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सीआईसी ने एलजी को लिखा पत्र, आरटीआई अधिनियम पर दिल्ली सरकार विफल

नई दिल्ली:  

केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) ने वास्तविक जनहित से जुड़े कोर गवर्नेंस के मुद्दों में पारदर्शिता और जवाबदेही की कमी को दशार्ते हुए आरटीआई अधिनियम, 2005 के कार्यान्वयन में दिल्ली सरकार की विफलता की ओर इशारा किया है.

सीआईसी के सूचना आयुक्त उदय माहूरकर ने उपराज्यपाल वी.के. सक्सेना को सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के कार्यान्वयन में दिल्ली सरकार की विफलता के संबंध में पत्र लिखा है. जिसमें अन्य बातों के साथ-साथ यह बताया गया है कि राजस्व जैसे विभाग जो भूमि मामलों से संबंधित हैं, पीडब्ल्यूडी, सहकारिता, स्वास्थ्य और बिजली के अलावा डीएसएसएसबी और डीएसआईआईडीसी आदि जो आम लोगों से सीधे तौर पर जुड़े हैं, वह या तो आम जनता के सवालों को काफी दिनों तक टाल देते हैं या फिर सूचना देने से इनकार कर देते हैं.

उदय माहूरकर ने कहा- कई मामलों में इन विभागों, संस्थाओं में सूचना मांगने वाले आरटीआई आवेदक दयनीय स्थिति में होते हैं क्योंकि उनके वैध आवेदनों में ऐसी जानकारी होती है जो उनके जीवन को प्रभावित करती है. अन्य मामलों में, भ्रष्टाचार और सरकारी कामकाज में अनियमितता के बारे में वास्तविक जानकारी को कथित गलत उद्देश्यों के साथ छुपाया जा रहा है.

उन्होंने पत्र में कहा- यह चिंता का विषय है कि राजस्व विभाग से संबंधित 60 प्रतिशत से अधिक मामलों में सीपीआईओएस आधिकारिक कर्तव्य (ड्यूटी) का हवाला देते हुए उपस्थित नहीं रहते हैं और सुनवाई में भाग लेने के लिए अपने लिपिकों और कनिष्ठ कर्मियों को प्रतिनियुक्त करते हैं. कई मामलों में, उनकी संदिग्ध सांठगांठ के कारण सूचना को बाधित करने की उनकी ओर से स्पष्ट मंशा होती है.

उन्होंने पत्र में आरोप लगाया है कि, यह उन मामलों में अधिक स्पष्ट है जहां पैतृक भूमि सहित बड़ी संपत्तियां शामिल हैं और स्पष्ट रूप से उच्च स्तर के भ्रष्टाचार का संकेत देती हैं. आयोग के सामने आए कुछ मामलों में अपनी पुश्तैनी जमीन के बारे में अपने अधिकारों के लिए लड़ने वाले आवेदकों को आयोग ने महत्व नहीं दिया. क्योंकि एक भ्रष्ट और सुस्त नौकरशाही वैध जानकारी देना ही नहीं चाहती.

उदय माहूरकर ने स्वास्थ्य विभाग से संबंधित गंभीर मुद्दों की ओर भी इशारा किया है कि कैसे ईडब्ल्यूएस श्रेणी के रोगियों को रियायती दरों पर निजी अस्पतालों द्वारा मुफ्त इलाज नहीं दिया जाता है. मुफ्त इलाज न करने के रूप में कुल 1500 करोड़ रुपये बकाया है. उन्होंने निविदा प्रक्रिया, डिस्कॉम आदि से संबंधित मुद्दों को भी इंगित किया है.

केंद्रीय सूचना आयुक्त द्वारा उठाए गए मुद्दों की गंभीरता को देखते हुए, उपराज्यपाल सचिवालय ने मुख्य सचिव को नियमानुसार आवश्यक सुधारात्मक कार्रवाई करने का निर्देश दिया है.






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