवस्था करते हैं।

दशहरे में इन चार वर्गों की मौजूदगी और उनकी भूमिका के लिए कालांतर से जाना जाता है।इनमे से किसी एक वर्ग की कमी रह गई तो पूजन का विधान पुरा नही माना जाता।

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