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सुपेबेड़ा को कब मिलेगा शुद्ध पानी ? कछुए की चाल पर जल प्रदाय योजना, रसूख के चलते मोहलत पर मोहलत, क्या नदी में बह जाएंगे 8 करोड़ ?

गरियाबंद से गिरीश जगत की रिपोर्ट

छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले में सुपेबेड़ा सामुदायिक जल प्रदाय योजना — कछुआ चाल से निर्माण के चलते सवालों के घेरे में आ गई है। यह योजना गरियाबंद जिले के सुपेबेड़ा सहित 9 गांवों के 2074 परिवारों को तेल नदी से फ्लोराइड रहित शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराने के लिए बनाई गई थी, लेकिन आठ महीने बीत जाने के बाद भी महज 30% काम ही पूरा हो सका है।

मंगलवार को राजधानी रायपुर से पहुंचे लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग (PHE) के प्रमुख अभियंता टी.डी. शांडिल्य और रायपुर मंडल के अधीक्षण अभियंता समीर गौड़ ने योजना का स्थलीय निरीक्षण किया। तेल नदी के सेनमुड़ा घाट पर बनाए जा रहे हेड वर्क स्थल की धीमी प्रगति को देख अधिकारी नाराज नजर आए। गुणवत्ता को लेकर संतोष जरूर जताया गया, लेकिन काम की रफ्तार पर गहरी नाराजगी जाहिर की गई।

ठेकेदार को नोटिस और सख्त चेतावनी

निरीक्षण के दौरान ईई विप्लव धृतलहरे ने अधिकारियों को बताया कि अब तक परियोजना का केवल 30% हिस्सा ही पूरा हुआ है। उन्होंने भरोसा दिलाया कि बाकी बचे 70% कार्य को अगले दो महीनों में तेजी से निपटा लिया जाएगा। अधिकारियों ने ठेका कंपनी को नोटिस जारी करने और कार्य में गति लाने के निर्देश दिए हैं।

रसूख के चलते मिली अतिरिक्त मोहलत, फिर भी धीमा काम

8.50 करोड़ रुपये की लागत वाली इस योजना का अनुबंध बलरामपुर की ठेका कंपनी महावीर बोरवेल्स को मिला था। योजना को मार्च 2025 तक पूरा किया जाना था, लेकिन ठेकेदार ने राजनीतिक प्रभाव का इस्तेमाल कर अक्टूबर 2025 तक की अतिरिक्त मोहलत हासिल कर ली। बताया जा रहा है कि ठेकेदार भाजपा से जुड़ा जिला पदाधिकारी है और एक मंत्री का करीबी भी।

हालांकि, विभाग अब तक कार्रवाई से बचता रहा है क्योंकि इस योजना के लिए पिछले पांच बार टेंडर रद्द किए जा चुके थे और कोई अन्य एजेंसी काम करने सामने नहीं आ रही थी। लेकिन अब जब काम की रफ्तार से स्थानीय प्रशासन और ग्रामीण दोनों नाराज हैं, विभाग भी कार्रवाई की दिशा में मजबूर नजर आ रहा है।

2074 परिवारों को शुद्ध जल देने का सपना अब भी अधूरा

सुपेबेड़ा और उसके आसपास के गांवों में किडनी रोगियों की बढ़ती संख्या ने वर्षों से लोगों को चिंता में डाला हुआ है। दूषित और फ्लोराइडयुक्त पानी इसके पीछे एक प्रमुख कारण माना गया। इसी को ध्यान में रखते हुए 2019 में पूर्ववर्ती सरकार ने तेल नदी से शुद्ध जल आपूर्ति की योजना को मंजूरी दी थी।

इस योजना के तहत

1250 मीटर पाइपलाइन बिछानी थी, जिसमें से अब तक केवल 814 मीटर ही बिछाई जा सकी है

सुपेबेड़ा में रिमूवल प्लांट और सप्लाई टैंक का निर्माण होना है, लेकिन ये अब भी अधूरे हैं

जल जीवन मिशन के तहत कई गांवों में टंकियों का निर्माण हो चुका है, लेकिन नदी से जलापूर्ति शुरू नहीं हो सकी

निष्कर्ष: फ्लोराइड पीड़ित गांवों के लिए राहत कब?

सालों से शुद्ध पानी के इंतज़ार में बैठे सुपेबेड़ा और आसपास के गांवों के लोगों के लिए यह योजना जीवन रेखा है। लेकिन राजनीतिक रसूख, विभागीय ढिलाई और ठेकेदार की सुस्त कार्यशैली ने इस महत्वाकांक्षी योजना को भी अधर में डाल दिया है।

अब देखना यह है कि अफसरों की चेतावनी के बाद क्या वास्तव में इस काम में तेजी आती है, या फिर यह योजना भी कागजों और होर्डिंग्स तक ही सिमटकर रह जाएगी।

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