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अनूपपुर में ब्रिज की कहानी ‘खूनी’ क्यों ? 24 महीने में बनना था, 8 साल बाद भी अधूरा, 21 करोड़ से पहुंचा 30 करोड़, फाटक लील रहा जिंदगी, बूढ़े ब्रिज से ‘कमीशन’ की बारिश ?

Anuppur overbridge delay Railway gate accident Anuppur Deaths due to railway crossing: यह ब्रिज सिर्फ कंक्रीट का ढांचा नहीं, बल्कि करप्शन, राजनीतिक दबाव और प्रशासनिक बेपरवाही का रहस्य का प्रतीक बन चुका है। मुआवजे की उलझनों, डिजाइन बदलने और अफसरों की उदासीनता के कारण 24 महीने में बनने वाला पुल 96 महीने बाद भी अधूरा है। हर गुजरती मालगाड़ी, हर बंद फाटक और हर तड़पती जान यही सवाल उठाती है—कब तक जनता की पीड़ा और अफसरों की नाकामी का खेल चलता रहेगा? अनूपपुर के लोग इसे अब “मौत का फाटक” कहते हैं, और यह पुल सिर्फ शहर का रास्ता नहीं, बल्कि उनके जख्मों और अधूरी उम्मीदों का दर्पण बन गया है।

Anuppur overbridge delay Railway gate accident Anuppur Deaths due to railway crossing: अनूपपुर का ओवरब्रिज 24 महीने में पूरा होना था, लेकिन 8 साल बाद भी अधूरा है। इस बीच रेलवे फाटक ने सैकड़ों जिंदगियां निगल लीं। यह रिपोर्ट आंखों-देखी है—जहां करप्शन, हादसे और सियासत की परतें खुलती हैं। आप हैरान तब होंगे, जब कहेंगे की पहले तो 21 करोड़ में बनना था, लेकिन अब 30 करोड़ पहुंच गया। इससे भी हैरानी की बात है कि 90 फीट चौड़ाई थी, जो अब 65 फीट है। ऐसे में तो लागत कम होती, लेकिन गजब की कहानी है साहब लागत बढ़ती ही चली गई। आगे लगता है 10 करोड़ और बढ़ सकती है ?


दीपावली के अगले दिन, मौत की दस्तक

नवंबर 2021 की सुबह। दीपावली की रोशनी अभी पूरी तरह फीकी भी नहीं हुई थी कि छोटू चौधरी के घर मातम पसर गया।भैया को अचानक सीने में तेज़ दर्द उठा। घबराकर पूरा परिवार अस्पताल की ओर भागा। रास्ता मुश्किल से पाँच मिनट का था। लेकिन बीच में मौत खड़ी थी—रेलवे फाटक के रूप में।

Anuppur overbridge delay Railway gate accident Anuppur Deaths due to railway crossing: फाटक बंद था। एक ट्रेन गुज़री। फिर दूसरी। फिर तीसरी। भैया छोटू की गोद में तड़पते रहे। छोटू बार-बार गेटमैन से गुहार लगाता रहा—“भैया मर जाएगा, रास्ता खोल दो।” लेकिन गेटमैन ने हाथ जोड़कर कहा— “रेलवे का नियम है। जब तक ट्रेनें नहीं गुजरतीं, फाटक नहीं खुलेगा।”

Anuppur overbridge delay Railway gate accident Anuppur Deaths due to railway crossing: आधे घंटे बाद जब अस्पताल पहुंचे, डॉक्टर ने सिर्फ इतना कहा—“थोड़ा पहले आ जाते, तो बचा लेते।” यह मौत किसी बीमारी की नहीं थी। यह मौत उस अधूरे ब्रिज की थी, जो 24 महीने में बनने का वादा किया गया था, लेकिन 96 महीने बाद भी अधूरा खड़ा है।


कहानी 1: मौत का फाटक

छोटू चौधरी बताते हैं—“उस रात मेरे हाथों में भाई तड़प रहा था। मैं बेबस था। मेरी आंखों के सामने उसकी सांसें टूट रही थीं। अगर ब्रिज बन गया होता तो हम पाँच मिनट में अस्पताल पहुंच जाते। आज मेरा भाई हमारे बीच होता।” छोटू का दर्द अनूपपुर के हजारों परिवारों का साझा दर्द है। इस फाटक ने न जाने कितनी जिंदगियां निगल लीं।


कहानी 2: रातभर पटरी पर पड़ी लाश

शंकर तिवारी का बेटा चंचल क्रिकेटर था। भविष्य में जिले का नाम रोशन करने का सपना देखता था। लेकिन 2008 की एक शाम, जब वह पटरियां पार कर रहा था, अचानक ट्रेन की चपेट में आ गया।

तिवारी की आंखों से आंसू छलक पड़ते हैं—“कुछ समय बाद रेलवे पुलिस वाले घर आए और बोले—तिवारी जी, पटरी पर लाश पड़ी है। चलिए शिनाख्त कर दीजिए। मैं रास्ते भर भगवान से प्रार्थना करता रहा—हे प्रभु, मेरी लाज रख लेना। लेकिन जब मौके पर पहुंचा, तो मेरी दुनिया उजड़ चुकी थी।”

लाश रातभर पटरी पर पड़ी रही। तिवारी सवाल करते हैं—“क्या मेरे बेटे की मौत ने किसी को जगाया? क्या ब्रिज बना? नहीं। वही फाटक, वही मालगाड़ियां, वही मौत का खेल अब भी जारी है।”


कहानी 3: अधूरे ब्रिज से मौत बरसी

Anuppur overbridge delay Railway gate accident Anuppur Deaths due to railway crossing: मार्च 2023 की एक दोपहर। रिटायर्ड एसआई उदयशंकर पासवान पत्नी के साथ मोटरसाइकिल से गुजर रहे थे। फाटक के पास से जैसे ही आगे बढ़े, अधूरे ब्रिज से लोहे की रॉड सीधे उनकी पत्नी के सिर पर आ गिरी। खून की धार बह निकली। अस्पताल में आठ टांके लगे।

पासवान कहते हैं—“यह ब्रिज हमारी जान बचाने के लिए बन रहा था, लेकिन अब यह खुद मौत बरसा रहा है। मेरी पत्नी आज भी सिरदर्द से जूझती है। हर बार इस ब्रिज को देखता हूं तो गुस्से से खून खौलता है।”


कहानी 4: कारोबार पर बर्बादी और सन्नाटे की साया

रेलवे फाटक के पास होटल चलाने वाले मोनू अग्रवाल का चेहरा मायूसी से भरा हुआ है। “पहले होटल में सात लोग काम करते थे। रौनक रहती थी। लोग आते-जाते थे। लेकिन अब… देखिए, सिर्फ एक कमरा भरा है। काम करने के लिए एक लड़का रह गया है। जब रास्ता ही नहीं खुलेगा तो ग्राहक आएंगे कैसे?” मोनू का होटल अब होटल नहीं रहा। वह कारोबार की बर्बादी और सन्नाटे का गवाह है।


मौत ढोता फाटक

Anuppur overbridge delay Railway gate accident Anuppur Deaths due to railway crossing: अनूपपुर की रगों में कोयले की मालगाड़ियां दौड़ती हैं। रोज सौ से ज्यादा गाड़ियां यहां से गुजरती हैं। यह फाटक दिन में 16 घंटे बंद रहता है। दक्षिण में जिला अस्पताल, स्कूल और दफ्तर हैं। उत्तर में बाजार, थाने और कलेक्ट्रेट। बीच में सिर्फ लोहे की पटरी और मौत का फाटक। हर ट्रेन गुजरते वक्त अनूपपुर के लोग सांस रोक लेते हैं। पता नहीं किसकी जान इस बार अटक जाए।


करप्शन और सियासत की परतें

Anuppur overbridge delay Railway gate accident Anuppur Deaths due to railway crossing: यह ब्रिज 24 महीने में पूरा होना था, लेकिन 8 साल बीत चुके हैं और अब भी अधूरा है। 2017 में काम शुरू हुआ, लेकिन मुआवजे के नाम पर घोटाला शुरू हो गया। सरकारी जमीन पर भी फर्जी दावे किए गए। लाखों-करोड़ों की बंदरबांट हुई। लोगों ने जमीन ही नहीं, बल्कि काजू और गुलाब के पेड़ों का भी मुआवजा मांग लिया।

ब्रिज की डिजाइन पहले 90 फीट चौड़ी थी। लेकिन राजनीतिक दबाव में इसे घटाकर 65 फीट कर दिया गया। डिजाइन बदली, काम फिर अटक गया। यह ब्रिज अनूपपुर की जीवनरेखा है। शहर का एक हिस्सा जिला अस्पताल, स्कूल पटरी के दक्षिण में है तो दूसरा बाजार, कलेक्ट्रेट, थाने उत्तर में। कोयला खदानों के कारण यहां से रोज 100 से ज्यादा मालगाड़ियां गुजरती हैं, जिससे फाटक दिन में 16 घंटे तक बंद रहता है।

साल 2003 से ही ब्रिज बनाने की मांग उठ रही थी। 2007 में बड़े जनआंदोलन के बाद एक अंडरब्रिज बना, लेकिन वह 2 किलोमीटर दूर होने के कारण अनुपयोगी साबित हुआ। साल 2015 में सीएम की घोषणा के बाद 2017 में काम शुरू हुआ, लेकिन मुआवजे को लेकर विवाद खड़ा हो गया। राजस्व विभाग की गलती के कारण सरकारी जमीन पर लोगों ने मुआवजा मांग लिया।

पहले 9 करोड़, फिर समीक्षा के बाद 7 करोड़ का मुआवजा बांटा गया। इसके बाद कुछ लोगों ने जमीन पर लगे काजू और गुलाब के पेड़ों का भी मुआवजा मांग लिया, जिससे काम और अटक गया। राजनीतिक दबाव के चलते ब्रिज की चौड़ाई 90 फीट से घटाकर 65 फीट कर दी गई, जिससे डिजाइन में बदलाव हुआ और देरी हुई।

ठेकेदार ने क्यों कहा, जो करना है कर लो

Anuppur overbridge delay Railway gate accident Anuppur Deaths due to railway crossing: जब हमारी टीम मौके पर पहुंची तो पूरे 504 मीटर लंबे ब्रिज पर सिर्फ 15 मजदूर काम कर रहे थे। साइट इंजीनियर से सवाल पूछा तो जवाब मिला— “फालतू सवाल मत कीजिए। हमें कोई फर्क नहीं पड़ता।” यह लापरवाही बताती है कि किस तरह जनता की जान से खेला जा रहा है।

15 मजदूर ब्रिज बना रहे, निर्माण की सुस्त रफ्तार

अनूपपुर स्टेशन से 500 मीटर दूर ही यह अधूरा ब्रिज नजर आ जाता है। यहां हर पांच मिनट में एक मालगाड़ी गुजरती है। जब हमारी टीम पहुंची, तो पूरे 504 मीटर लंबे ब्रिज पर कुल जमा 15 मजदूर काम कर रहे थे। एक तरफ जेसीबी और 5-7 मजदूर, तो दूसरी तरफ कुछ वेल्डर और हेल्पर दिखे।


अफसरों के वादे, जनता का सब्र

Anuppur overbridge delay Railway gate accident Anuppur Deaths due to railway crossing: एसडीएम कमलेश पुरी कहते हैं— “तीन महीने में ब्रिज पूरा हो जाएगा। रोज मॉनिटरिंग हो रही है।” लेकिन लोग हंसते हैं। यही तीन महीने का वादा वे पिछले आठ साल से सुन रहे हैं।


अधूरा ब्रिज, कारोबारियों की बर्बादी का आईना

Anuppur overbridge delay Railway gate accident Anuppur Deaths due to railway crossing: अनूपपुर का यह अधूरा ब्रिज अब सिर्फ सीमेंट और सरिए का ढांचा नहीं है। यह उन बच्चों की चीखों का स्मारक है, जो अस्पताल नहीं पहुंच पाए। यह उन मां-बाप के आंसुओं की गवाही है, जिन्होंने अपनी औलाद को पटरियों पर खो दिया। यह उन कारोबारियों की बर्बादी का आईना है, जिनकी रोज़ी-रोटी सियासत और करप्शन ने छीन ली।


जनता की आवाज़

स्थानीय लोग अब इसे “मौत का फाटक” कहने लगे हैं। उनका कहना है—“हर गुजरती ट्रेन हमारी सांसें रोक देती है। हम नहीं जानते अगली मौत किसकी होगी।” अनूपपुर का यह ब्रिज सिर्फ अधूरा नहीं है। यह प्रशासनिक विफलता, करप्शन और सियासत का सबसे खूनी उदाहरण है। हर ट्रेन की सीटी, हर बंद होता फाटक और हर अधूरी सांस… यह सब मिलकर गवाही देते हैं कि इस ब्रिज की नींव में सिर्फ कंक्रीट और सरिया नहीं, बल्कि अनगिनत जिंदगियों की चीखें दबी हैं।


अब आसान सवाल जवाब में समझिए

Q1. अनूपपुर ओवरब्रिज का काम कब शुरू हुआ था?
2017 में काम शुरू हुआ था, लेकिन 8 साल बाद भी अधूरा है।

Q2. ब्रिज की देरी की मुख्य वजह क्या है?
मुआवजे का विवाद, राजनीतिक दबाव और ठेकेदार–अफसर की लापरवाही।

Q3. इस अधूरे ब्रिज से अब तक क्या नुकसान हुआ है?
कई लोगों की जान फाटक पर अटक गई, दुर्घटनाएं हुईं और स्थानीय कारोबार चौपट हो गया।

Q4. प्रशासन कब तक पूरा करने का दावा कर रहा है?
एसडीएम का कहना है कि तीन महीने में पूरा हो जाएगा, लेकिन यह वादा 8 साल से दोहराया जा रहा है।

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