भाजपा की जांच टीम अंबिकापुर मेडिकल कॉलेज के अस्पताल में पहुंची।
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छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर स्थित मेडिकल कॉलेज में चार दिसंबर की रात चार बच्चों की मौत मामले में भाजपा ने भी जांच शुरू कर दी है। पूर्व सांसद राम विचार नेताम के नेतृत्व में पांच सदस्यीय जांच टीम सोमवार को मेडिकल कॉलेज पहुंची। इस दौरान टीम ने मौजूदा स्टॉफ से पूछताछ की। साथ ही बच्चों के परिजनों से भी अस्पताल की व्यवस्था का हाल जाना। टीम ने कहा कि, ऑन कॉल ड्यूटी पर डॉक्टर नहीं थे। फिर टीम ने जांच रिपोर्ट प्रदेश भाजपा संगठन को सौंपने की बात कही है।
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सरकारी जांच के बाद भाजपा की टीम पहुंची
अंबिकापुर मेडिकल कॉलेज के एमसीएच अस्पताल स्थित एसएनसीयू में एक सप्ताह पहले चार नवजात की मौत हो गई थी। इस मामले में एक ओर जहां स्वास्थ्य सचिव के नेतृत्व में जांच की गई है, वहीं भाजपा ने भी जांच कराने की घोषणा की थी। इसी के तहत पूर्व राज्यसभा सांसद रामविचार नेताम, पूर्व गृहमंत्री रामसेवक पैकरा, भाजपा प्रदेश प्रवक्ता अनुराग सिंह देव, जिला अध्यक्ष ललन प्रताप सिंह और पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष फुलेश्वरी कंवर की टीम जांच के लिए पहुंची थी।
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स्वास्थ्य कर्मियों से गहन पूछताछ
भाजपा जांच दल ने इसे लेकर भी गंभीरता से पूछताछ की है। इसमें…
- कितने समय के लिए लाइट गुल हुई थी, और इसका क्या असर एसएनसीयू पर पड़ा था।
- जिन चार बच्चों की मौत हुई, उन्हें किस तरह की दिक्कतें थी। उस दौरान स्टाफ ने इलाज के लिए क्या प्रयास किया।
- घटनाक्रम में एक बात यह भी सामने आई थी कि वरिष्ठ चिकित्सक को ऑन कॉल ड्यूटी पर होना था? उन्होंने अपनी ड्यूटी सही समय पर नहीं की।
जांच रिपोर्ट पर अब तक कार्रवाई नहीं
वहीं दूसरी ओर स्वास्थ्य सचिव के नेतृत्व में हुई जांच की रिपोर्ट बुधवार को ही डीएमई के माध्यम से राज्य शासन को भेज दी गई थी। मामले में गुरूवार को शासन ने एमएस डा.लखन सिंह, एचओडी शिशु रोग डा. सुमन सुधा और हास्पिटल सुपरिटेंडेंट प्रियंका कुरील को नोटिस देकर दो दिनों में जवाब मांगा था। तीनों ने अपना जवाब शुक्रवार को भेज दिया था। इसके बाद राज्य शासन से अब तक आगे की कार्रवाई की जानकारी नहीं मिल पाई है।
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लामा में डिस्चार्ज कराने के आंकड़े चौंकाने वाले
एसएनसीयू से आठ माह में 81 नवजातों के परिजनों ने उन्हें लामा में डिस्चार्ज करा लिया। यह आंकड़े गंभीर हैं। आरोप है कि मेडिकल कालेज अस्पताल के कुछ चिकित्सक निजी अस्पतालों में काम करते हैं। गंभीर रूप से बीमार बच्चों के परिजनों को निजी अस्पतालों में भेज दिया जाता है। यह निजी अस्तपालों की मोटी कमाई का जरिया है।