इंदौर शहर कई मामलों में अनूठा है। इस बार यहां पर जनजातीय मेले का आयोजन किया गया है जो लोगों को खासा पसंद आ रहा है। यहां पर सबसे अधिक आकर्षण का केंद्र बन रही है जनजातीय थाली। 150 रुपए में भरपेट मिल रहा यह भोजन लोगों को इतना पसंद आ रहा है कि इसके लिए लाइन लगने लगी है। नौ दिन चलने वाले इस उत्सव में प्रदेशभर के आदिवासी और जनजातीय समाज के युवा अपने क्षेत्रों की खास चीजों को प्रदर्शन के लिए यहां पर लाए हैं।
क्या-क्या वैरायटी मिल रही थाली में
कार्यक्रम में परोसी जा रही जनजातीय थाली में दाल बाटी, चूरमा, भर्ता, दो तरह की दाल, दाल पानिया, लहसुन और मिर्च की चटनी परोसी जा रही है। श्री नारायण मानव उत्थान समिति द्वारा आयोजित इस मेले के संयोजक पुष्पेंद्र चौहान और बलराम वर्मा ने बताया कि भोजन के प्रत्येक कूपन पर एक व्यक्ति को पत्तल-दोनों में ज्वार और मक्का की रोटी, दाल-पानिये, बाटी, चूरमा और तीन तरह की चटनी परोसी जाती है। दाल दो तरह की होती है। एक मिक्स और दूसरी तुअर की। पिछले दो दिनों में एक हजार से भी अधिक लोग यहां इस जनजातीय भोजन की दावत उड़ा चुके हैं। बड़ी तादाद में लोग पार्सल कराकर भी ले गए। मेले में एक विशाल मंडप के नीचे जनजातीय भोजनशाला बनाई गई है। यहां लगी टेबल-कुर्सियों पर बैठकर एकसाथ ढाई सौ लोग भोजन कर सकते हैं। यहां तीन दर्जन से भी अधिक लोगों की टीम पारंपरिक जनजातीय भोजन तैयार करती है। इनमें से ज्यादातर जनजातीय क्षेत्रों से आई महिलाएं और उनके साथी हैं।
देशी अंदाज में बना रहीं ग्रामीण महिलाएं
यह सब पूरी तरह से देशी अंदाज में बनाया जा रहा है। लोहे के तवे, लकड़ी कंडे के चूल्हे, मिट्टी के बर्तनों में इन सब चीजों को बनाया जा रहा है। इनका टेस्ट भी वैसा ही रखा गया है जैसा कि आदिवासी और जनजातीय क्षेत्रों में पसंद किया जाता है। झोपड़ीनुमा बनाई गई इस जनजातीय भोजन शाला में झाबुआ, बड़वानी, खंडवा व निमाड़ क्षेत्र के बंजारा समुदाय के सदस्य जनजातीय व्यंजनों का स्वाद सभी इंदौरियों को चखा रहे हैं। गरम तवे पर जहां महिलाएं पारंपरिक ग्रामीण वेशभूषा पहन खाना बना रही हंै। चूल्हे पर मंद-मंद लो में मक्का, ज्वार, पनिया बनाया जा रहा है तो वहीं मटके में बैंगन का भर्ता लोगों को खूब पसंद आ रहा है। इसी के साथ मिर्च की चटनी की भी खासी डिमांड यहां देखने को मिल रही है। इस भोजन का लुत्फ लेने वाले लोगों का कहना था कि भोजन वाकई बहुत स्वादिष्ट है। भोजनशाला के प्रवेश द्वार पर जनजातीय क्षेत्रों से आई महिलाएं पारम्परिक परिधान में मिट्टी के चूल्हों पर मिट्टी के ही बर्तनों में ज्वार और मक्का की रोटियां बनाती हुई मिलती हैं। भोजन करने के बाद कई लोग इन महिलाओं के फोटो और इनके साथ सेल्फी लेते हुए भी देखे जाते हैं। कुल मिलाकर इस जनजातीय भोजनशाला का मेले में अलग ही आकर्षण और क्रेज देखने को मिल रहा है। रविवार को भी यहां हजारों की तादाद में दर्शक पहुंचे।
जनजातीय पेय, राबड़ी और मक्का की छाछ भी खास
इस भोजनशाला के सामने स्टॉल पर जनजातीय पेय लब्दो और राबड़ी का नाश्ता भी उपलब्ध है। लब्दो दरअसल पानी में खट्टे-मीठे बोर को गुड़, नमक-मिर्ची और जीरा आदि डालकर और इन सबको उबालकर बनाया जाने वाला जनजातीय पेय है, जो स्वादिष्ट है। इसी तरह राबड़ी मक्का को छाछ में डालकर तैयार की गई डिश है।
जनजातीय क्षेत्रों की जड़ी-बूटियों के सौ स्टॉल लगाए
शुभांगी पारूलकर, एकता मेहता ने बताया कि मेले में प्रतिदिन शाम को विशेष रूप से तैयार किये गए विशाल मंच पर जनजातीय संस्कृति से जुड़े सांस्कृतिक कार्यक्रम भी हो रहे हैं। वहीं मेले के मेडिकल झोन में विभिन्न रोगों के विशेषज्ञ वैद्य और डॉक्टर लोगों को आम रोगों से लेकर असाध्य बीमारियों के बारे में नि:शुल्क परामर्श और दवाई दे रहे हैं। मेले में शुगर और ब्लड प्रेशर सहित कई जांच मुफ्त में की जा रही हैं और बड़ी संख्या में लोगों ने इन सुविधाओं का लाभ लिया। जनजातीय क्षेत्रों में पाई जाने वाली करीब डेढ़ हजार जड़ी-बूटियां भी यहां रखी गयी हैं। ऐसी जड़ी-बूटियों के यहां करीब सौ स्टॉल लगे हैं।